November 21, 2024

खंडन 8 – दशरथ और उनके मुकुट के बारे में फैली झूठी कहानी का खंडन

आजकल दशरथ के मुकुट की ये फर्जी कहानी, सोशल मिडिया पर छाई हुई है | इन्टरनेट पर हजारों वेबसाइट पर ये फर्जी कहानी चल रही है | नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, स्पीकिंग ट्री आदि वेबसाइट पर ये कहानी छपी हुई है | अतः ये समझना आवश्यक है, कि क्या हम शास्त्रों के नाम पर और किसी भी कहानी में, राम, लक्ष्मण, दशरथ आदि चरित्रों के नाम लिखे होने पर, आँख बंद करके, उसे सत्य तो नहीं मान लेते ? पहले वो फर्जी कहानी ही पढ़ लेते हैं, फिर खंडन पड़ेंगे –

————

राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज,

अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बाली से हो गया. राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी. राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी.अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी. जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी.युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी. अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हर राजा दशरथ की ही होगी.राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए.

तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा.रानी कैकयी को यह बात बहुत दुखी, आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी. यह बात उन्हें हर पल काटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा.वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं. जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई. यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे.कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया. उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुटवापस लेकर आना है.

श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया. उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा. प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था.तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था. जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें. वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुटलेकर आएगा.जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए. वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी.रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया.जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया. अंगद वह मुकुट लेकर वापस श्री राम के पास चले आये.

यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की.
राजा दशरथ के पास गई तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी. बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो तो बाली को अपने प्राणों को आहूत देनी पड़ी. इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए.तथा कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल सम्मान वापस नही लोट पाता. कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए अतः श्री राम अपनी माताओ सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे.

खंडन 8

जैसे इसी कहानी को ले लीजिये | ये कहानी इन्टरनेट पर जाने कहाँ कहाँ घूम रही है और हजारों-लाखों लोग, इस कहानी को पढ़कर इसे सही मान रहे हैं | लेकिन आगे से, आप प्रण लीजिये कि ऐसी किसी की भी कहानी को सही नहीं मानेंगे, जिसमें उसका कोई भी शास्त्रोक्त सन्दर्भ न हो | इस पूरी कहानी में, कहीं भी कोई भी सन्दर्भ नहीं है, कि ये वाल्मीकि रामायण में किस सर्ग से है ? कौन सा श्लोक है ? रामचरित मानस में से है तो कौन से काण्ड में से है ? आखिर इस कहानी को मनगढ़ंत न मानने की कोई एक वजह तो होनी चाहिए न हमारे पास ?

वास्तव में राजा दशरथ के देव-दानव युद्ध में लड़ने के तो सन्दर्भ हैं, लेकिन बालि से लड़ने का कोई सन्दर्भ इन दोनों ही रामायण में नहीं है | बालि कौन था ? न राक्षस था, न दैत्य था, न दानव था | वो तो इंद्र का पुत्र था | वो भला दशरथ से क्यों लडेगा ? अब देखिये, भोजपुरी कहानियों में भी इतना बड़ा झोल नहीं होता, जितना बड़ा झोल इस कहानी में है कि कैकयी ने, रामचंद्र जी को बालि से मुकुट वापिस लाने के लिए, राम को वनवास भेजा !!! अरे भैया, अगर राम के बल पर इतना ही भरोसा था, तो चारों भाइयों को, सेना के साथ बालि से युद्ध करने भेज देती !!! पति को मारने की क्या जरूरत थी ? क्या पति का मुकुट, पति के प्राणों से भी ज्यादा कीमती था ? अब इतना बड़ा झोल कहानी में हो, फिर भी लोग उसे सही मान लें तो सोचिये, लोगों को धर्म के नाम पर बहकाना कितना आसान है |

इससे भी मजेदार बात ये कि रावण के पास खुद का कोई मुकुट नहीं था, वो दशरथ का मुकुट पहनता था, है न कमाल की बात | कहानी बनाने वाले ने कितनी बड़ी टप्प लिखी है | और तो और, वो मुकुट लेने रामचंद्र जी गए थे, लेकिन उसे लेकर अंगद आया था, वाह ! अरे भैया, इससे बढ़िया कहानी, मेरी गली का पप्पू लिख लेता है | आशा है, इस मनगढ़ंत कहानी के लिए इतना ही काफी है | जब तक मैं खंडन 9 लिखता हूँ, तब तक आप इस खंडन 8 को शेयर कीजिये और जहाँ भी ये फर्जी कहानी मिल जाए, ये पोस्ट फेंक कर मारिएगा | ठीक है |

पं अशोकात्मज अभिनन्दन शर्मा

नोट – ये पोस्ट भी “धर्मरक्षक शास्त्रज्ञ” टीम द्वारा आर्थिक योगदान द्वारा समर्थित है, जिसके द्वारा हम इस पोस्ट को पेड़ प्रोमोशन करके हजारों लोगों तक पहुचा पा रहे हैं | यदि आपको भी लगता है कि आप भी शास्त्रों के बारे में फैले भ्रमो को मिटाने में और शास्त्रों के बारे में सत्य को स्थापित करने में हर महीने थोडा सा ही सही, पर आर्थिक सहयोग कर सकते हैं तो आज ही जुड़ें हमारे व्हात्सप्प ग्रुप से – https://chat.whatsapp.com/BVISW2wZnec3rUphVTfZ05

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page