November 21, 2024

धर्मो हि मह्ताभेष शरणागतपालनम । शरणागतम च विप्रं च रोगिणं वृद्धमेव च ।।

सन्दर्भ – यह उक्ति उस समय की है जब इंद्र बलि के पास समुन्द्र मंथन का प्रस्ताव ले कर जाते हैं । क्योंकि बलि राक्षसराज थे और उनका देवताओ से बैर था अतः वह इंद्र से मिलने के लिए भी अग्रसर नहीं हुए । तब नारद जी ने बलि को समझाया ।

“दैत्यराज ! शरण में आये हुए प्राणी की रक्षा करना महापुरुषों का धर्म है । जो लोग ब्राह्मण, रोगी, वृद्ध तथा शरणागत की रक्षा नहीं करते, वे ब्रह्म हत्यारे हैं ।”

सन्दर्भ – (स्क मा  के  9। 52-54)

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