November 21, 2024
कैकयी

खंडन 20 – कैकयी के महिमामंडन वाली, वायरल पोस्ट का खंडन

इस बार हमारे पास एक पोस्ट आई, जिसमें कैकयी के रामचन्द्र जी को वनवास देने की प्रक्रिया को, उनकी दूरदर्शिता और उनकी प्लानिंग बताया गया है और ये भी कहा बताया गया है कि कैकयी को सब कुछ पहले से पता था कि रावण को राम ही मार सकते हैं, इसलिए इस कार्य को पूरा करने के लिए, उन्होंने अपने ऊपर कलंक लेकर राम को वनवास भेजा | पहले आप वो वायरल पोस्ट पढ़ लीजिये, फिर उसके बाद, उस वायरल पोस्ट का खंडन करते हैं |

वायरल पोस्ट

राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी भगवान राम से अपने बेटे भरत से भी ज्यादा प्रेम करती थीं। उन्हें राम से बहुत आशाएं थीं। जब कैकेयी ने भगवान राम से 14 वर्षों का वनवास मांगा था तब सबसे ज्यादा भरत हैरान हुए थे क्योंकि वह जानते थे कि माता राम से कितना प्रेम करती हैं। लेकिन आपको जानाकर हैरानी होगी कि देवताओं ने कैकेयी से यह काम करवाया था। इसके पीछे एक रोचक कथा है।

कैकेयी ने चौहद वर्ष का वनवास मांगकर यह समझाया कि अगर व्यक्ति युवावस्था में चौदह यानी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आंख, जीभ, त्वचा) पांच कर्मेन्द्रियां (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ) तथा मन, बुद्धि, चित और अहंकार को वनवास (एकान्त आत्मा के वश) में रखेगा तभी अपने अंदर के घमंड और रावण को मार पाएगा।

दूसरी बात यह था कि रावण की आयु में केवल 14 ही वर्ष शेष थे। प्रश्न उठता है कि यह बात कैकयी कैसे जानती थी? ये घटना घट तो रही थी अयोध्या में लेकिन योजना देवलोक की थी। कोप भवन में कोप का नाटक हुआ था। कैकेयी को राम पर भरोसा था लेकिन दशरथ को नहीं था। इसलिए उन्होंने पुत्र मोह में अपने प्राण गंवा दिए और कैकेयी हर जगह बदनाम हो गईं।

“अजसु पिटारी तासु सिर, गई गिरा मति फेरि।”

सरस्वती ने मंथरा की मति में अपनी योजना डाल दी, उसने कैकयी को वही सब सुनाया, समझाया और कहने को उकसाया जो सरस्वती को करवाना चाहती थीं। इसके सूत्रधार स्वयं श्रीराम थे, उन्होंने ही यह योजना तैयार की थी।

माता कैकयी यथार्थ जानती हैं। जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिए अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है, रथ संचालन की कला में दक्ष है, वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है? कैकेयी चाहती थी कि मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाए और यह बिना तप और विन रावण वध के संभव नहीं था।

कैकेयी जानती थीं कि अगर राम अयोध्या के राजा बन जाते तो रावण का वध नहीं कर पाएंगे, इसके लिए वन में तप जरूरी थी। कैकयी चाहती थीं कि राम केवल अयोध्या के ही सम्राट न बनकर रह जाएं, वह विश्व के समस्त प्राणियों के हृदयों के सम्राट भी बनें। उसके लिए राम को अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करना होगा।

रामायण और महाभारत दोनों में ही 14 वर्ष वनवास की बात हुई है। रामायण में भगवान को 14 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा था। जबकि महाभारत में पांडवों को 13 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास में गुजारना पड़ा था। दरअसल इसके पीछे ग्रह गोचर भी मानते हैं। उन दिनों मनुष्य की आयु आज के जमाने से काफी ज्यादा होती थी। इसलिए ग्रहों की दशावधि भी ज्यादा होती थी। शनि चालीसा में लिखा है ‘राज मिलत बन रामहि दीन्हा। कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।’ यानी शनि की दशा के कारण कैकेयी की मति मारी गई और भगवान राम को शनि के समयावधि में वन-वन भटकना पड़ा और उसी समय रावण पर भी शनि की दशा आई और वह राम के हाथों मारा गया। यानी शनि ने अपनी दशा में एक को कीर्ति दिलाई तो दूसरे को मुक्ति।

