ज्योतिष और आयुर्वेद का गहरा सम्बन्ध है | जो आयुर्वेदाचार्य ज्योतिष नहीं जानता और जो ज्योतिषी आयुर्वेद नहीं जानता, वो दोनों ही अपनी विद्या में पूर्णता नहीं प्राप्त कर पाते |
एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ, शनि का तत्व बताया गया है, वायु | जिसकी कुंडली में शनि से कष्ट है, उसको वायुजनित रोग होंगे जैसे कि गैस की समस्या बहुधा रहेगी | अब सोचिये, गैस की समस्या का समाधान आयुर्वेद क्या बताता है ? मालिश !!! तेल मालिश सो शनि की दशा में, क्या करना चाहिए ? तेल मालिश करनी चाहिए | इससे गैस की समस्या का समाधान मिलेगा और यही कारण है कि शनि देवता को तेल चढ़ाया जाता है पर हम अमूमन बस शनि देवता को ही तेल चढ़ा कर, मामला रफा दफा कर लेते हैं पर यदि शनि के प्रभाव को कम करना है तो अपनी भी तेल मालिश करवा लेनी चाहिए |
और वायु से क्या होता है ? गति | यानि शनि यदि परेशान करेगा तो क्या करेगा ? गति कम कर देगा अर्थात आलसी बनाएगा | आदमी में फुर्ती नहीं होगी | काम तुरंत नहीं करेगा | शनि इसी वायु की वजह से कैसा है ? स्लो है | शनैश्चर (शनैः शनैः चलने वाला) और अगर शनि बढिया हुआ, उच्च का हुआ तो फुर्तीला/खिलाड़ी होगा | होशियार होगा |
आयुर्वेद कहता है कि वायु – रुक्ष, शीत और चल है | कटु (चरपरा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (कसैला) रस वायु की वृद्धि करते हैं अतः इनका भोजन न करे | वायु का संचय ग्रीष्म में, प्रकोप वर्षा में और शमन शरद में कहा गया है अर्थात बारिश के समय में गैस की समस्या अधिक रहेगी | अतः यदि कोई आयुर्वेदाचार्य कुंडली भी देख लें तो वो तुरंत बता सकते हैं कि जातक को किसकी समस्या हो सकती है (हालांकि आयुर्वेद लक्षण आधारित है अतः वैद्य स्वय ही पता करते हैं किन्तु यदि कुंडली भी देख लेंगे तो समझ जायेंगे कि मरीज का कौन सा मर्ज है और उसे वेलिदेत कर सकते हैं)
ऐसे ही मंगल का तत्व है अग्नि और अग्नि का सम्बन्ध है पेट से (मन्दाग्नि) और अगर मंगल खराब है तो पेट में समस्या होगी ही होगी | कोई रोक ही नहीं सकता | मंगल का रंग है लाल अर्थात रक्त से सम्बन्धित विकार होगा ही होगा | ब्लड प्रेशर आदि की समस्या अवश्य होगी |
ऐसे ही गुरु का तत्व है, आकाश और आकाश तत्व से जो इन्द्रिय जुडी है, वो है कान | गुरु खराब हो, निर्बल हो और कान में/जॉइंट्स में परेशानी न हो, ये संभव ही नहीं है |
अतः इसी प्रकार, एक आयुर्वेदाचार्य को ज्योतिष का ज्ञान और एक ज्योतिषी को आयुर्वेद का ज्ञान, उसे एक्स्ट्रा एज दे देता है | ये एक्स्ट्रा एज, बहुत काम आती है क्योकि सभी इलाज दवाइयों से नहीं होते (अगर होते तो कोई, दीर्घ समय के लिए बीमार ही न होता और न ही कोई बीमारी से मरता) और सभी ईलाज ज्योतिष से नहीं होते (अगर होते तो वैद्य आदि की क्या आवश्यकता थी ?) ज्योतिष भी इसी शरीर के बारे में है और आयुर्वेद भी | दोनों का समन्वय और दोनों का ज्ञान ही, शरीर को ठीक रखने में सहायक है |
फिजिक्स कम जानने वाला भले ही कहे कि उसका केमिस्ट्री से कोई लेना देना नहीं है लेकिन एक पीएचडी होल्डर जानता है कि न केमिस्ट्री फिसिक्स से अलग और न फिजिक्स, केमिस्ट्री से |
क्या समझे ? कुछ नहीं समझे ? धत बुडबक !!!
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