November 21, 2024

खंडन 6 – द्रौपदी के पांच पति नहीं थे, एक था युधिष्ठिर (इस विषय पर लिखी गयी, यशपाल आर्य की पुस्तक का खंडन)

वैसे तो मैं कभी किसी भी व्यक्ति, जो शास्त्र के नाम पर भ्रम फैलाता है, उससे वास्ता नहीं रखता पर इस पुस्तक के बारे में सर्च करने पर ज्ञात हुआ कि एक ग्रुप बना कर, बाकयदा लिंक देकर, लोगों से कहा जा रहा है, कि इस पोस्ट को, जो कहती है कि द्रौपदी के पांच पति नहीं थे, इसे व्हात्सप्प पर शेयर कीजिये | मैंने जब गूगल किया तो पता चला कि अलग अलग आर्य समाजियों नें इस झूठ को (जिसका खंडन पहले ही 5वें भाग में किया जा चुका है और जो इस ब्लॉग पर उपलब्ध है) अलग अलग वेबसाइट, ब्लॉग पर अपने नाम से डाला हुआ है | जैसे https://bit.ly/2FjQVND पर अर्षा आर्य ने यही पोस्ट किया है फिर विवेक आर्य ने, इसे ब्लॉग पर डाला है – https://bit.ly/37xwclm अर्थात ऐसा लगता है जैसे आर्यसमाजियों का एक संगठन, इस प्रकार के झूठ को प्रसारित करने में जी जान से लगा हुआ है | मैं आर्यसमाजियों का सम्मान करता हूँ लेकिन इस प्रकार के झूठ फैलाने में उनके साथ नहीं हो सकता | अतः अब इस पुस्तक के बारे में भी अलग से लिखता हूँ (कोशिश करूँगा कि छोटे से छोटे में लिख दूं) –

पेज २ पर लेखक पहला आधार रखता है कि कुंती ने कहा कि जो लाये हो, उसे पाँचों में बाँट लो इसी आधार पर द्रौपदी के पांच पति महाभारत में बताये गए हैं – जबकि ऐसा नहीं है | महाभारत में स्पष्टतः पाँचों से वैदिक रीती से विवाह के बारे में लिखा गया है, व्यास जी ने स्वयं द्रुपद के न मानने पर, उसे आज्ञा दी कि पांचो से विवाह किया जाए और पांडवों के पूर्व जन्म और द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा सुनाई अतः केवल कुंती का कथन ही आधार नहीं था, जैसा कि लेखक कह रहा है |
आगे लेखक, एक नया आधार बनाता है और कहता है कि वो सिद्ध कर देगा कि कुंती को पहले से पता था कि अर्जुन द्रौपदी को ब्याह के लाया था और ये पहले से तय था कि विदुर, अर्जुन का विवाह द्रौपदी से कराना चाहते थे क्योंकि कौरवों को बिना द्रुपद की शक्ति के नहीं हराया जा सकता था, इसलिए उसने पहले ही ये विचार लिया था कि द्रुपद से रिश्ता बनाना है और इधर द्रुपद अपनी बेटी की शादी इसलिए अर्जुन से करना चाहता था क्योंकि द्रोणाचार्य को बिना पांडवों की सहायता के नहीं मारा जा सकता था और जब ये सब सिद्ध हो जाएगा तो ये स्वतः ही सिद्ध हो जाएगा कि कुंती को पता था कि पांडव भिक्षा लेने नहीं गए और द्रौपदी को लायें हैं तो वो उन्हें बांटने को कह ही नहीं सकती और ये सारी बात झूठ सिद्ध हो जायेगी कि कुंती ने ऐसा कहा और जिसकी वजह से पांचों पांडवों ने द्रौपदी से विवाह किया ।


ये एक बड़ी ही अटपटी बात है | लेखक एक ऐसी बात सिद्ध करने की कह रहा है जो सिद्ध हो ही नहीं सकती, क्यों नहीं हो सकती ? जब द्रुपद को यज्ञ से धृष्टद्युम्न मिल गया, जो पैदा ही द्रोणाचार्य को मारने का वर लेकर हुआ था तो फिर द्रोणाचार्य को मारने के लिए, पांडवों की मित्रता की भला उसे क्या जरूरत थी ? द्रुपद स्वयं ही याज और उपयाज से कहते हैं कि द्रोणाचार्य को क्षात्र धर्म से नहीं मारा जा सकता क्योंकि वो तो मेरे पास बढ़ चढ़ कर है लेकिन द्रोणाचार्य के पास क्षात्रबल के अलावा ब्रह्मतेज भी है अतः उसे केवल क्षात्र धर्म से नहीं मारा जा सकता, मुझे ब्राहमणों के तेज की आवश्कता है अतः आप मुझे ऐसा पुत्र दीजिये, जो द्रोणाचार्य को मार सके | अतः ये स्पष्ट था कि पांडव भी युद्ध में द्रोणाचार्य को नहीं मार सकते थे | जैसे भीष्म अवध्य थे, ऐसे ही द्रोणाचार्य भी युद्ध में अवध्य थे और इसी के तोड़ के लिए, द्रुपद ने धृष्टद्युम्न को ब्राहमणों से प्राप्त किया | अतः ये विचार बेसलेस है कि द्रुपद पांडवों से द्रौपदी का विवाह इसलिए करना चाहता था ताकि वो द्रोणाचार्य को मर सके | उसका इंतजाम तो वो पहले ही कर चुका था |


