कहानी, जो कह न सका – कविता
मैंने पूछा, बता क्या सुनेगी ?
तेरे मन की व्यथा कैसे मिटेगी ?
अमर कोषों का व्याख्यान सुनाऊं
कथा सुनाऊं, उस युवा की,
जो शेरों से खेला बचपन में,
या फिर सुनाऊं उस राजा को,
राजमहल नहीं था जिसके मन में,
जो बैठा करता था महलों में,
किन्तु ऋषियों सा चिंतन था
या फिर सुनाऊं उस राजा को,
जिसने अपने बीवी बच्चों को बेचा था
तेरे प्रश्नों के उत्तर मैं
कथाओं में दिखला दूंगा,
तू बोल तो मुख से अपनी व्यथा,
मैं क्षण में उसे सुलझा दूंगा ।
बोली सुकुमारी, चिंतित सी
नहीं सुननी मुझे यशोगाथा,
तुम मौन सुनाओ उस मां का,
जिसने अपने बेटे को मरवाया था,
कहाँ कथा है उस नारी की,
जिसने हवनकुंड में स्वयं को आहूत किया,
कहाँ व्यथा है उस राजपूतानी की
जिसने छलदूतों संग छद्म रचा
क्या सुना पाओगे उस विरह व्यथा को,
जो राधा के हिस्से में आई थी,
या फिर उस वेदना को जो,
उर्मिला ने पाई थी ।
मुझे सुनाओ वही कथा,
जिसमें ऐसी अमर कहानी हो,
जो लिखी गयी हो न कभी,
और न कभी कही गयी जुबानी हो
मेरा सिर शर्म से झुक सा गया
जिह्वा होठों से चिपक गयी,
सारा गर्व पलों में क्षीण हुआ,
धरती नीचे से दरक गयी ।
वो उठी, निर्विकार सी, उदासीन सी,
बोली – तुम कहानी कहना रहने दो
लिखो अघोरी बाबा को,
बाकी कुछ लिखना तुम रहने दो ।
कृति – अभिनन्दन शर्मा
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