इस बार की बालसंस्कारशाला 16 में बच्चों को बताया कि सोमवार के बाद मंगलवार ही क्यों आता है और शनिवार के बाद रविवार ही क्यों आता है ? शुक्रवार क्यों नहीं आ जाता ?
बच्चों को बताया कि पृथ्वी एक दिन में 360 अंश (अंश यानि डिग्री) घूमती है और एक राशि 30 अंश की होती है (जो कि पहले बताया जा चुका था) इस राशि के आधे हिस्से, यानि 15 अंश घूमने में धरती को 1 घंटा लगता है | जब पृथ्वी 360 अंश घूमती है, मतलब पूरा एक दिन और एक रात, तो इसे ज्योतिष में कहते हैं, अहोरात्र | अहो माने दिन और रात्र का अर्थ रात से है अतः एक दिनरात मतलब अहोरात्र | इस अहोरात्र में से, अ हटा दो और त्र हटा दो तो रह जाता है, होरा | हमारे यहाँ जब पृथ्वी 15 अंश घूमती है, तो उस समय को 1 होरा कहते हैं | यही होरा, अंग्रेजी में hour बन गया | इसी होरा से, ज्योतिष में होराशास्त्र बन गया | एक दिन में 24 घंटे इसीलिए होते हैं क्योंकि दिन में 24 होरा होती हैं क्योंकि एक होरा में पृथ्वी 15 अंश घूमती है |
इतना बताने के बाद, बच्चो को बताया कि प्रत्येक होरा का एक स्वामी गृह होता है | ग्रहों की स्थिति शनि से प्रारम्भ करने पर, ग्रहों का क्रम बनेगा – शनि, गुरु, मंगल, सूर्य (पृथ्वी के स्थान पर सूर्य, GeoCentric model), शुक्र, बुध और चन्द्रमा (आखिर में केंद्र में पृथ्वी, पर क्योंकि पृथ्वी के होरा के स्वामी हैं अतः इसे नहीं गिनेंगे) इनको इसी क्रम में नम्बरिंग कर लीजिये | शनि (1), गुरु (2), मंगल (3), सूर्य (4), बुध (5), शुक्र (6), चंद्रमा (7) |
अब उदाहरण लीजिये, शनिवार का | शनिवार का अर्थ है कि उस दिन सूर्योदय के समय की पहली होरा का स्वामी शनि है | अब क्रम से, अगली होरा का स्वामी गुरु (२) होगा | फिर तीसरी होरा का स्वामी मंगल (3) होगा, फिर चौथी होरा का स्वामी सूर्य (४) होगा, फिर पांचवी होरा का स्वामी बुध होगा, फिर छठी होरा (होरा माने घंटा, भूले तो नहीं न) का स्वामी शुक्र (६) होगा और फिर सातवीं होरा का स्वामी चंद्रमा (7) होगा | फिर आठवीं होरा का स्वामी पुनः शनि होगा और ये क्रम चलता रहेगा | इस क्रम से, 25वें घंटे अर्थात होरा का स्वामी, अर्थात अगले दिन के सूर्योदय के समय के होरा का स्वामी सूर्य बैठेगा | इसके लिए निम्न सारणी देखिये, २५वें होरा का स्वामी सूर्य दिख रहा है न | इस प्रकार, हर दिन के सूर्योदय के होरा का स्वामी, आज के दिन से, चौथा गृह होगा, जैसे शनिवार के अगले दिन का स्वामी सूर्य (चौथा, शनि, फिर गुरु, फिर मंगल और फिर सूर्य) होगा |
इसी प्रकार सोमवार के दिन के सूर्योदय के होरा का स्वामी सूर्य, से चौथा अर्थ चन्द्रमा होगा | इसी प्रकार सातों दिनों के नाम, उनके सूर्योदय के होरा के स्वामी के आधार पर रखे गए हैं | सोमवार (चंद्रमावार) के बाद मंगलवार (फिर चौथा), फिर बुधवार, फिर गुरूवार, फिर शुक्रवार, फिर शनिवार | अर्थात, अब हमें मालूम है कि हमारे यहाँ शनिवार के बाद, रविवार ही क्यों आता है, मंगलवार क्यों नहीं आता ? मजेदार बात ये है कि वेस्टर्न साइंस को नहीं पता कि ऐसा क्यों है ? आप विकिपीडिया खोलेंगे तो उसमें लिखा मिलेगा कि सबसे पहले रोमन ने, 8 के बाद 7 दिन का सप्ताह बनाया (क्यों ? उन्हें कौन सा ब्रह्म ज्ञान हुआ ? क्यो उन्होंने ग्रहों के नाम पर दिनो के नाम रखे ? ऐसा कहीं कुछ नहीं है, आप गूगल कर लीजिये, मुझे तो नहीं मिला)
पर अब यहाँ के बेसिक ज्योतिषज्ञान से हमें पता है कि सप्ताह के दिनों के नाम कैसे पड़े और उनका यही क्रम क्यों हैं ? आप भी अपने बच्चों को बताइयेगा अवश्य |
