December 13, 2024
योग योगासन

योग – 3

पिछले भागों में हमने ये जाना कि योग क्या होता है और योग क्या नहीं होता है ? हमने ये भी जाना कि लाफ्टर योगा, योग क्यों नहीं है, न्यूड योगा, योग क्यों नहीं है या केवल आसन करना योग क्यों नहीं है | हमने ये भी समझा कि बिना शरीर को समझे, योग करना संभव नहीं है | इसीलिए हमने शरीर के 24 तत्त्वों में से १० तत्वों की चर्चा की, जिसमें हमने 5 महाभूत और 5 ज्ञानेन्द्रियों की चर्चा की | (जिन्होंने पहले २ भाग न पढ़े हों, वो कमेन्ट करके लिंक लेकर पढ़ सकते हैं) अब उससे आगे –


हमें संसार में जो कुछ भी ज्ञान होता है, वो इन 5 ज्ञानेन्द्रियों से ही होता है | या तो हम किसी चीज को छू कर महसूस करते हैं कि ठोस है या सॉफ्ट, या फिर गर्म है या ठंडी | या फिर हम चीजों को सूंघ कर महसूस करते हैं, खुशबूदार है या बदबूदार है | या फिर हम चीजों को देख कर उनके रूप (रंग, आकार आदि) के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं | या फिर हम चीजों के शब्द सुनकर उनके बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं | मेटल के गिरने का शब्द अलग होगा और लकड़ी के गिरने का अलग | बच्चे के रोने की आवाज अलग होगी और कुत्ते के भौकने की अलग | इस प्रकार हमें जो कुछ भी ज्ञान होता है, वो इन 5 ज्ञानेन्द्रियों से ही होता है | ज्ञान प्राप्ति का और कोई छठा साधन नहीं है | लेकिन 5 ज्ञानेन्द्रियों (आँख, नाक, कान, त्वचा और जीभ) से हमें जो ज्ञान होता है, वो कैसे होता है ? क्या आँख को पता है कि जो फोटो खींचा है, वो सही खिंचा है या नहीं ? क्या कान को पता है, कि कौन सी आवाज कुत्ते की है और कौन सी आदमी की ? उत्तर है ….. नहीं !


ये पाँचों तो मात्र एक प्रकार के सेंसर हैं, जो सिर्फ सेन्स करते हैं | आँख तो जैसे एक कैमरा है, जैसे कैमरे को नहीं पता कि फोटो अच्छी है या खराब ऐसे ही इस आँख को नहीं पता कि फोटो अच्छी है या खराब | कोई चीज गोरी है या काली, कोई चीज लम्बी है या छोटी, ये सब आँख को नहीं पता | ये तो मात्र केमरा है | ये सब बातें बताता है, हमारा मन | ये ज्ञानेन्द्रियाँ, सब प्रकार की इनफार्मेशन मन को भेजती हैं और फिर मन बताता है कि ये चीज गोरी है या काली | ये दिन है या रात | आँख को वास्तव में कुछ नहीं पता | ऐसे ही कान सिर्फ डाटा भेजता है, नाक सिर्फ डाटा भेजती है | ये सब सेंसर हैं, जिन्हें हम ग्यानेंद्रीयाँ कहते हैं | ये जो ज्ञानेन्द्रियों से इनफार्मेशन मन के पास जाती हैं, इसे कहते हैं तन्मात्रा | क्या कहते हैं ? ……..तन्मात्रा |


तन्मात्रा माने क्या ? तन्मात्रा माने कि दुनिया में जो कुछ है, उसका डाटा, हमारे शरीर में पहले से मौजूद है, इन तन्मात्राओं के रूप में | इसे आप कह सकते हैं quantification. और आसानी से समझते हैं | कोई चीज कितनी गोरी है या कितनी काली है ? ये आपको कैसे पता चलता है ?

