December 26, 2024
Geeta sar Part 3 Are we abusing God gifts ? What is Nimitta Matra with example by Dr Ashok Sharma

ईश्वर ने विभिन्न तत्वों से ये मनुष्य बनाया | बाकी सभी योनियों यथा पेड़, पौधे आदि से हमें ज्यादा तत्व दिये पूरे 24 ! जानवरों में भी एक तत्व नहीं दिया – बुद्धि | केवल मनुष्य के पास ही वो दी लेकिन मनुष्य क्या कर रहा है ? जो भी ईश्वर प्रदत्त उपहार हैं, जो फ्री हैं, उनको बर्बाद कर रहा है | मशीनों पर निर्भरता इस हद तक हो गयी है कि हम उसके दिए हाथ पैर को ज़रा सा चलाने में भी थक जाते हैं | हवा, जल, भूमि सबका दोहन, इस कदर कर रहे हैं कि अब वो खत्म होते जा रहे हैं, हवा प्रदूषित है, जल प्रदूषित है और भूमि का लगातार दोहन होता जा रहा है ? क्यों, क्योकि ये सब जीवन के लिए अमूल्य होते हुए, भी ईश्वर प्रदत्त हैं, फ्री हैं !

कृष्ण जी अर्जुन को बता रहे हैं कि तू तो बस निमित्त मात्र है, करने वाला तो कोई और है ! क्या होता है, निमित्त मात्र ? समझेंगे, एक उत्तम उदाहरण से |

यदि आपको ये वीडियो अच्छा लगे, तो इसे अवश्य अपने परिवार, मित्र और सोसाइटी में आगे शेयर कीजियेगा |

God made this man from different elements. He has given us more elements than all other species like trees, plants etc. Complete 24! Not even one element is given in animals – Wisdom. It was given only to man, but what is man doing? Whatever God-given gifts, which are free, is ruining them. Dependence on machines has grown to such an extent that we get tired of even a little movement of his hands and feet. Air, water, land are being exploited in such a way that now they are getting exhausted, the air is polluted, the water is polluted and the land is being continuously exploited? Why, because all these, while invaluable to life, are still God-given, free!

Krishna ji is telling Arjuna that you are just an instrument, there is someone else to do it! What happens, just for the sake of it?

Let’s understand with a good example. If you like this video, then definitely share it with your family, friends and society.

ईश्वरः एतत् पुरुषं भिन्न-भिन्न-तत्त्वेभ्यः निर्मितवान् । तेन अस्मान् अन्येभ्यः सर्वेभ्यः जातिभ्यः अधिकानि तत्त्वानि दत्तानि यथा वृक्षाः, वनस्पतयः इत्यादयः सम्पूर्णं २४! पशुषु एकमपि तत्त्वं न दीयते – प्रज्ञा। केवलं मनुष्याय एव दत्तम् आसीत्, किन्तु मनुष्यः किं करोति ? यत्किञ्चिद् ईश्वरदत्तं दानमुक्तं तत्त्वं नाशयति । यन्त्राश्रयः एतावत् वर्धितः यत् तस्य हस्तपादयोः किञ्चित् अपि गतिं कृत्वा वयं श्रान्ताः भवेम। वायुः, जलं, भूमिः च एतादृशरीत्या शोषणं क्रियते यत् इदानीं ते क्षीणाः भवन्ति, वायुः प्रदूषितः भवति, जलं प्रदूषितं भवति, भूमिः निरन्तरं शोषणं च भवति? किमर्थम्, यतो हि एते सर्वे जीवनाय अमूल्याः सन्तः अद्यापि ईश्वरप्रदत्ताः, मुक्ताः एव!

किं भवति, तदर्थमात्रम् ? उत्तमेन उदाहरणेन अवगच्छामः।

यदि भवद्भ्यः इदं विडियो रोचते तर्हि अवश्यमेव स्वपरिवारेण, मित्रैः, समाजेन च साझां कुर्वन्तु।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page