इसके आगे लेखक साहब, पूरी कथा को ऐसे पेश करते हैं, गोया कि वो वेदव्यास जी से पढ़कर आये हो | वो कहते हैं कि दोनों पक्षों, पांडवों और द्रुपद की तरफ से एक दूसरे से रिश्ता करने की पूरी प्लानिंग थी और अपनी बात, कि द्रुपद पांडवों से रिश्ता इसलिए करना चाहते थे ताकि वो द्रोणाचार्य को मार सकें को सिद्ध करने के लिए, उसने बताया कि द्रुपद ने जब सुना कि पांडव वारणाव्रत की अग्नि में जल कर मर गए तो वो बहुत दुखी हुआ क्योंकि वो अर्जुन से द्रौपदी का विवाह करना चाहता था (द्रोणाचार्य को मारने के लिए) | इस प्रकार एक नया कथानक लेखक ने जोड़ दिया जबकि सत्यता इसके उल्ट है | द्रुपद अर्जुन से द्रौपदी की शादी द्रोणाचार्य को मारने के लिए नहीं कराना चाहता था अपितु वो समझता था कि क्षत्रियों में सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ही हैं क्योंकि द्रुपद, जो कि स्वयं अतिरथी था, अकेले अर्जुन ने उसे युद्ध में जीत लिया था | क्षत्रियों में बल ही विवाह का नियामक होता है अतः अर्जुन को अपने से श्रेष्ठ पाकर, द्रुपद ने अर्जुन को ही अपना दामाद बनाने की सोची क्योंकि हर पिता अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा वर चाहता है | ये असल वजह थी, द्रुपद द्वारा अर्जुन से विवाह करने की, जिसे लेखक ने, एक अलग ही आयाम दे दिया, जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत है |


आगे लेखक कहता है कि विदुर ने ये सब प्लानिंग की थी, ताकि द्रुपद का साथ लेकर, कौरवों को हराया जा सके | इससे अधिक हास्यास्पद बात क्या होगी ? इस प्रकार के बहुत से मनगढ़ंत बेस इस लेखक ने बनाये हैं | सोचिये, जिसके मामा भगवान् श्रीकृष्ण हों, बलदाऊ हों, जिनके पास ११ अक्षौहिणी सेना थी, उन्हें कौरवों को हारने के लिए, द्रुपद की भला क्यों आवश्यकता होने लगी ?
पांडव तो जब चाहे तब कृष्ण जी का साथ लेकर, कौरवों को हरा सकते थे | इसीलिए कहा जाता है, शास्त्रों को पढ़ हर कोई सकता है, किन्तु अर्थ समझना सभी के बस की बात नहीं है, इसीलिए शास्त्रों को समझने के लिए, किसी ज्ञानी अथवा गुरु के पास जाना चाहिए | देखिये, लेखक महोदय ने कैसे मनगढ़ंत बातें रच कर, पूरी की पूरी किताब ही लिख कर, महाभारत को गलत सिद्ध कर दिया और अन्य लोग, इसे व्हात्सप्प पर देखा देखी, बिना अन्वेषण और अध्ययन के शेयर करने लगे |


आगे लेखक, कहता है कि भीड़ कुंती के दरवाजे तक अवश्य पहुची होगी तो कुंती को पता नहीं चला होगा क्या, कि क्या हो रहा है ? अतः कुंती की मिल कर बाँट लो वाली बात, नौटंकी है | जबकि ऐसा वर्णन नहीं है | भीड़ थी अवश्य किन्तु वो कुछ दूर तक ही गयी थी और उसके बाद पांडव अकेले ही अपने घर गए थे | भीड़ का घर पहुचने का कोई वर्णन नहीं है |


