न खंडन, न मंडन, सीधा जवाब
Finally after all this corona episode I am driven to this following conclusion : The worst affected are our gods in our temples. They are literally locked down under lock and key. No suprabhatam, no snanam, no abhishekham, no yagnopavitham, no gandha lepam, no dhhoopam, no deepam, no naivedyam and no mangalarati. Poor gods no darshana bhagyam of their beautiful devotees. THEN HOW THEY CAN BE EXPECTED TO SAVE THE MANKIND, WHO ARE ENJOYING EVERYTHING UNMINDFUL OF THE LOCKDOWN.
आपने भी ये मैसेज, हिंदी या अंग्रेजी में व्हात्सप्प या फेसबुक पर अवश्य देखा होगा… पर समझ नहीं आया होगा कि इसका भला क्या जवाब दें, आखिर बात तो सही ही है ! ऐसा होता है, जब किसी विषय की जानकारी स्वयं को नहीं होती है तो उस विषय में किसी की अधकचरी बात भी ऐसी लगती है, जैसे कि जाने कितनी रिसर्च के बाद कही गयी है और हमें लगता है कि हाँ यार ! बात तो सही है |
पर ऐसे में, थोड़ी सी जानकारी इकट्ठी करते ही ज्ञात हो जाता है कि बात एकदम फर्जी और सतही भी हो सकती है | जैसे कि इस उपरोक्त मैसेज को ही देख लीजिये | इस मैसेज के अनुसार, भगवान बेचारे, मंदिर में बंद हो गए हैं, न दिया है, न बाती है, न फूल मालाएं हैं और जब ईश्वर स्वय की ही पूजा नहीं करवा पा रहे हैं और खुद ही कोरोना से पार नहीं पा रहे हैं , वो भला पब्लिक की मदद कैसे करेंगे ?
पर एक बात बताइए, कौन से भगवान् कह कर गए हैं कि आप उनकी पूजा करने मंदिर में जाइए ? मन्दिर में भगवान् की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है तो क्या भगवान केवल मंदिर में ही है ? यदि आपको ईश्वर, केवल मंदिर की मूर्तियों में ही दीखता है तो इसमें आपकी आखों का ही दोष है अन्यथा ईश्वर तो कहाँ नहीं है ? प्रकृति के वृक्षों में, गाय के बछड़े में, वायु की हर सांस में, दीपक की हर लौ में, बच्चे की हर किलकारी में, हर शरीर में, वही ईश्वर तो है, उसे भला कौन बंद कर सकता है ? कैसा मूर्खतापूर्ण प्रलाप है कि ईश्वर मंदिर में बंद हो गया ! अरे, वो सदैव मुक्त है, उसे कोई क्या बंद करेगा !!!
किसने कहा कि उसे भोग नहीं लग रहा, कौन कह रहा है कि उसे धूप प्राप्त नहीं हो रही है या फूलमाला प्राप्त नहीं हो रही है | अरे, भोजन के हर कौर में, उस अग्नि देवता के जठराग्नि रूप में, हविष्य ही तो दे रहे हैं !!! यदि इतना भी भान नहीं है और ईश्वर को मूर्तियों तक सीमित समझते हो तो अभी ईश्वर की सही पहचान ही नहीं है और जिस विषय का ज्ञान ही नहीं है, उसके बारे में भला क्या लिख पाओगे !
अच्छा, जो स्वयं की कोरोना से रक्षा नहीं कर पा रहा, वो प्रजा को, जनता को क्या बचायेगा ? मतलब, ईश्वर को सबको बचा लेना चाहिए ? फिर तो कोई मरना ही नहीं चाहिए, कोरोना से ही क्यों ? कैसर से भी नहीं मंरना चाहिये ! ह्रदय रोग, ब्रेन हेमरेज, किस से बचाता है भाई वो ईश्वर ? ऐसा लिखने से पहले, कभी कोशिश तो करते कि क्या लिख रहे हो ? वो किसी को नहीं बचाता, वो किसी को नहीं मारता | कभी कोई ग्रन्थ/कोई शास्त्र छुए होते तो पता होता कि कोऊ न काऊ, सुख दुःख कर दाता, निज कृत कर्म, भोग सब भ्राता | कोई किसी को सुख और दुःख नहीं देता है, सब अपने किये हुए कर्मों को भोगते हैं | ये जो भी बीमारियाँ होती हैं, ये सिर्फ हमारे किये हुए कर्मों के अनुसार ही हमें प्राप्त होती हैं | बस उन सुख और दुःख के कारण बदल जाते हैं | किसी को दुःख कोरोना बीमारी से होता है तो किसी को पुत्र की मृत्यु से, किसी को पिता की मृत्यु से, किसी को बिजनेस में हानि से, तो क्या सबको ईश्वर बचाएगा ? क्या मजाक है ? क्या जानते हैं, आप सनातन धर्म के कांसेप्ट का बारे में ? अरे भाई ! व्हात्सप्प पर ऐसे व्यर्थ मैसेज डालने से अच्छा है कि थोडा पढ़ लिया कीजिये | क्या है कि ऐसी सतही बाते व्हात्सप्प डालते हैं तो आपके सतही ज्ञान की पोल खुल जाती है | ठीक बा |
अरे मंदिर तो मात्र एक स्थान बनाया गया है, कि यदि आप इतने बड़े साधक नहीं हुए हैं कि ईश्वर को सभी जगह और स्वयं में देख सकें तो ईश्वर की प्रण प्रतिष्ठित मूर्ति देखकर, उसका ध्यान करके, उस विग्रह को मन में बैठा लें, कि ईश्वर ऐसे दीखते हैं और फिर उस विग्रह का घर पर, वन में, कहीं भी ध्यान करें, क्योंकि साकार का ध्यान आसान है, बजाय निराकार के ध्यान के | पर अब आप साधन को ही साध्य मानने लगो, मूर्ति को ही ईश्वर मानने लगो, तो ये आपका अज्ञान मात्र है, और कुछ नहीं |
और हाँ, आप लोग भले मंदिर नहीं जाते हो, किन्तु पुजारी जी अवश्य रोज पूजा करते हैं विग्रह की, चाहे मंदिर बंद हो या खुला क्योंकि ये कोई ऑफिस नहीं है कि आज रविवार है, आज ऑफिस नहीं जाना | जब तालाबंदी हुई, उस दिन भी, ईश्वर की घर से पूजा अवश्य हुई होगी क्योंकि ईश्वर सभी जगह है, सभी जगह से भोग प्राप्त करता है, सभी जगह से, निवेदन स्वीकार करता है | जानते हैं कैसे ?
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलमं॥
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अभिनन्दन शर्मा
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