July 27, 2024
images 1 योग 4

योग – 4

अभी तक हमने, योग क्या है और योग क्या नहीं है, इसकी बात की | 5 ज्ञानेन्द्रियों, 5 महाभूत और तन्मान्त्राओं के बारे में जाना | अब इससे थोडा और गहरे जाते हैं | सो बात करते हैं, इन तन्मात्राओं के नाम की |

ये पाँचों तन्मात्राओं के नाम हैं – शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श अतः कह सकते हैं कि इन पांचों तन्मात्राओं के द्वारा जो जानकारी हमारे मन को प्राप्त होती है, उन सभी जानकारियों का वृहद डेटाबेस हमारे अंदर पहले से मौजूद है (जैसा पिछले भाग में समझाया था)”

“पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ पाँचों महाभूतों से सम्बंधित हैं । जैसे कान नाम की जो ज्ञानेन्द्रिय है, ये आकाश तत्त्व से बनी है और शब्द तन्मात्रा आकाश से सम्बंधित है । इसी प्रकार, रूप तन्मात्रा, आँख नाम की ज्ञानेन्द्रिय से बनी है, जो कि अग्नि तत्त्व से बनी है । यहाँ अग्नि का प्रकाश गुण लक्षित है क्योंकि आँख उसी से काम करती है । रस तन्मात्रा सम्बंधित है, जिह्वा से और जिह्वा बनी है, जल तत्व से, जिसकी वजह से इसको रसना भी कहते हैं ।“

“इसी प्रकार, गंध तन्मात्रा जुडी है, घ्राण इन्द्रिय (नाक में जो हड्डी होती है) से, जो कि पृथ्वी तत्व से बनी है । पृथ्वी तत्व से ही सभी हड्डियों उत्पन्न हुई हैं और नाक की हड्डी ही, एकमात्र, सबसे बाहर रहने वाली हड्डी है, जिसकी वजह से, हम गंध प्राप्त करते हैं । और आखिरी स्पर्श तन्मात्रा भी, त्वचा से सम्बन्धित है, जो कि वायु से बनी है । अतः वायु तत्व की तन्मात्रा है स्पर्श । यहाँ ये ध्यान रखना कि हम रोम छिद्रों से भी वायु का प्रवाह करते हैं अर्थात वायु लेते और छोड़ते हैं | जैसे किसी कांटेक्ट डिटेक्टर के आगे, कोई चीज आने से, उसका मार्ग अवरुद्ध हो जाने से, उसके सेंसर को पता चल जाता है कि कुछ आया ऐसे ही इन रोमछिद्रों से भी पता चल जाता है कि किसी चीज से इनका मार्ग अवरुद्ध हुआ | पूरा शरीर सेंसरों से भरा पड़ा है | इस प्रकार, ये 15 आपस में जुड़े हुए हैं |”

सोचने वाली बात है कि पुराने लोग, कितना गहरा सोचते थे । हमारे पास सोचने को कितना कम है ? कितना अद्भुत अध्ययन किया हुआ है, हमारे पूर्वजों ने और हम अपने पूरे जीवन में, इस प्रकार की बातें, जो सीधा हमसे जुड़ी हुई हैं, उन्हें बिना जाने ही निकाल देते हैं | इस दुनिया में, सबसे कम समय अगर हमारे पास है तो शायद अपने लिए ही है क्योंकि अपने बारे में तो हम जरा भी नहीं सोचते, विचारते ! सारा जीवन, ऑफिस, घर, बच्चे, बीवी, परिवार इसी को सोचते सोचते निकल जाता है | हम अपने बारे में, इतना गहन अध्ययन शायद कभी करते ही नहीं हैं । पर ये तो कुल 15 ही हुए ! बाकी तत्व ?

बाकी तत्व तब, जब आप इन 15 तत्वों के नाम, कमेन्ट में लिख कर दिखा देंगे, बिना पुरानी पोस्ट को देखे और अगर नहीं लिख पाए तो समझिएगा कि आप केवल पढ़ रहे हैं, गुन नहीं रहे हैं, ऐसे पढने का कोई लाभ नहीं होगा, अतः कहीं नोट्स बनाइए | बताइए, इन 15 तत्वों के नाम जरा ?