जबकि सत्य तो यह है माता कैकयी ने ही स्वयं सारा कलंक लेकर राम को भगवान श्री राम बनाया।

नमन है माता कैकेयी को

खंडन 20

आपने उपरोक्त पोस्ट पढ़ ली, अब इस पोस्ट में, जिस प्रकार रामायण से छेड़छाड़ की गयी है और कैसे शब्दों का खेल दिखाया गया है, वो देखते हैं | सबसे पहले तो 14 वर्ष को, 14 तत्वों से जोड़ा गया है | अब तत्व तो 24 होते हैं (5 कर्मेन्द्रिय, 5 ज्ञानेन्द्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्राएँ और 4 अन्तःचतुष्टय) किन्तु उन्हें जबरन, 14 वर्षों से जोड़ने के लिए मात्र 14 तत्वों कि बात की गयी है | यदि वनवास 10 वर्षों का होता तो 10 तत्वों के बारे में लिखकर, उसका साम्य बिठा देते | मतलब जबरन साम्य बैठाया गया है, अन्यथा 14 वर्षों के वनवास का 14 तत्वों से क्या सम्बन्ध हैं ? रामचंद्र जी में तो ये सब पहले से ही विद्यमान था | ऐसा थोड़े ही है कि रामचंद्र जी ने इन सभी तत्वों को वनवास में जाना था !!! किन्तु वायरल पोस्ट वाले ने, कैकयी की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए, जबरन एक साम्य बैठाया है |

मजेदार बात ये है कि पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास अर्थात कुल 13 वर्षों का वनवास मिला था, पर पोस्ट के लेखक ने, उसे भी 14 वर्ष का बता दिया, जिसका अर्थ है, लेखक को रामायण और महाभारत की बेसिक जानकारी भी नहीं है और मात्र पोस्ट में, कैकयी का महिमामंडन करने के लिए, कुछ भी लिखा है और बहुत से लोग ऐसे हैं, जो इस पोस्ट को सही भी मान लेंगे क्योंकि उन्होंने भी न तो रामायण पढ़ी है और न ही महाभारत |

आगे कहा गया है कि कैकयी को रावण के बारे में पता था किन्तु दशरथ को नहीं पता था और कैकयी क्योंकि रथ की धुरी में अपना हाथ डाल सकती है, रथ संचालन कर सकती है, उसे राजनैतिक परिस्थितियां न पता हों, ऐसा कैसे संभव है ? अब यहाँ भी एक बड़ी विचित्र तर्क दिया गया है | कैकयी को तो राजनैतिक परिस्थितियां पता थीं पर दशरथ को नहीं पता थी ! कैकयी को पता था कि रावण की उम्र 14 वर्ष बची है, पर दशरथ को नहीं पता था ! वो दशरथ, जो देवताओं की तरफ से लड़ा और न केवल लड़ा अपितु जीता भी | वो दशरथ, जो स्वयं इतना बड़ा राजा था कि पृथ्वी पर उस समय उनसे बड़ा राजा कोई नहीं था, उसको राजनैतिक परिस्थितियां नहीं पता थी, पर कैकयी को पता थी !!! है न बड़ी विचित्र बात ? मतलब वो राजा दशरथ, जिनके घर में, भगवान् श्रीराम ने जन्म लिया, उनको कुछ नहीं पता था, कैकयी को सब पता था गोया कि वो त्रिकालदर्शी थी | यहाँ भी एक अटपटे तर्क के द्वारा, कैकयी को दशरथ से भी ऊपर बता दिया गया है |

