अघोरी बाबा की गीता : बाहर से भीतर की ओर…..
आशा है, अब तुम मन, बुद्धि और चित्त में स्पष्ट हो गए होगे और ये किस प्रकार और क्या क्या कार्य करते हैं, इसे समझ गये होगे ! – बाबा ने मुझे तौलने की दृष्टि से देखा कि मेरी मोटी बुद्धि में क्या घुसा और क्या नहीं | जितना बाबा ने समझाया था, उतना तो मेरी समझ में आ चुका था लेकिन अभी भी सूई एक जगह अटकी हुई थी |
“जी बाबा ! मन, बुद्धि और चित्त, जैसा आपने बताया, उतना तो समझ आया है | पर बाबा, फिर ये आत्मा क्या है ? आप मुझे आत्मा के बारे में भी बताइये |”
बाबा मुस्कुराते हुए बोले – “आत्मा के बारे में क्या बताया जाए | आत्मा तो अनिवर्चनीय है, अनिर्वचनीय समझते हो ?”
“जी ! अनिर्वचनीय मतलब जिसे वचनों में न बांधा जा सके, जिसे कहा न जा सके | पर बाबा, यदि इसे कहा ही नहीं जा सकता, इसका अर्थ क्या है ? क्या फिर इसके बारे में कोई, किसी को नहीं बता सकता ? फिर लोग कहते हैं कि फलाने को आत्मज्ञान हुआ अथवा फलाने ने आत्मज्ञान प्राप्त किया, इसका क्या अर्थ है ?”
बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा – “आत्मज्ञान बहुधा स्वयं ही प्राप्त किया जा सकता है, इसीलिये इसे अनिर्वचनीय कहा गया है | ये ठीक वैसा है, जैसे कि कोई तुमको एक रसगुल्ला दे और पूछे कि कैसा है ? तो तुम क्या जवाब दोगे ?“
“जी ! मैं कहूँगा कि मीठा है |” – मैंने प्रश्न का उत्तर दिया |
“और फिर अगर तुमको गुड़ खिलाया जाये तो तुम क्या बताओगे कि कैसा है ?”
“जी ! तब भी उत्तर तो यही रहेगा कि मीठा है !”
“बिल्कुल | पर क्या तुम उस अंतर को बता सकते हो कि रसगुल्ला और गुड़ के मीठेपन में क्या अंतर है ? नहीं ! संभव नहीं है क्योंकि जो खाता है, वही जानता है कि दोनों का स्वाद मीठा होते हुए भी अलग कैसे था | ऐसे ही आत्मज्ञान भी स्वयं ही प्राप्त करने की चीज है, किसी के बताने की नहीं |”
“तो क्या आप मुझे आत्मा के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते ? आपने मन, बुद्धि और चित्त जैसे गूढ़ विषयों के बारे में जैसे बताया है, जिनको मैं किसी बाबा से, किसी कथाकार से नहीं सुनता | जिन विषयों को मैंने किसी बाबा के पंडाल में नहीं सुना, वैसा गूढ़ विषय आपने जब कहा तो मुझे लगता है कि आप आत्मा के बारे में भी अपने युक्तिपूर्ण वचनों से कुछ न कुछ अवश्य बता सकते हैं | कृपया मेरा मार्गदर्शन करें |” – ये कहते हुए मैंने बाबा के आगे हाथ जोड़ दिये |