ठीक है, आशा करता हूँ कि आप लिख लेंगे | अब 5 कर्मेन्द्रियों की बात करते हैं | क्या नाम हैं इनके ? इनके नाम हैं – वाणी, हाथ, पैर, गुदा और जननेद्रिय ।”

पर सोचने वाली बात ये है कि मुख को कर्मेन्द्रिय क्यों कहते हैं ? क्या काम करता है मुख ? कभी सोचा है ? देखते हैं, आप अपने बारे में, कितना विचारते हैं अथवा पढ़े हुए के बारे में कितना विचारते हैं ? बताइए, मुख क्या काम करता है ?”

आपमें से कितने लोगों ने उत्तर दिया कि मुख से हम भोजन ग्रहण करते हैं, ये खाना खाने का काम करता है, इसलिए इसे कर्मेन्द्रिय कहते हैं… जिसके भी मन में ये उत्तर है तो समझें कि उत्तर………. गलत है | क्योंकि खाना तो आजकल डॉक्टर लोग, नाक से भी खिला देते हैं, पाइप लगा कर ? फिर ये केवल मुख का काम कैसे हुआ ? इरोम शर्मीला को जानते हो ? मणिपुर की इस लड़की ने, सरकार की गलत नीतियों के विरोध में 15 साल तक मुंह से खाना नहीं खाया, तो उसको डॉक्टर 15 साल तक, नाक से खाना खिलाते रहे, उसे जिन्दा रखने के लिए | तो इसका अर्थ ये हुआ कि मुख का काम खाना खाने का नहीं है |

फिर मुंह से हम क्या कर सकते हैं ? अरे भाई ! मुंह से आप बोल सकते है, नाक से आप बोल नहीं सकते हैं । इसलिए मुंह एक कर्मेन्द्रिय हैं । अब बताओ, हाथ से हम क्या करते हैं ? बताइए, बताइए !!!

आप सोच रहे होंगे कि हाथ से हम अपने दैनिक कार्य करते हैं । पर ऐसे नहीं चलेगा, Be Specific ! कौन सा कार्य केवल हाथों से ही कर सकते हैं ?

अरे भाई ! कोई चीज ग्रहण कैसे करोगे ? हाथों से ही करोगे न ? अतः हाथों से हम ग्रहण करते हैं ।

इसी प्रकार, पैरों से चलते हैं (बच्चा पैरों से ही चलता है), गुदा से मल निष्काषित करते हैं और जननेद्रिय से, संतानोत्पत्ति करते हैं । इस प्रकार, ये कुल हो गये, शरीर में स्थित 20 तत्व ।

अब और आगे चलते हैं – अन्तःकरणचतुष्टय पर । अन्तःकरणचतुष्टय में चार चीजें और बतलाई गयी हैं । पहला है, मन, दूसरी है बुद्धि, तीसरा है चित्त और चौथा है अहंकार । इन चारों से परे, एक चीज और बताई गयी है और वो है – आत्मा ।

अब ध्यान से सुनना । जो मैं आपको बताऊंगा, ये सब किसी शास्त्र में लिखा नहीं मिलेगा और अगर मिलेगा तो इतना गूढ़ मिलेगा कि समझ ही नहीं आएगा । अतः मेरी बातों को ध्यान लगाकर सुनना क्योंकि बहुत से लोगों के जीवन गुजर जाते हैं किन्तु इन सबको नहीं समझ पाते और ग्रंथों में अपने आपको फंसा-फंसा कर, तत्वज्ञान को समझने से चूक जाते हैं ।”

“शुरू करते हैं मन से । जैसे हमने पता किया कि कर्मेन्द्रियों का क्या काम है ? ज्ञानेन्द्रियों का क्या काम है ? ऐसे ही सोचो और बताओ, मन का क्या काम है ?”


इसकी बात करेंगे, अगले भाग में | मजा आ रहा है या नहीं ? बताइए, इन चार भागों से आपको क्या समझ आया, क्या नयी बात पता चली | कोई एक बात भी नयी पता चली हो तो कमेन्ट करके बताइए | मुझे भी तो पता चले, इतनी मेहनत से लोग केवल पढ़ रहे हैं या कुछ समझ भी रहे हैं !!! और हाँ, एक बात, ऐसे तत्व ज्ञान को आगे बढाने की जिम्मेदारी, अकेले मेरी नहीं है, आप सभी की भी है | कुछ आप भी करेंगे या सब मैं ही करूँगा ?? हांय !!!

पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page