यदि कैकयी रामचंद्र जी से ही रावण को मरवाना चाहती थी तो फिर सीधे ही, चारों भाइयों को सेना सहित रावण को मारने भेज देती ? अकेले रामचंद्र जी को बिना सेना के, वन में भेज दिया, बिना तैयारी के ? क्या कैकयी ने, रामचंद्र जी से, रावण को मारने का वचन लिया था ? नहीं तो ! उन्होंने तो वनवास का वचन लिया था ! यदि रावण को ही मारना चाहती थी तो फिर दशरथ से वो ही वचन ले लेती | दशरथ, अपने पुत्रों और सेना समेत, रावण को मार डालते | इसका अर्थ है, कि वायरल पोस्ट वाला व्यक्ति, जबरन कैकयी माता की जय करने के लिए, ऐसे मूर्खतापूर्ण कथानक बना रहा है | यदि कैकयी को ये तक पता था कि रावण का जीवन 14 वर्ष ही बचा है, जैसा कि पोस्ट में लिखा है तो फिर तो रावण 14 वर्ष बाद अपने आप ही मर जाता (भले ही अमर था पर कैकयी को पता था कि 14 वर्ष में मर जाएगा) या फिर राम को 14 वें वर्ष में ही रावण को मारने भेजती | इसे ही कहते हैं, जबरन बातों को घुमाना |

अंत में, स्वयं ही शनि चालीसा से एक पंक्ति उद्धृत की है – ‘राज मिलत बन रामहि दीन्हा। कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।’ यानी शनि की दशा के कारण कैकेयी की मति मारी गई और आगे कहा गया कि कैकयी ने स्वयं कलंक लेकर, ‘राम’ को ‘भगवान् श्री राम’ बनाया | अब आप ही सोचिये कि मति मारी गयी या जिसकी मति हर ली गयी हो, क्या उस समय वो कोई सही निर्णय ले सकता है | यदि किसी मति मारे जाने पर भी कोई प्रशंसित निर्णय ले सके, तो फिर मति मारे जाने का अर्थ क्या हुआ ? मतलब लेखक ने, स्वयं ही विरोधाभासी बात लिखी है पर अंत में नमन कर दिया, कैकयी को | मतलब लेखक ने कैकयी को महान बनाने के चक्कर में, कुछ भी, कहीं से भी लिख दिया है, बिना उसका अर्थ स्वयं समझे | इसी प्रकार, रामायण से और महाभारत से खेलकर, लोग कभी कैकयी को महान बना दे रहे हैं और कभी रावण को | जबकि असली रामायण में, ऐसा कुछ भी नहीं है पर व्हात्सप्प में जानबूझ कर ऐसा रचा जाता है, जिसकी वजह से, आप स्वयं ही अपने ग्रंथों को संशय की दृष्टि से देखने लगे अथवा उनका गलत अर्थ समझें | विलेन को हीरो बना देते हैं (भाई रावण जैसा होना चाहिए या कैकयी को नमन वाली वायरल पोस्ट) और हीरो को विलेन (अग्नि परीक्षा और सीता परित्याग के द्वारा)  और व्हात्सप्प पढने वाले को लगता है कि कितनी सही बात कही है क्योकि उसने स्वयं तो रामायण पढ़ी नहीं है, बस सुनी है किसी मंच से या टीवी पर बहुत वर्षों पहले देखी थी |

अब कैकयी के बारे में असली बात बताते हैं, जैसी कि रामायण में लिखी हुई है, तब आपको कैकयी के बारे में पता चलेगा | रामचरित मानस में लिखा है –

बिपति बीजु बरषा रितु चेरी।भुइँ भइ कुमति कैकई केरी॥“ रामचरित मानस, अयोध्याकाण्ड, 1.2.23.2