इसके बाद बच्चो को महाभारत में, धृतराष्ट्र के, पांडवों के यश से चिंतित होने की कथा सुनाई | उसके रातों की नींद उड़ गयी और उसने अपने राजनीति के मंत्री को बुलवाया कि भैया, इन पांडवों का क्या किया जाए ? उसके मंत्री ने बताया कि महाराज, राजा का काम है कि अपने दोषों को छिपाए रखे और दुसरे के दोषों पर नजर रखे | अपने दोष किसी से न कहे और दुसरे के दोष का पता रखे और जब शत्रु का नाश करने को चाहे तो उसके दोषों पर हमला कर दे | महाराज, तीन चीजों को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए, रोग, कर्ज और शत्रु | ये तीनो ही, हलके लेने पर, बाद में बड़ाभारी कष्ट देते हैं | राजा, कोई भी कार्य आधा न छोड़े | जो कार्य हाथ में ले, उसे पूरा अवश्य करे अन्यथा जैसे पैर में चुभा काँटा, आधा निकालने पर, बाद में शरीर में रहने पर पक जाता है और मवाद बन जाता है, वैसे ही वो अधूरा कार्य भी बाद में कष्ट देता है | (कहानियों में ही नीतिशास्त्र सिखाया जा सकता है और बच्चे ध्यान से सुनते भी हैं)
महाराज, राजा को चतुर होना चाहिए, इस सन्दर्भ में आपको एक चतुर गीदड़ की कहानी सुनाता हूँ | उसके चार मित्र थे, चूहा, बाघ, भेड़िया और नेवला | वो सभी एक तेज हिरन को मारना चाहते थे पर उसकी तेजी की वजह से उसे मार न पाते थे | गीदड़ ने योजना बनाई कि जब हिरन सो रहा हो, तो चूहा जाकर, उसके पैर काट ले फिर वो तेज नहीं भाग पायेगा | फिर हम उसका शिकार कर लेंगे | इसी प्रकार, उन सबने मिलकर, हिरन का शिकार कर लिया | पर गीदड़ के मन में, उस हिरन को खाने की इच्छा हुई तो उसने बाकी सबको नहाने भेज दिया क्योंकि भोजन, नहाने के बाद ही करना चाहिए (एक और शिक्षा) और खुद हिरण की रक्षा में बैठ गया | जब बाघ नहा कर आया तो गीदड़ बोला, भाई, अभी चूहा आया था, बोल रहा था कि अगर मैं न होता, तो आज ये हिरन नहीं मारा जाता | बाघ की शक्ति पर तो धिक्कार है, जो मेरे भरोसे उसने ये हिरन मारा | उसकी ये बातें सुनकर, मेरी तो इस हिरन को खाने की इच्छा नहीं हो रही, आप का मन करे तो इसे खा लो | बाघ ने कहा कि अगर उसको ऐसा लगता है तो इसे उसे ही खा लेने दो | मैं अपनी शक्ति से दूसरा शिकार कर लूँगा | ये कहकर वो बाघ वहां से चला गया | फिर चूहा आया, तो गीदड़ उससे बोला कि बाघ ने कहा कि ये हिरन तो चूहे ने मारा है, इसको अपने ऊपर बड़ा घमंड हो गया है, आज हिरन से पहले, इस चूहे का ही नाश्ता कर लेता हूँ | अभी वो शेरनी को बुलाने गया है | ये सुनकर चूहा भी भागकर बिल में छुप गया |
इसके बाद भेड़िया आया तो गीदड़ ने उससे कहा कि भैया, बाघ तुम पर बड़ा नाराज है, कह रहा है कि शिकार में कुछ मदद तो करता नहीं और खाने आ जाता है | आज इस भेडिये को ही निबटा देता हूँ और ये कहकर शेरनी को लेने गया है | ये सुनकर भेड़िया भी वहां से भाग लिया | आखिर में नेवला आया तो गीदड़ ने कहा कि भैया गीदड़ ऐसा है, मैं इस हिरन को खाना चाहता हूँ, बाघ, चूहे और भेडिये को तो मैंने मार के भगा दिया, अब अगर तुममें शक्ति हो, तो तुम भी मुझसे लड़कर इस हिरन को जीत कर दिखाओ | ये सुनकर, नेवला भी वहां से भाग गया |
अतः हे राजन ! राजा को भी चतुर होना चाहिए और अपना मतलब निकालने वाला होना चाहिए | यदि विपत्ति में हो तो शत्रु के अधीन दीन-हीन बनकर रहे और मौका पाकर, शत्रु को परास्त कर दे, यही राजा का कर्तव्य है क्योंकि राजा को अपनी बुद्धि पर ही विश्वास रखना चाहिए | (एक और सीख) | आगे की कहानी अगले सत्र में |
इस प्रकार कहानी सुनाने के बाद, बच्चो को बनैठी घुमवाई और सत्र का अंत कर दिया |
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