बाबा बोले – “तुम आसानी से छोड़ने वाले नहीं हो |” ये कहते हुए वो थोडा मुस्कुराये और फिर आगे बोले – “ तर्कशास्त्र हमको बताता है कि जिस चीज को देखा नहीं जा सकता, उस चीज की व्याख्या भी, उस चीज के गुणों के आधार पर की जा सकती है | जैसे हवा दिखती नहीं है, पर है तो सही | हमें आँखों से नहीं दिखती किन्तु उसके गुणों के आधार पर हम जानते हैं कि हवा है | हम सूखे पत्तों को उड़ते हुए देखते हैं, हम फसलों को लहलहाते हुए देखते हैं, हम पेड़ों को झूमते हुए देखते हैं तो जानते हैं कि ये सब हवा करती है, इसीलिए कहते हैं कि हवा बहती है, हवा चलती है कम ही कहा जाता है | तो ये कैसे निश्चय हुआ कि हवा बहती है ? उसके इस गुण की वजह से, कि जैसे पानी बहता है, कहीं कम, कहीं अधिक, कहीं ऊंचा, कहीं नीचा ऐसे ही हवा का वेग भी एक जैसा नहीं है | उसका वेग भी, कहीं कम, कहीं अधिक होता है, कभी एकदम से तेज होती है और कभी एक दम से शांत हो जाती है ये गुण जल का होता है और इसीलिए कहा जाता है कि हवा बह रही है | ऐसे ही जो चीज दिखती नहीं है, उसके गुणों के आधार पर ही, उसके बारे में निश्चय किया जाता है |
वैज्ञानिकों ने न्यूट्रान को देखा थोड़े न था ? फिर कैसे पता चला, उसके बारे में ? उसके गुणों की वजह से | जब वैज्ञानिकों ने देखा कि एटम का भार, इलेक्ट्रॉन्स और प्रोटोन के भार के योग से अधिक था तो वैज्ञानिकों को लगा कि एटम में कुछ और भी है, जो दिख नहीं रहा है | पर दिख क्यों नहीं रहा है ? क्योंकि वो आवेशरहित है, इसलिए दिख नहीं रहा है | अतः उसमें भार तो है पर आवेश नहीं है | इस प्रकार, तर्क से, लॉजिकल थिंकिंग से ही, न्यूट्रान की परिकल्पना हुई | वह भी देखा नहीं गया किन्तु गुणों के आधार पर, उसकी भी विवेचना हुई और उसे पहचाना गया | ऐसे ही आत्मा के बारे में भी, यदि कोई लगातार चिन्तन मनन करे तो उसके गुणों के आधार पर कुछ कुछ जान सकता है | मैं तुम्हे आत्मा के बारे में बता तो सकता हूँ किन्तु उसका अनुभव तुमको ही करना होगा, जैसे रसगुल्ले का स्वाद पता करने के लिए, तुम्हें ही उसे खाना पड़ेगा | मैं तो बस बता सकता हूँ कि रसगुल्ला सफ़ेद होता है, रसीला होता है, मीठा होता है पर कितना मीठा ? कितना रसीला ? ये तो तुमको खाने के बाद ही पता चलेगा |”
मुझे तो यही चाहिए था | मैंने खुश होते हुए बाबा से बोला – “बाबा ! जब आपने किसी चीज के बारे में सुना होता है तो आप उसके बारे में आश्वस्त हो जाते हैं कि हाँ, यही वो चीज है, जिसके बारे में सुना है | आप यदि मुझे रसगुल्ले के बारे में बता देंगे तो मुझे निश्चित हो जाएगा कि कोई मुझे रसगुल्ला कह कर, गुड़ नहीं खिला पायेगा क्योंकि मैं उससे कह सकता हूँ कि ये सफ़ेद तो है ही नहीं, ये तो पीला है, ये रसीला भी नहीं है अतः ये रसगुल्ला नहीं है, भ्रम है | अतः किसी भी चीज के बारे में, बड़ों से, गुरुओं से, जानना भी आवश्यक होता है | पथप्रदर्शित करना ही गुरु का कार्य है, चलना तो शिष्य को ही है किन्तु रास्ता कैसा होगा, ये गुरु बता दे तो शिष्य के लिए, चलना आसान हो जाता है और जहाँ वो पथ ध्येय से अलग हो जाता है तो गुरु की वाणी ही, शिष्य का पथ प्रदर्शित करती है कि गुरूजी ने ये रास्ता वैसा तो नहीं बताया, जैसा दिख रहा है अतः शिष्य को पता चल जाता है कि वो ये रास्ता सही नहीं है |