अर्थात विपत्ति (कलह) बीज है, दासी वर्षा ऋतु है, कैकेयी की कुबुद्धि (उस बीज के बोने के लिए) जमीन हो गई। तुलसीदास जी, तो कैकयी की बुद्धि को कुबुद्धि कह रहे हैं और ये पोस्ट के लेखक, उनको नमन कर रहे हैं अब आप सोचिये किस प्रकार, आपके ग्रंथों के चरित्र को, आपके लिए बदला जाता है और आपके लिए जो पूजनीय नहीं है (रावण, कैकयी) उनको पूजनीय बनाया जाता है |

तुलसीदास जी आगे लिखते हैं –

“यह कुचालि कछु जान न कोई ||4||” – रामचरित मानस, अयोध्याकाण्ड, 1.2.23.4

अर्थात ये कुचाल कोई नहीं जानता है | अब आप सोचिये, इसे कुचाल कहा गया है, कोई रावण को मारने की प्लानिंग नहीं कहा गया है, जैसा कि पोस्ट में बताया गया है |

आगे लिखा है –

“गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ ||2||” – रामचरित मानस, अयोध्याकाण्ड, 1.2.24

संध्या के समय राजा दशरथ आनंद के साथ कैकेयी के महल में गए। मानो साक्षात स्नेह ही शरीर धारण कर निष्ठुरता के पास गया हो ! यहाँ कैकयी को, निष्ठुर कहा गया है और लेखक उसे जाने क्या क्या बता रहे है | दशरथ के बारे में तुलसीदास जी लिखते हैं कि राजा इंद्र, जिनकी भुजाओं के बल पर राज करते है, वैसे राजा दशरथ रानी कैकयी के क्रोध के आगे कामदेव की वजह से डर रहे थे और वही राजा दशरथ, कैकयी से कहते हैं

सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। (रा.च.मा, अ.का., 1.2.26.2) तेरा शत्रु अमर (देवता) भी हो, तो मैं उसे भी मार सकता हूँ (ये बात उन्होंने राम की सौगंध खा कर कही है) पर कैकयी ने रावण की कोई बात नहीं की क्योंकि कैकयी का उद्देश्य केवल अपने बेटे को राजा बनवाना और राम को राज्य से निकलवाना था और लेखक कह रहा है कि कैकयी की प्लानिंग थी रावण को मरवाना जबकि सच ये है कि ऐसी कोई प्लानिंग कैकयी के पास नहीं थी | आगे तुलसीदास जी कहते हैं –

अवध उजारि कीन्हि कैकेईं। दीन्हिसि अचल बिपति कै नेईं || (रा.च.मा, अ.का., 1.2.29) – कैकेयी ने अयोध्या को उजाड़ कर दिया और विपत्ति की अचल (सुदृढ़) नींव डाल दी | जिस कैकयी के बारे में तुलसीदास जी, ऐसा कह रहे हैं, उसके बारे में ये महान, कल के लेखक क्या लिख रहे हैं कि उस कैकयी को नमन है ? जिसकी वजह से जनककुमारी को 14 वर्ष वन में रहना पड़ा और रावण जिनको उठा कर ले गया ? जिनकी वजह से, लक्ष्मण, 14 वर्ष अपनी पत्नी से बिछड़ कर रहे ? जिसकी वजह से, भरत पादुका रखकर, 14 वर्ष तक राज्य से बाहर कुटिया में रहे ? और ये बात कौन नहीं जनता था, पूरी प्रजा जानती थी और इसीलिए तुलसीदास जी वो भी लिखते है –

सीय कि पिय सँगु परिहरिहि लखनु करहिहहिं धाम।
राजु कि भूँजब भरत पुर नृपु कि जिइहि बिनु राम॥49॥ –
रामचरित मानस, अयोध्याकाण्ड, 1.2.49

भावार्थ:-क्या सीताजी अपने पति (श्री रामचंद्रजी) का साथ छोड़ देंगी? क्या लक्ष्मणजी श्री रामचंद्रजी के बिना घर रह सकेंगे? क्या भरतजी श्री रामचंद्रजी के बिना अयोध्यापुरी का राज्य भोग सकेंगे? और क्या राजा श्री रामचंद्रजी के बिना जीवित रह सकेंगे? (अर्थात् न सीताजी यहाँ रहेंगी, न लक्ष्मणजी रहेंगे, न भरतजी राज्य करेंगे और न राजा ही जीवित रहेंगे, सब उजाड़ हो जाएगा।) ॥49॥

