December 5, 2024
tark shastra 3.0 प्रत्यक्ष प्रमाण के भेद, बिना इन्द्रियों के भी प्रत्यक्ष ज्ञान कैसे संभव ?

अमूमन लोग प्रत्यक्ष प्रमाण को ही सबसे बड़ा प्रमाण मानते हैं | प्रत्यक्ष अर्थात जो आँखों के सामने हो अथवा इन्द्रियों के सामने हो, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं | पर क्या बिना इन्द्रियों के भी प्रत्यक्ष प्रमाण होता है ! क्या तर्कशास्त्र, बिना इन्द्रियों के जुड़े भी प्रमाण को मानता है ! जी हाँ ! प्रत्यक्ष प्रमाण में भी सविकल्प प्रत्यक्ष प्रमाण और निर्विकल्प प्रत्यक्ष प्रमाण में, बिना इन्द्रियों के जुड़े भी, प्रत्यक्ष प्रमाण माना गया है |

इसके अलावा, तीन और भेद भी हैं, सामान्य लक्षण, ज्ञान लक्षण और योगज लक्षण | सामान्य लक्षण, जहाँ एक चीज को देखकर, अन्य चीजों का स्वतः ही ज्ञान हो जाता है जैसे कि चूल्हे की अग्नि से पता चल जाता है, अग्नि में उष्मा होती है, अब चाहे वो लावा की आग हो, चाहे होली की आग ! ऐसे ही योगज लक्षण होता है, जहाँ तर्कशास्त्र भी मानता है कि ज्योतिष का जो ज्ञान है, आयुर्वेद का जो ज्ञान है और भी अन्य प्रकार के शास्त्रोक्त ज्ञान हैं, वो योग से ही सम्भव हैं और उनको भी मान लेता है क्योंकि अल्ट्रासाउंड मशीन की खोज तो 1949 में हुई थी अतः भ्रूण की पेट के अंदर हालत, तो बहुत बाद में पता चलता है पर भागवत में, दिनों के अनुसार भ्रूण की ग्रोथ बतायी हुई है जो कि बिना योग के सम्भव ही नहीं है |

इसी विषय को विस्तार से और बहुत से अच्छे उदाहरणों से समझे, आज के वीडियो में |

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