July 27, 2024
अघोरी बाबा की गीता aghori baba ki gita, part 2

अघोरी बाबा से जानिये तेज क्या होता ? शाप कैसे काम करता है ?

आबत सब जग देखिया…

“ये आवेश, दो प्रकार का होता है, सकारात्मक या नकारात्मक | जिसे अंग्रेजी में कह दिया गया, पॉजिटिव और नेगेटिव | लेकिन सकारात्मक माने पॉजिटिव आवेश नहीं है | नकारात्मक माने नेगेटिव आवेश नहीं है | पॉजिटिव और नेगेटिव आवेश से तो जो अर्थ होता है, वो है – धानावेश और ऋणावेश | जिसको हम एटम में पढ़ते हैं कि प्रोटोन Positively Charged (धनावेशित) और इलेक्ट्रान Negatively charged (ऋणावेशित) होता है | इसका मतलब हुआ कि सकारात्मक और नकारात्मक की अंग्रेजी, पॉजिटिव और नेगेटिव नहीं होगी |”

“आवेश सकारात्मक हो सकता है, नकारात्मक हो सकता है | लेकिन तेज, केवल सकारात्मक होता है, जो विभिन्न प्रकार के पुण्यों को करने से बढ़ता है | हमारे पुराणों, स्तुतियों और संहिताओं में ये शब्द बहुत जगह प्रयुक्त हुआ है | तुमने पढ़ा होगा, राम चन्द्र जी बड़े तेजस्वी थे | लगभग सभी ऋषियों को तेजस्वी कहा गया है, यानि वो सब सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण थे | ऐसे ही तुमने पढ़ा होगा कि लक्ष्मण जी, रणक्षेत्र में शक्ति लगते ही, तेजहीन होकर गिर पड़े | तेजहीन होकर गिर पड़े, मतलब उनकी सारी सकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो गयी और वो तेजहीन होकर गिर पड़े | तुमने कई कई जगह निस्तेज शब्द भी पढ़ा होगा, उसका भी यही अर्थ है | एक बीमार आदमी का तेज, एक स्वस्थ आदमी के तेज से बहुत कम होता है | उत्तर प्रदेश में, आज भी जब कोई गुस्सा करता है या आवेशित होता है तो कहते हैं, ‘क्यों तेजा दिखा रहा है !’ तेजा दिखाना मतलब अपने तेज को दिखाना, या कहें आवेशित होना | तेज दिखाने से, गुस्सा करने से, सकारात्मक ऊर्जा कम होती है, ठीक वैसे ही जैसे शाप देने से होती है, किसी के बारे में बुरा सोचने से होती है | तो जब आप ये सब कर्म करते हैं तो आप नकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं और धीरे धीरे आपका चरित्र नकारात्मक बन जाता है |”

“ये आवेश और तेज, दोनों शब्द हमारे शास्त्रों में अलग-अलग जगह दिए हुए हैं जैसे तेजहीन होना, निस्तेज होना, तेजस्वी, तेजोमयी, आवेशित इत्यादि | इसमें तुम भी कुछ और शब्द जोड़ सकते हैं | आदमी को कोशिश करनी चाहिए कि अपने अन्दर तेज लाये क्योंकि तेज को बढाया और घटाया जा सकता है | तेजस्वी बनने के लिए आप कई कार्य कर सकते हैं जैसे ध्यान, प्राणायाम, माला, जप, तप, व्रत,हवन इन सभी विधियों से तेज में वृद्धि होती है और झूठ बोलना, किसी का बुरा करना, हत्या या कोई अन्य पाप करने से तेज में कमी आती है |”

अघोरी बाबा की गीता aghori baba ki gita, part 2

“तेज, का सीधा कनेक्शन पाप और पुण्य से है | जिसके अन्दर जितने पुण्य का संचय, उसका उतना अधिक तेज | जिसमें तेज होगा, उसके आस-पास का माहौल भी, उसके तेज से बदलेगा | जैसे पुराने जमाने में कहते थे, कि फलां ऋषि के आश्रम में शेर और हिरन, एक ही घाट पर पानी पीते थे तो ये कोई चमत्कार नहीं था, अपितु ऋषि के तेज का ही प्रभाव होता था, जहाँ शेर के मन में भी हिंसा का भाव नहीं आता था | जहाँ सकारात्मक लोग होते हैं, वो जगह शांत और ख़ुशी से भरपूर होती है और इसके उलटे, आवेशित (व्यर्थ गुस्सा करने वाले) लोगो के आस पास का वातावरण भी आवेशित ही होता है | इसीलिए हमारे ऋषियों ने धर्म के दस लक्षण बताये थे –

धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌ ||

ये सब हमारे तेज की रक्षा करते हैं | जब आप तेजस्वी होते हैं तो आप में शाप देने की और दूसरों के नकारात्मक विचार को हरने की शक्ति आती है |”

मैं इतने ध्यान से गीता जी की बातें सुन रहा था कि मेरा ध्यान ही नहीं था कि आस पास क्या हो रहा है ! तेज, तो बहुत गहरी चीज है | किशोर जी ने, पाप और पुण्य के बारे में बहुत गहरे में बताया था, मैं तो उसे ही समझ रहा था, कि बड़ी जबरजस्त फिलोसफी है, पर ये तो और १० कदम आगे आ गए | हमारे शास्त्रों में, कितनी बाल की खाल निकाली गयी है | एक एक शब्द के कितने गहरे में गए हैं, पहले, कर्म, फिर कर्तव्य, फिर उस से बने पाप और पुण्य, फिर पाप और पुण्य से बना ‘तेज’ | मुझे अब समझ आ रहा था, कि ये गिर्राज जी, किशोर जी, गीता जी, जो कुछ मुझे बता रहे हैं, ये सब सीक्वेंस में, बड़े क्रमबद्ध तरीके से मुझे बताया जा रहा है | अगर कोई बाबा या कोई पंडित मुझे पहले ही दिन, अगर ये बोलता कि तेज से शाप देने की शक्ति आती है तो मैं बोलता – अबे वंटा समझा क्या रे ! कुछ भी बकेगा तो मैं मानेगा क्या ? मैं हँसता उस पर, मैं मजाक उड़ाता उसका, मुझे उस समय कुछ समझ नहीं आता, और जो समझा रहा होता, उसे ही बोलता कि अबे हट, हवा आने दे | ये किताबी बातें, मुझे मत बता | पर अब मेरी सब समझ में आ रहा है | अब मैं ऐसा नहीं बोल सकता क्योंकि ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं | इसे किताबी बातें कह कर नकारा नहीं जा सकता | लेकिन इतनी आसानी से माना भी नहीं जा सकता था |

“पर तेज से, शाप कैसे दिया जा सकता है ? रोगी का तेज कम होता है, स्वस्थ मनुष्य का तेज अधिक होता है तो क्या ये तेज ट्रान्सफर हो सकता है ? क्या इससे बीमार आदमी सही हो सकता है ? आप क्या कह रही हैं ! आप मेडिकल साइंस के विपरीत बोल रही हैं ! मैं इस बात को मानना चाहता हूँ लेकिन मान नहीं पा रहा हूँ |” – मैंने सवालों की लड़ी लगा दी, बात ही कुछ ऐसी थी | आँख बंद करके तो खाना नहीं खा सकते न, देखना तो पड़ता है, किधर सब्जी है और किधर पूड़ी, तो फिर ये जो कह रही हैं, इसको कैसे आँखें बंद करके मान लूं, भले ही बात कितनी भी लोजिकल या सीक्वेंशियल क्यों न हो |

किशोर जी ने जब मुझे पहली बार डांट कर भगाने के लिए बोला था तब यही बात समझ में आई थी कि अगर किसी बात पर विश्वास न भी हो, तो भी उसका मजाक नहीं उडाना चाहिए, उसको एकदम से रिजेक्ट नहीं करना चाहिए | उसको समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए | यदि कोई ज्ञानी व्यक्ति कुछ कह रहा है तो उस पर यदि आँख बंद करके भरोसा न भी हो तो भी उसे रिजेक्ट नहीं करना चाहिए अपितु उस व्यक्ति पर विश्वास रख कर, प्रतिप्रश्न करके, उस विषय के और गहरे में जाना चाहिए | उसी सीख की वजह से, मैंने गीता जी से, इस विषय को समझने के लिये इतने सारे प्रश्न कर लिये |

क्रमशः
अभिनन्दन शर्मा
#अघोरी_बाबा_की_गीता – 102 (Published)
अघोरी बाबा की गीता – 102
दिल से …
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