July 27, 2024

किस श्रेष्ठ ब्राह्मण को आठ प्रकार के ब्राह्मणत्त्व का ज्ञान है ?

विप्रवर !  अब आप ब्राह्मण के आठ भेदों का वर्णन सुने – मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि – ये आठ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताये गए हैं । इनमें विद्या और सदाचार की विशेषता से पूर्व पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं ।

जिसका जन्म मात्र ब्राह्मण कुल में हुआ है, वह जब जाति मात्र से ब्राह्मण हो कर ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार तथा वैदिक कर्मों से हीन रह जाता है, तब उसको ‘मात्र’ ऐसा कहते हैं । जो एक उद्देश्य को त्याग कर – व्यक्तिगत स्वार्थ की उपेक्षा करके वैदिक आचार का पालन करता है, सरल एकान्तप्रिय, सत्यवादी तथा दयालु है, उसे ‘ब्राह्मण’ कहा गया है । जो वेद  की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगो सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित छह कर्मों में सलंग्न रहता है, वह धर्मज्ञ विप्र ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है । जो वेदों और वेदांगों का तत्वग्य, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है ।

जो अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, यग्याशिष्ठ भोजन करता है और इन्द्रियों को अपने वश में रखता है, ऐसे ब्राह्मण को श्रेष्ठ पुरुष ‘भ्रूण’ कहते हैं । जो सम्पूर्ण वैदिक और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करके मन और इन्द्रियों को वश में रखते हुए सदा आश्रम में निवास करता है, वह ‘ऋषिकल्प’ माना गया है । जो पहले नैष्ठिक ब्रह्मचारी होकर नियमित भोजन करता है, जिसको किसी भी विषय में कोई संदेह नहीं है तथा जो श्राप और अनुग्रह में समर्थ और सत्यप्रतिज्ञ हैं, ऐसा ब्राह्मण ‘ऋषि’ माना गया है । जो निवृति मार्ग में स्थित, सम्पूर्ण  तत्वों का ज्ञाता, काम-क्रोध से रहित, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा मिटटी और सुवर्ण को समान समझने वाला है, ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं । इस प्रकार वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं । ये ही यज्ञ आदि में पूजे जाते हैं ।  इस प्रकार आठ भेदों  वाले ब्राह्मण का वर्णन किया गया है ।

चारों युगों के मूल दिनों को कौन बता सकता है ?

अब युगादि तिथियाँ बतलाई जाती हैं । कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि सतयुग की आदि तिथि बताई गयी है । वैशाख शुक्ल पक्ष की जो तृतीया है, वह त्रेतायुग की आदि तिथि कही जाती है । माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या को विद्वानों ने द्वापर की आदि तिथि माना है और भाद्र कृष्ण त्रयोदशी कलियुग की प्रारंभ तिथि कही गयी है । ये चार युगादि तिथियाँ है, इनमें किया हुआ दान और होम अक्षय जानना चाहिए । प्रत्येक युग में सौ  वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page