गामा पहलवान Vs चंद्रसेन टिक्की वाले
गामा पहलवान को गूगल कीजिये, तो आपको बताया जाएगा कि गामा पहलवान, जीवन में किसी से नहीं हारे, लेकिन ये सत्य नहीं है | गामा पहलवान का असली नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था | भारत विभाजन के बाद, ये पाकिस्तान में बस गए थे | बडौदा के संग्रहालय में एक पत्थर रखा है, जिसका वजन 1200 किलो है | 23 दिसम्बर 1902 को इतने भारी पत्थर को उठा कर, गामा पहलवान कुछ कदम चले थे | एक अकेले आदमी के १२०० किलो का पत्थर उठाने का अजूबा करने वाले, पहलवान का नाम था, गामा पहलवान | आज भी वो पत्थर बडौदा में रखा हुआ है लेकिन उस गामा पहलवान को जिसे दुनिया में कोई नहीं हरा सका, उसे हराया, मथुरा के प्रसिद्ध पहलवान चन्द्र सेन टिक्की वाले ने (मथुरा के प्रसिद्ध मोहन पहलवान के पिता) |
ये सारा किस्सा आपको इन्टरनेट पर नहीं मिलेगा क्योंकि इन्टरनेट पर सब कुछ उपलब्ध नहीं है | मथुरा के प्रसिद्ध बलदेव पहलवान ने, अपनी उम्र बढ़ने के कारण मथुरा के ही, चन्द्र सेन टिक्की वाले को बोला कि तुम अभी जवान हो, तुम जाकर गामा पहलवान से लड़ो | चंद्रसेन टिक्की वाले ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, बुखार है | मैं नहीं जा पाऊंगा कलकत्ता लड़ने तो बलदेव जी ने कहा कि तुम्हारे लंगोट पर मैं 5000 रूपये ( उस समय के) लगाता हूँ | ये सुनकर, चंद्रसेन टिक्की वाले जोश में आ गए और बोले अब तो गुरु (गुरु, ब्रज में मित्र और गुरु या जानकार, किसी को भी कह देते हैं ) जाना ही पड़ेगा |
चन्द्र सेन टिक्की वाले, कलकत्ता पहुँच गये और गामा पहलवान से कुश्ती की बात रख दी पर खरीद फरोक्त खेलों में आज ही नहीं, पहले भी होती थी और उनको भी कहा गया कि तुम मत लड़ो (चन्द्र सेन टिक्की वाले, लम्बाई चौड़ाई में, गामा पहलवान से दुगुने नहीं तो डेढ़ गुने तो रहे ही होंगे) पर चन्द्र सेन पहलवान ने मना कर दिया कि वो जुबान दे कर आये हैं, लड़ कर ही जायेंगे |
कुश्ती शुरू हुई, अखाड़ा सजा | कुश्ती शुरू होते ही, गामा पहलवान ने ऐसा दांव खेला कि चन्द्रसेन पहलवान का अंगूठा चीर दिया (अंगूठे और हाथ को पकड़ कर, खींच दिया) और वहन दंगल में खून खून हो गया | चंद्रसेन जी को ये बात समझ नहीं आई कि कुश्ती में, ऐसा काम नहीं किया जाता है और ये कैसी कुश्ती थी ..उन्होंने फिर एक ही दांव खेला (सल्ला मारा) और ऐसा खेला कि गामा पहलवान उसी एक दांव में बेहोश |
लोग बड़े खुश हुए, कि जिस पहलवान को पूरे भारत में कोई नहीं हरा पाया, उसे मथुरा के एक पहलवान ने हरा दिया | पूरे कलकत्ता में जुलूस निकला | दानदाता और खेल के प्रशंसको ने पेटियां खोल दी और लाखो रूपये का इनाम चन्द्र सेन टिक्की वाले को मिला | कहते हैं, उन्होंने वापिस मथुरा आकर, 16 कोठियां या मकान खरीदे |
तो जिसने 1200 किलो का पत्थर उठा लिया और पूरे भारत और दुनिया में रुस्तमे हिन्द (कैसे ये हार छुप गयी, पता नहीं) और रुस्तमे जहाँ का खिताव जीता उसे चन्द्र सेन टिक्की वाले ने हरा दिया… तो चन्द्र सेन टिक्की वाले कौन हुए ? बली ? नहीं ! वो हुए बलिष्ठ | बालियों में भी बली, बलिष्ठ यानि महाबली आप कह सकते हैं | ऐसे ही वशिष्ठ माने क्या ? जो वशियों में (इन्द्रियों आदि को वश में करने वाले) श्रेष्ठ हैं, वो वशिष्ठ हैं | ऐसे ही धर्मिष्ठ कौन ? धर्म में जो श्रेष्ठ हों वो धर्मिष्ठ | महिष्ठ माने जो महानो में भी महान हैं वो महिष्ठ और जो गुरुओं में भी गुरु हो वो हुए गरिष्ठ | अब मजेदार बात ये है कि आप गूगल करेंगे तो आपको चन्द्रसेन टिक्की वाले के बारे में एक लाइन भी नहीं मिलेगी, इसीलिए मुझे लिखना जरूरी लगा | मैंने लिख दिया, इसको शेयर करना है, नहीं करना है, वो आप जानें |
अब ये सब बातें मुझे कैसे पता चली तो इसका सार ये है कि
ज्यों केले के पात में, पात पात में पात,
त्यों संतन की बात में, बात बात में बात |