आप सभी ने देखा होगा कि कुछ लोग आलसी होते हैं, उन्हें आराम या खाली बैठना या सोना बहुत प्रिय होता है । ऐसे ही कुछ लोग होते हैं, जो एकदम खाली नहीं बैठते, बहुत मेहनत करते हैं, लगातार किसी न किसी काम में जुटे रहते हैं और आवश्यकता से अधिक नहीं सोते हैं । क्या संभव कारण हो सकता है इसका ? कम से कम मोटापा तो नहीं क्योंकि बहुत से लोग देखे हैं, जो मोटे तो हैं (खान पान की वजह से) लेकिन बहुत मेहनती होते हैं और धुन के पक्के भी । कुछ दिन पहले एक मित्र ने ऐसा प्रश्न पूछा तो कुछ विचार आए ।
हम कोई भी कार्य करते हैं तो उसके पीछे कोई न कोई मनोभाव अवश्य उत्तरदाई होता है, ऐसे ही यदि हम मेहनत करते हैं अथवा कोई लक्ष्यप्राप्ति साधन करते हैं तो उसके पीछे का मनोभाव होता है, उत्साह । उत्साहित व्यक्ति अपने ध्येय के प्रति उत्साहित होता है और उसी दिशा में कार्य करता है, मेहनत करता है । उसका फल भी उसे प्राप्त होता है । चाहे नौकरी में मेहनत हो, चाहे जीवन में मेहनत हो । मन में उत्साह का अभाव ही आलस्य का कारण है । जो लोग उत्साही नहीं होते, वो कह सकते हैं कि आलसी होते हैं क्योंकि उनका कोई लक्ष्य या ध्येय नहीं होता ।
वैसे तो उत्साह स्वयं से उत्पन्न मनोभाव है और आजकल इसके उत्पन्न होने के कुछ कारणों में लोभ और भय आते हैं लेकिन पुराने जमाने में इसमें एक और कारण था, वो था कर्त्तव्यपालन । रामचंद्र जी ने अयोध्या नगरी की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा, जैसे कोई मुसाफिर पीछे जाने वाले पेड़ों की तरफ नहीं देखता । ये कर्त्तव्यपालन का उत्कृष्ट उदाहरण है । यदि किसी को उत्साहित करना है तो उसे इन तीनों के प्रति ही सचेत करना होगा और आप देखेंगे कि अगर उसे कोई लक्ष्य मिल गया तो वो अवश्य ही काम में जुटना स्वतः चालू कर देगा ।
लेकिन किसी व्यक्ति के उत्साह को बढ़ाया या घटाया जा सकता है, जैसे कि प्रशंसा, मेहनत से मिलने वाले अचीवमेंट से उत्साहवर्धन होता है और वही बार बार किए जा रहे कार्य की बुराई, उपहास, व्यर्थ के आरोप हतोत्साहित करते हैं । उत्साह बढ़ने पर व्यक्ति और मेहनत से काम करता है वहीं हतोत्साहित व्यक्ति अपने कार्यों को करना छोड़ देता है अथवा उसके प्रयासों में कमी आ जाती है । उत्साहित होने वालों के नाम आपको बहुत पता होंगे लेकिन महाभारत में राजा शल्य, कर्ण के सारथि बने थे और उन्होंने कर्ण का हर पल उपहास किया और उसे हतोसाहित किया ।
ये जो ऊपर बताया है, मनोविज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष हैं और कैसे निकले, नाट्य शास्त्र के अध्ययन से । आप जीवन के ऐसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाल सकते है, अपने जीवन को ऐसी जानकारी से बेहतर कर सकते हैं, बशर्ते कि आपने शास्त्रों का अध्ययन किया हो, जिनमें अनमोल ज्ञान हैं । दूर से पता नहीं चलेगा कि नाट्य शास्त्र का मनोविज्ञान से क्या संबंध है, छंदशास्त्र का बायनरी सिस्टम से क्या संबंध है या धनुर्वेद का ट्रिग्नोमेट्री से क्या संबंध है किंतु यदि अध्ययन करेंगे अथवा किसी ऐसे के पास सत्संग करेंगे, जिसने इनका अध्ययन किया हो तो अवश्य ही जीवन एक उन्नत जीवन हो सकता है ।
ज्योतिष मन को ही प्रभावित करता है और जहाँ मनोभाव हों, वहां ज्योतिष आ ही जाता है | आलसी और काम करने में तेज, दोनों ही बुध से देखे जा सकते हैं | जिस व्यक्ति का बुध बली होगा, वो एक साथ बहुत से काम कर सकने वाला, खाली न बैठने वाला, सदैव व्यस्त रहने वाला होगा जबकि जिसका बुध कमजोर है, वो आलसी होना चाहिए | बुध स्नायुतंत्र को बताता है और स्नायुतंत्र से ही, व्यक्ति के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है अतः कुंडली में बुध की स्थिति से व्यक्ति के काम करने की क्षमता पता चलती है |