इसके आगे, लेखक ने एक अलग ही बात कह दी कि पांडव भीख नहीं मांगते थे | लेखक ने भीख और भिक्षा को एक ही साथ रख दिया, कितने कमाल की बात है | भिक्षा और भीख एक चीज नहीं हैं, सर्वथा अलग हैं | भिक्षावृत्ति पढने वालों ब्राहमणों (स्नातकों) के लिए अनिवार्य थी क्योंकि उस भिक्षा से ही आश्रम चलता था | भिक्षा छात्रों को, स्नातकों को दी जाती थी, ब्राहमणों को दी जाती थी और आजकल की भीख तो कोई भी मांग लेता है, किसी के भी आगे हाथ फैला लेता है, किसी के भी पीछे पड़ जाता है | पैरों में गिर जाता है | भिक्षा ऐसे नहीं ली जाती थी, भिक्षा के बड़े कड़े नियम थे, जैसे एक घर से, तीन बार से अधिक नहीं बोलना है, एक ही घर से लगातार दो दिन अथवा रोजाना भिक्षा नहीं लेनी है, धन तो कदापि नहीं लेना है और भी बहुत कुछ | जो भिक्षा और भीख को अंतर को न जानता हो, वो क्यों शास्त्रों की मनमानी व्याख्या करने चला है, कमाल है | ये लेखक पांडवों को भिखमंगे तक लिख देता है, जो इसके कुत्सित विचारों का प्रतीक है |


आगे लेखक लिखता है कि द्रुपद के घर में विवाह था, तो क्या उसने पांडवों को भोजन नहीं कराया होगा ? ऐसा कोई मूर्ख ही मान सकता है, इस पुस्तक का लेखक तो ऐसा नहीं मान सकता और दामाद को भी भोजन नहीं कराया, ऐसा कैसे हो सकता है ? और भूखे पांडव घर गए,द्रौपदी को घर पर छोड़कर भीख मांगने गए और फिर सबने एक साथ खाना खाया, ऐसा कैसे संभव है ?
फिर एक और कपोलकल्पना | महाभारत में स्पष्ट लिखा है कि जो जो, लोग स्वयम्वर में आये थे, उन सबके भोजन की समुचित व्यवस्था थी और सबको भोजन आदि से संतुष्ट कराया गया था | पांडवों ने खाया या नहीं खाया ये नहीं लिखा हुआ किन्तु जाहिर है, माता भूखी हो घर पर तो उस समय के बच्चे इतने संस्कारी अवश्य होते होंगे कि पांडवों ने भी भोजन नहीं ही किया होगा | घर पहुचकर, भिक्षा लेने गए और फिर घर पर सबके साथ भोजन किया | इसमें क्या गलत है ? लेखक अपने आपको इतना विद्वान क्यों मानता है कि सामान्य संस्कार को भी गायब कर देता है |
आगे लेखक विवाह के बारे में, वही बात कहता है कि लोगों को शक होता है युधिष्ठिर में कोई कमी है, इसलिए माता युधिष्ठर का विवाह करना चाहती थी, अर्जुन का नहीं करना चाहती थी इसलिए युधिष्ठिर ही एकमात्र पति है आदि जिसका कि खंडन पूर्वोक्त पोस्ट (खंडन 5) में किया गया है | (लिंक ये कमेन्ट बॉक्स में है | आप भी इसे वैसे ही शेयर करें, जैसे सभी आर्य इस झूठ को शेयर कर रहे हैं ताकि कोई गूगल करे तो उसे ये भी अवश्य प्राप्त हो )|


आगे भी लेखक ने येन केन प्रकारेण, अपनी मनगढ़ंत सोच को सिद्ध करने के लिए, इसी प्रकार के व्यक्तव्य दिए हैं | जैसे उपरोक्त सोच मनगढ़ंत है, ऐसे ही आगे वाले भी हैं | सभी के बारे में एक-एक करके लिखने से लेख लंबा हो जाएगा अतः अब अंतिम बात लेते हैं, जिसका खंडन मैं अति आवश्यक समझता हूँ | इन लेखक महोदय ने द्रौपदी को कुलटा तक कह दिया क्योंकि वो पाँच पुरुषों की पत्नी थी और बताया कि महाभारत में लिखा है कि ये बड़ी अद्भुत और अलौकिक बात थी कि द्रौपदी विवाह के पश्चात, प्रत्येक रात्रि अलग अलग भाइयों के साथ बिताने पर भी प्रतिदिन कन्या हो जाती थी | लेखक यहीं नहीं रुका, वो कहता है कि इससे बड़ी बकवास संभव ही नहीं है, इसमें अद्भुत जैसा क्या है ? और पतिव्रता क्या होता है ? यदि ये पतिव्रता है तो फिर कुल्टा कौन होती है ? आगे ये भी कहता है कि द्रौपदी सभी जगह युधिष्ठिर को ही अपना पति कहती हैं | (इसका भी खंडन 5 में कर दिया गया था) |