क्योंकि सफ़ेद और काले रंग के सभी शेड्स हमारे अन्दर पहले से मौजूद हैं | जैसे अधिक पिक्सेल वाले टीवी में, अधिक शेड्स आते हैं वैसे ही हमारे शरीर में सभी शेड्स की इनफार्मेशन पहले से है | हमें पहले से पता है कि ये सफ़ेद है, ये ग्रे है, ये लाइट ग्रे है आदि | आप उनके नाम भले अलग अलग रख लीजिये | उन्हें हिंदी वाला काला बोले, अंग्रेजी वाला ब्लैक या किसी अन्य भाषा में उसे कुछ और कहा जाए, किन्तु हम सबकी आँखें, उस काले को वैसा ही देखेंगी – काला | ठीक वैसे, जैसे कोई चीज कम खुशबूदार है, फूल और कोई चीज ज्यादा खुशबूदार है, परफ्यूम | हमारी नाक को पहले से पता है, कौन सी गंध कम है और कौन सी ज्यादा | कौन सी आवाज धीमी है और कौन सी तेज, ये कान को पता है | ये सब हमें पहले से पता है – तन्मात्राओं की वजह से | जो कुछ संसार में है, उसका ज्ञान हमारे अन्दर पहले से है | जैसे कोई वर्णअंध हो जाता है, अर्थात उसके पिक्सेल खराब हो गए, जैसे टीवी में कभी कभी एक हिस्से के पिक्सेल खराब हो जाते हैं | यदि त्वचा कट जायेगी तो ये इनफार्मेशन मन तक जायेगी, तन्मात्रा से, लेकिन अगर हाथ सुन्न हो जाए तो वो तन्मात्रा काम नहीं करेगी और मन को पता नहीं चलेगा कि हाथ में कट लग गया है |

तो जो ज्ञानेन्द्रियों से मन तक इनफार्मेशन जाती है, ये जिसके द्वारा जाती है, उसको हम कहते हैं – तन्मात्रा | शरीर में ग्यान्द्रियाँ जो मन तक इनफार्मेशन पहुचाती हैं, वो है तन्मात्रा और जो चीज, ज्ञानेन्द्रियो के टच में आती है, उसे कहते हैं विषय | यानि बाहर से जब कोई चीज ज्ञानेन्द्रियों तक आई तो वो है, विषय और ज्ञानेन्द्रियों से जो मन तक पहुचाये, वो है तन्मात्रा | अतः संसार में जो कुछ भी है, वो है विषय | ये वही विषय हैं, जिसके बारे में हम कहते हैं, विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा | क्या मतलब है ? संसार के सभी विषयों को मिटा दीजिये, मन के सभी विकारों को मिटा दीजिये और मेरे पापों को हर लीजिये….देवा | हम कभी नहीं सोचते इन छोटी छोटी बातों को, कभी आपने ध्यान दिया है कि विषय माने क्या ! पर अब आपको पता है, विषय माने, कोई भी वो चीज जो, इन्द्रियों के संपर्क में आती है |


ये हो गए, शरीर के अन्दर के 15 तत्व किन्तु अभी शरीर पूरा नहीं हुआ है, अभी कर्मेन्द्रियाँ बची हैं और बचा है अन्तःचतुष्टय | किन्तु अब आप समझ चुके हैं कि शरीर को ज्ञान कैसे होता है ? संसार क्या है ? (विषय है), तन्मात्रा क्या है ? शरीर के अन्दर क्या क्या हैं ? आगे जानेंगे, अगले भाग में | आशा है, जानकारी को ग्रहण करके, कहीं नोट कर रहे होंगे और केवल लाइक करके नहीं भाग जायेंगे क्योंकि ये जानकारी, सब जगह उपलब्ध नहीं है | ध्यान रखिये, इस बात को | शास्त्र ज्ञान की तत्व चर्चा में आप भी आ सकते हैं, निशुल्क |

अभिनन्दन शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page