अतः बाबा ! आप मुझे अपनी वाणी से, उस अनिर्वचनीय आत्मा के बारे में अवश्य बताइए, जिसे कोई नहीं जानता है | जिसे कोई कोई ही, गुरु की कृपा से जान पाता है | आप मुझे उस आत्मा के बारे में बताइये, जो किसी को नहीं दिखती, किन्तु मनुष्य फिर भी आजीवन उसके द्वारा चलाया जाता रहता है | अपने अंदर बैठी उस आत्मा को, मनुष्य होते हुए भी, जो नहीं जान पाता है फिर जानवरों के लिये ये ज्ञानतत्व तो सर्वथा असम्भव है | जो मनुष्य इस दुर्लभ जीवन को प्राप्त करके भी, इस आत्मा के बारे में नहीं जानता है, जो इस आत्मा के बारे में उदासीन रहता है अथवा जिसमें इस आत्मा के बारे में कोई जिज्ञासा नहीं होती है, वह मूर्ख, इस दुर्लभ जीवन को प्राप्त करके भी, इसे व्यर्थ ही गँवा देता है | उसके और एक जानवर के जन्म लेने में कोई अंतर नहीं है | जैसे जानवर पैदा होता है, आजीवन भोजन करता रहता है, भोजन ढूंढता रहता है वैसे ही ये मनुष्य भी आजीवन भोजन के चक्कर में ही पड़ा रहता है | उसी भोजन का चिन्तन करता रहता है | जैसे जानवर बच्चे पैदा करता है, ऐसे ही ये मनुष्य भी बच्चे पैदा करता है, जैसे जानवर गू करता है, वैसे ही ये मनुष्य भी गू करता है | जैसे वो जानवर अपना समय पूरा होने पर मर जाता है, वैसे ही, ये मनुष्य भी अपना समय पूरा होने पर मर जाता है | वस्तुतः इस मनुष्य और जानवर में तभी तक कोई भेद नहीं है, जब तक ये मनुष्य अपनी बुद्धि को जागृत अवस्था में लाकर, आत्मतत्व का विवेचन नहीं करता | ये मनुष्य, इसके गुणों को तभी प्राप्त करता है, जब वो आत्मा नामक विषय को भली भांति जान लेता है |
आप मुझे उस आत्मा के बारे में कृपया बताइए, जो इस शरीर को संचालित करती है, चलाती है किन्तु जैसे विद्युत् पंखे को चलाती है, किन्तु तारों के अंदर दिखाई नहीं देती, वैसे ही इस आत्मा के भी गुणों के आधार पर, मुझ आँख वाले अंधे को, आप इस आत्मा के दर्शन कराइए बाबा !
मुझे नहीं पता था कि मैं क्या बोल रहा था किन्तु शायद अंदर की जिज्ञासा, आज शब्दों के रूप में बाहर आ रही थी | शायद कोई बहुत समय से दबी इच्छा थी, जो आज बाहर आ गयी और मुझे पूरा यकीन था कि वो सही जगह सामने आई है |
बाबा ने मेरी बात सुनकर कहा – “बालक ! आज तुमने अतिउत्तम बात कही है, तुम्हारी कही, इस बात को जो भी मनुष्य 2 घडी तक भी चिन्तन करेगा, उसे अवश्य ही आत्मतत्व की जानकारी हो जायेगी, ऐसा मैं विश्वास दिलाता हूँ | ये तुमने युक्तियुक्त वाणी में जो बात कही है, इसको पढने के बाद, मनुष्य के अंतचक्षु अवश्य खुल जायेंगे | अब मैं तुम्हें आत्मा के विषय में बताता हूँ |
क्रमशः
अभिनन्दन शर्मा
#अघोरी_बाबा_की_गीता
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