और पूरी अयोध्या क्या कर रही है –

मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकइहि गारी॥
एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ॥1रामचरित मानस, अयोध्याकाण्ड, 1.2.47

भावार्थ:-सब मेल मिल गए थे (सब संयोग ठीक हो गए थे), इतने में ही विधाता ने बात बिगाड़ दी! जहाँ-तहाँ लोग कैकेयी को गाली दे रहे हैं! इस पापिन को क्या सूझ पड़ा जो इसने छाए घर पर आग रख दी॥1॥

जिस कैकयी को लोग गालियाँ दे रहे हैं, उस कैकयी को ये महानुभाव त्रिकालदर्शी, ‘राम’ को ‘भगवान श्री राम’ बनाने वाला बता रहे हैं | मुझे लगता है, इतने सन्दर्भ काफी हैं, कैकयी के चरित्र को समझने के लिए | और अधिक क्या कहा जाए, जिसके लिये उसका बेटा स्वयं ये कहे – अरी कुमति! जब तूने हृदय में यह बुरा विचार (निश्चय) ठाना, उसी समय तेरे हृदय के टुकड़े-टुकड़े (क्यों) न हो गए? वरदान माँगते समय तेरे मन में कुछ भी पीड़ा नहीं हुई? तेरी जीभ गल नहीं गई? तेरे मुँह में कीड़े नहीं पड़ गए?1

वैसी कैकयी को मुझसे नमन न हो पायेगा | जो भी इस वायरल पोस्ट को पढ़कर कैकयी को महान समझते हों, उनसे निवेदन है कि मूलग्रंथो को पढ़ा करें ताकि ऐसी मूर्खतापूर्ण पोस्ट आपको भरमा न सकें | आपको मूर्ख न बना सकें | गलत चरित्रों को महान बनाने की परिपाटी और उसे नेट और व्हात्सप्प पर वायरल करने का कुचक्र मात्र इसलिए रचा जा रहा है कि आप स्वयं ही अपने धर्मग्रंथो को त्याग दें और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखने लग जाएँ और मूलग्रंथों की बातों को सत्य न मान कर, ऐसी मनगढ़ंत पोस्ट को सत्य मानने लगें | जब ऐसा होने लग जाएगा, फिर आपको कुछ भी मूर्खतापूर्ण कुतर्क और सन्दर्भ देकर, आपको किसी भी धर्म में आसानी से कन्वर्ट करा लिया जाएगा, आप बौद्ध भी बन सकते हैं, क्रिश्चिन भी बन सकते हैं, नास्तिक भी बन सकते हैं और मुस्लिम भी बन सकते हैं क्योंकि आप स्वयं ही अपने धर्मग्रंथो के दुश्चरित्रों को पूजनीय (यथा रावण, कैकयी आदि) और मर्यादापुरुषोत्तम आदि को हीन दृष्टि से देखने लगें और इसी कड़ी में, राम को गलत सन्दर्भ देकर, गलत उदाहरण देकर, उनको विभिन्न दृष्टान्तों को बिना जाने, उनकी बुराई की जाती है और रावण, कैकयी आदि का महिमामंडन किया जाता है |

अंत में, पुनः कहूँगा कि संस्कृत ग्रंथो के नाम के सन्दर्भ लिए हुए, सोशल मिडिया पोस्ट को आँख बंद करके, सत्य मत मानिए और न ही उनसे अपने धर्म/शास्त्रों को समझने की कोशिश कीजिये क्योंकि 100 में 90 पोस्ट फेक होती हैं और गलत सन्दर्भ देती हैं और हमें भ्रमित करती हैं |

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पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

परिचय – https://linktr.ee/ShastraGyan

सन्दर्भ –

सभी सन्दर्भ साथ ही दे दिये गए हैं |

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