योग क्या है ?
योग क्या है ? प्रायः लोग योग करने जाते हैं, कुछ आसन करते हैं और कहते हैं कि हम योगा (not योग) करके आ रहे हैं | तो क्या ये आसन ही योग हैं ? अगर ये आसन है (हमें पता है), तो फिर योग क्या है ? क्या योग, आसन के अलावा भी कुछ है ? – ये वो प्रश्न हैं, जो हम बहुधा नहीं विचारते हैं और मानते हैं कि जो हम सुबह पार्क में करके आ रहे हैं, यही so called योगा है | इसके आलवा कुछ और योग हो ही नहीं सकता, क्योंकि हम तो यही जानते हैं और सारी दुनिया यही तो कर रही है | सारी दुनिया गलत तो नहीं हो सकती |
प्रश्न तो इनके अलावा भी हैं – यदि यही योग है, तो फिर गीता में बताया गया, भाव योग क्या है ? कर्मयोग क्या है ? ये भी तो योग ही हैं ! इन्हें कोई क्यों नहीं बताता ? इनके अलावा भी योग हैं, जैसे ध्यान योग, भक्ति योग, हठ योग, कुंडलिनी योग, सहज योग | फिर ये सब क्या हैं ? जो हम लोग सुबह करके आते हैं, वो इनमें से कौन सा है ? यदि इनमें से नहीं है तो फिर ये योग कौन से हैं और कैसे होते हैं ? देखिये, कितने प्रश्न खड़े हो गए, सिर्फ इसलिए कि हमने सोचना प्रारम्भ किया |
पर और सोचते हैं तो ये भी प्रश्न आता है कि और भी तो योगा (not योग) हैं, जैसे लाफ्टर योगा, न्यूड योगा, पॉवर योगा | ये सब क्या हैं ? क्या ये भी योग ही हैं ? अगर हाँ, तो कैसे और अगर नहीं तो क्यों नहीं ?
आपको यदि ज्ञानी होना है तो पहली शर्त है, जिज्ञासु होना क्योंकि कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि ज्ञान जिज्ञासु को मिलता है | अन्यथा आप जो रोज करते हैं, करते रहिये, बिना ये जाने कि हम ये क्यों कर रहे हैं ? ये कौन सा योग है ? यदि यही योग है, जिसकी शास्त्रों में बड़ी महत्ता बतायी गयी है तो क्या योग का उद्देश्य मात्र इतना है कि शरीर स्वास्थ्य रहे ? इतना छोटा उद्देश्य ? जबकि शरीर तो सबका बूढा होता है, शरीर में वात, पित्त और कफ की व्याधि तो सदैव उपस्थित है, तो क्या हम कह सकते हैं कि आसन (तथाकथित योग) करने वाले को कोई बीमारी नहीं होती, वो बूढा नहीं होता ! यदि फिर भी मनुष्य बूढा होता ही है, फिर भी बीमारियाँ होती ही हैं तो फिर इस प्रकार के योग का क्या लाभ ? क्या योग का उद्देश्य इतना छोटा ही है, जितना हम समझ रहे है !
ये प्रश्न हैं, जो हमें योग की बात करते समय, आसन (so called योगा) करते समय विचारने चाहिये | इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिये शास्त्र ज्ञान के सत्र में, हमने चर्चा शुरू की है, योग की | पिछले सत्र में, हमने चर्चा की इन्हें में से कुछ प्रश्नों की और सबसे पहला प्रश्न है कि योग क्या है ?
योग का अर्थ है – addition अर्थात जोड़ | किससे किसका जोड़ ? योग तो सदैव कम से कम दो चीजों का होगा | तो यहाँ किससे, किसको जोड़ने की बात की जा रही है | यहाँ बात की जा रही है, बाहर से भीतर को जोड़ने की | जब आप बाहर से, भीतर को जोड़ते हैं तब होता है, योग | यह संसार योग से ही चल रहा है | दो चीजें मिलती हैं, तो तीसरी चीज बनती है | मनुष्य स्त्री मिलते हैं तो संतान होती है | पॉजिटिव और नेगेटिव मिलते हैं तो एनर्जी क्रिएट होती है | ऑक्सीजन और हाइड्रोजन मिला दो, तो पानी बन जाता है | ऐसे ही चीजें जुडती रहती है और नयी नयी चीजें बनती रहती हैं | ऐसे ही बाहर और भीतर को जोड़ने से, योग करने से, शक्ति पैदा होती है, तेज पैदा होता है | और ये शक्ति इतनी भी हो सकती है, जितनी ब्रह्मा है, जितनी ईश्वर में है | ऐसे ही योगियों के लिये कहा जाता है – अहम् ब्रह्मास्मि | सो ऐसा करने के लिये, इस स्थिति में पहुचने के लिये योग किया जाता है | ये तो हो गया योग का उद्देश्य |
लेकिन हम बाहर से भीतर को जोड़ कब पायेंगे ? तब, जब हमें पता होगा कि बाहर क्या है ? और भीतर क्या है ? यदि हमें यही नहीं पता कि बाहर क्या है और भीतर क्या है, तो हम योग कैसे कर सकतें हैं ? अर्थात नहीं कर सकते | अतः योग करने के लिये पहले ये जानना पड़ेगा कि बाहर क्या है और भीतर क्या है ? पहले बात करते हैं, भीतर की | भीतर क्या है ? इस शरीर में क्या क्या है ? यह शरीर २४ तत्वों से मिलकर बना है |
5 महाभूत, 5 कर्मेन्द्रिय, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 तन्मात्रा, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार | ये सब क्या हैं ? कैसे काम करते हैं ? मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार क्या होता है ? कैसे काम करता है ? ये सब जानने के लिये, जुड़े आप सभी का स्वागत है, आखिर योग सब करते हैं सो योग जानना भी सभी को चाहिए | प्रैक्टिकल तब ही हो पायेगा, जब थ्योरी क्लियर होगी अन्यथा हम exercise को ही योगा समझते रह जायेंगे और उससे असली फायदा नहीं उठा पायेंगे | यदि आप आना चाहते हैं, तो कमेन्ट अवश्य करें ताकि आपको योग के पिछले सत्र की ऑडियो भेजी जा सके अन्यथा आप इस पोस्ट को शेयर कर सकते हैं | व्हात्सप्प और फेसबुक पर |