जबकि ये लेखक महोदय आगे नहीं पढ़ते हैं कि वेदव्यास जी कहते हैं – “नकुलपुत्र नवयुवक शतानीक ने कर्ण के नौजवान बेटे वृषसेन को अपने बाण समूहों से घायल कर दिया तथा शूरवीर कर्णपुत्र वृषसेन ने भी अनेक बाणों की वर्षा करके पांचालीकुमार शतानीक को गहरी चोट पहुँचायी।” – यहाँ शतानीक किसका बेटा है ? नकुल और द्रौपदी का ! तो कैसे वो केवल युधिष्ठिर की पत्नी हुई ? अब ये लेखक वेदव्यास जी को बतायेंगे क्या कि उन्हें नहीं पता था कि शतानीक नकुल और द्रौपदी का पुत्र है !! हद है ! आगे दुःशासन भी भीम को बताता है कि तुम पांचो पांडवों ने एक द्रौपदी से विवाह किया तो क्या उसे पता नहीं था ? भरी सभा में कर्ण ने, द्रौपदी के आगे कहा कि तेरे पाँचों पति व्यथा तिल की भांति नपुंसक हैं तो क्या वो भी गलत था ? मतलब सब गलत थे, एक ये महोदय सही हैं |


ये कहते हैं कि पतिव्रता नारी क्या होती है ? मैं बताता हूँ,पतिव्रता वो होती है, जो अपने तप से ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बालक बना देती है और तीनों देव कुछ नहीं कर पाते (अनुसुइया), पतिव्रता वो होती है जो, सूर्य को चलने से रोक देती है और ब्रह्मा भी कुछ नहीं कर पाते और उससे निवेदन करके सूर्य को मुक्त करने को कहते हैं (शैव्या), पतिव्रता वो होती है, जो यमराज से अपने पति के प्राण वापिस ले लेती है (सावित्री) | ये होती हैं पतिव्रता नारी की शक्ति | जिसके आगे कोई कुछ नहीं होता | सूर्य भी उस पतिव्रतानारी का स्पर्श डरते डरते करते हैं कि कहीं ये परस्त्री का स्पर्श समझ कर मुझे श्राप न दे दें | इतनी शक्ति होती पतिव्रता नारी में | वो अपने तप से, कुछ भी कर सकती है, फिर पुनः कन्या होना कौन सी बड़ी बात है | योगी लोग, जिस ईश्वर को नहीं समझ पाते, पूरी जिन्दगी, जंगलो में ख़ाक छानते रहते हैं और फिर भी जन्मों जन्मों तक प्राप्त नहीं कर पाते, वही शक्तियां एक नारी केवल पतिव्रत से प्राप्त कर लेती है | पंचकन्याओं में पांच पतिव्रता स्त्रियों के नाम लिए जाते हैं, जिनमें द्रौपदी एक है और उस नारीशक्ति को ये लेखक, कुल्टा के समकक्ष रखता है |


ऐसे दुर्विचारों का खंडन अतिआवश्यक है क्योंकि यदि ये सही है तो इसके हिसाब से सभी सनातन ग्रंथो और शास्त्रों को आग लगा देनी चाहिए क्योंकि वो सब तो इन लेखक के हिसाब से बकवास है और हो ही नहीं सकता, जब सती नहीं हो सकती, उसकी शक्तियां नहीं हो सकती, तो फिर हो सकता है ये पुनर्जन्म को भी न मानते हो, कृष्ण जी को भगवान् भी न मानते हों, क्योंकि विराट स्करुप दिखाना भी एक असम्भव सी ही बात है आदि इत्यादि | यही इनका उद्देश्य है कि आपको, आपके ही ग्रंथो और शास्त्रों से विपरीत कर देना और उसके लिए आपको कुछ ख़ास नहीं करना, अपने शास्त्र तो पढने नहीं हैं, जो कि अधिकतर लोग नहीं पढ़ते, बस इनकी ये ६० पृष्ठ की पुस्तक पढनी है और आप अपने ही धर्मशास्त्रों को बिना पढ़े ही, उनको बकवास कहना शुरू कर देंगे | ऐसे कुतर्क, मनगढ़ंत वक्तव्यों और कुत्सित विचारों का मैं भरपूर खंडन करता हूँ | आप सभी से निवेदन है, कि इसे सभी जगह शेयर करें ताकि सही बात लोगों तक पहुचे और ऐसे लोगों के कुत्सित प्रयासों पर प्रहार हो |


पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

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