window._wpemojiSettings={"baseUrl":"https:\/\/s.w.org\/images\/core\/emoji\/16.0.1\/72x72\/","ext":".png","svgUrl":"https:\/\/s.w.org\/images\/core\/emoji\/16.0.1\/svg\/","svgExt":".svg","source":{"concatemoji":"https:\/\/shastragyan.in\/wp-includes\/js\/wp-emoji-release.min.js?ver=6.8.2"}}; /*! This file is auto-generated */ !function(s,n){var o,i,e;function c(e){try{var t={supportTests:e,timestamp:(new Date).valueOf()};sessionStorage.setItem(o,JSON.stringify(t))}catch(e){}}function p(e,t,n){e.clearRect(0,0,e.canvas.width,e.canvas.height),e.fillText(t,0,0);var t=new Uint32Array(e.getImageData(0,0,e.canvas.width,e.canvas.height).data),a=(e.clearRect(0,0,e.canvas.width,e.canvas.height),e.fillText(n,0,0),new Uint32Array(e.getImageData(0,0,e.canvas.width,e.canvas.height).data));return t.every(function(e,t){return e===a[t]})}function u(e,t){e.clearRect(0,0,e.canvas.width,e.canvas.height),e.fillText(t,0,0);for(var n=e.getImageData(16,16,1,1),a=0;a
September 8, 2025

यस्याज्ञया जगतस्रष्टा विरंचिः पालको हरिः |
संहर्ता कालरुद्राख्यो नमस्तस्यै पिनाकिने ||
—- स्कन्द पुराण

अर्थ – जिनकी आज्ञा से ब्रह्मा जी इस जगत की सृष्टि तथा विष्णु भगवान् पालन करते हैं और जो स्वयं ही कालरूद्र नाम धारण करके इस विश्व का संहार करते हैं, उन पिनाकधारी भगवान् शंकर को नमस्कार है |

अंतर्ध्यान – हम सब जानते हैं कि ब्रह्मा जी जगत की सृष्टि करते हैं, उसे बनाते हैं, व्यवस्थित करते हैं और विष्णु जी उसका पोषण करते हैं और रूद्र इसका संहार करते हैं | ये सब कहानी जैसा ही है….लेकिन अगर हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को देखें तो पायेंगे कि ये सृष्टि तो रोज बनती और रोज समाप्त होती है | रोज ब्रह्मा जी इसको सजा धजा के तैयार करते हैं, विष्णु जी रोज इसका पालन करते हैं और शिव जी रोज इसका नाश करते हैं | कैसे ? सोचिये मेरे साथ, रोज सुबह आप उठते हैं, प्लान करते हैं, आज क्या क्या करना है, कौन कौन से कार्य करने हैं और उसके लिए तैयार होते हैं और सुबह का सारा काम ब्रह्मा जी को समर्पित हो जाता है | उसके बाद जो आपने प्लान किया है उसको पूरा करने के लिए, भोजन पानी प्राप्त करने के लिए आप मेहनत करते हैं, कर्म करते हैं और इस प्रकार विष्णु जी सृष्टि का पालन करते हैं और फिर जब रात हो जाती है तो आप सो जाते हैं…. या यों कहें की मुर्दे के समान लेट जाते हैं | सोते में आपको कुछ होश नहीं होता, कहाँ बीवी है, कहाँ बच्चे हैं, आप कहाँ है और दुनिया कहाँ है…. बस शिव जी ने संहार कर दिया उस सारे संसार का, जिसे आपने सुबह से पैदा किया, जिसका पालन किया वो सोते ही नष्ट हो गया… आप सब भूल गए…| ये सृष्टि इसी प्रकार रोज पैदा होती है, रोज चलती है और रोज समाप्त होती है और ऐसी सृष्टि से मनुष्य मोह करता है |

यही तो पुछा था एक बार सूत जी ने विष्णु जी से कि कैसे कोई मनुष्य इस विषयों से डूबे इस संसार में बिना विषयों में लिप्त हुए रह सकता है ? और विष्णु जी ने बताया कि जब आप सोते हो, स्वप्न देखते हो, तो कई बार स्वप्न में आप रिश्तेदारों को देखते हो, लड़ाई देखते हो, मृत्यु तक देख लेते हो, लेकिन क्या वाकई आपका शरीर उसमें लिप्त होता है ? नहीं | जैसे स्वप्न की स्थिति में आपका शरीर ही स्वप्न देख रहा है पर उसमें लिप्त नहीं है, जैसे ही आपकी नींद खुलती है आप उस सब से ध्यान हटा कर अपने काम में लग जाते हैं वैसे ही इस संसार को भी स्वप्न मानो और ये मानो कि ये सब झूठ है, स्वप्न है | यह सत्य नहीं है | फिर आप किसी भी विषय में लिप्त नहीं हो सकते |

यही तो कृष्ण जी ने गीता में कहा है – “मैं पानी में हूँ, पर गीला नहीं हूँ |” अरे ! पानी में है पर गीले नहीं हैं ऐसा कैसे हो सकता है ? ऐसा हो सकता है, आप पानी (संसार) में हैं पर पानी (संसार) का जो गुण है, गीला करना (माया/विषय) मैं उसमें लिप्त नहीं हूँ, वो पानी आपको गीला नहीं कर सकता |

अरे, सब बड़ी बड़ी बातें हैं, ऐसा कभी हो सकता है क्या ? हाँ, हो सकता है, बड़ा आसान है | एक लाला जी थे, एक साधू भिक्षा के लिए लाला जी के पास आया, साधू ने पुछा लाला जी, इतना धन है थोडा दान दीजिये, लाला जी ने कहा ये धन तो मेरा नहीं है | साधू ने पुछा किसका है ? लाला जी बोले – ठाकुर जी का है | अच्छा, तो फिर ये घर किसका है ? लाला बोले – ये भी ठाकुर जी का है | फिर साधू ने पुछा, फिर ये गद्दी किसकी है ? लाला जी बोले, ये भी ठाकुर जी की गद्दी है | साधू ने पुछा, अच्छा ठाकुर जी किसके हैं ? लाला जी ने कहा ठाकुर जी तो मेरे हैं | ये सुनते ही वो साधू चरणों में पड़ गया…..|

अब इसे और विस्तार देते हैं….. ये बच्चे किसके हैं ? ठाकुर जी के हैं.. वो ही इनका बाप है | और ये पत्नी किसकी है ? ये भी ठाकुर जी की ही अमानत है, वो ही इसके मालिक हैं | और ये सब नौकर चाकर, घर बार, व्यापार ? ये सब भी ठाकुर जी का ही है, उन्ही का दिया हुआ है, जब चाहे तब ले लेंगे | और ठाकुर जी किसके हैं ? वो तो मेरे हैं |

बस अब आप पानी में हैं पर गीले नहीं है | आप जाग रहे हैं, पर स्वप्न में हैं | आप कर्म कर रहे हैं पर कर्मों में संलिप्त नहीं हैं |

ॐ श्री गुरवे नमः ||

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © All rights reserved. | ChromeNews by AF themes.

You cannot copy content of this page