November 9, 2024

अब मैं तुमसे काल का मान बताऊंगा, उसे सुनो – विद्वान लोग पंद्रह निमेष की एक ‘काष्ठा’ बताते हैं । तीस काष्ठा की एक ‘कला’ गिननी चाहिए । तीस कला का एक ‘मुहूर्त’ होता है । तीस मुहूर्त के एक ‘दिन-रात’ होते हैं । एक दिन में तीन तीन मुहूर्त वाले पांच काल होते है, उनका वर्णन सुनो – “प्रातःकाल, संगवकाल, मध्यकाल, अपरान्ह्काल तथा पांचवा सयान्ह्काल” । इनमें पंद्रह मुहूर्त व्यतीत होते हैं । पंद्रह दिन रात का एक पक्ष होता है ।  पक्ष का एक मास कहा गया है । दो सौर मास की एक ऋतु होती है । तीन ऋतुओं का एक ‘अयन’ होता है तथा दो अयनों का एक वर्ष माना गया है । विज्ञ पुरुष मास के चार और वर्ष के पांच भेद बतलाते हैं ।

सौर मास, चन्द्र मास, नाक्षत्रमास और सावन मास – ये ही मास के चार भेद हैं । सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है । सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय ही सौरमास है । यह मास प्रायः तीस-एकतीस दिन का होता है । कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है । चन्द्रमा की ह्र्वास वृद्धि वाले दो पक्षों का जो एक मास होता है, वही चन्द्र मास है ।  यह दो प्रकार का होता है – शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘जमांत’ मास मुख्य चंद्रमास है । कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है । यह तिथि की ह्र्वास वृद्धि के अनुसार २९, २८, २७ एवं ३० दिनों का भी हो जाता है ।

जितने दिनों में चंद्रमा अश्वनी से लेकर रेवती के नक्षत्रों में विचरण करता है, वह काल नक्षत्रमास कहलाता है । यह लगभग २७ दिनों का होता है । सावन मास तीस दिनों का होता है । यह किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर तीसवें दिन समाप्त हो जाता है । प्रायः व्यापार और व्यवहार आदि में इसका उपयोग होता है । इसके भी सौर और चन्द्र ये दो भेद हैं । सौर सावन मास सौर मास की किसी भी तिथि को प्रारंभ होकर तीसवें दिन पूर्ण होता है । चन्द्र सावन मास, चंद्रमा की किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर उसके तीसवें दिन समाप्त माना जाता है ।

इसी प्रकार वर्ष के पांच भेद होते हैं । पहला संवत्सर, दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर तथा पांचवा युग्वत्सर है ।* प्रत्येक संवत्सर में बारह सौर मास और बारह चन्द्र मास होते हैं । परन्तु सौरवर्ष ३६५ दिन का और चन्द्र वर्ष ३५५ दिन का होता है । जिससे दोनों में प्रतिवर्ष १० दिनों का अंतर पड़ता है । इस वैषम्य को दूर करने के लिए प्रति तीसरे वर्ष बारह की जगह १३ चन्द्र मास होते हैं । ऐसे बढे हुए मास को अधिमास या मलमास कहते हैं ।

यही वर्ष गणना की निश्चित संख्या है । मनुष्यों के एक मास का पितरों का एक दिन-रात होता है । कृष्ण पक्ष उनका दिन बताया जाता है और शुक्ल पक्ष उनकी रात्रि । मनुष्यों के एक वर्ष का देवताओं के एक दिन माना गया है । उत्तरायण तो उनका दिन है और दक्षिणायन रात्रि । देवताओं का एक वर्ष पूरा होने पर सप्तर्षियों का एक दिन माना गया है । सप्तर्षियों के एक वर्ष में ध्रुव का एक दिन माना गया है । मानव वर्ष के अनुसार सत्रह लाख अट्ठाईस हजार वर्षों का सतयुग माना गया है । मानव मान से ही बारह लाख छानवे हजार वर्षों का त्रेतायुग कहा गया है । आठ लाख चौसठ हजार वर्षों का द्वापर होता है और चार लाख बत्तीस हजार वर्षों का कलियुग माना गया है ।

इन चारों के योग से देवताओं का एक युग होता है । इकहत्तर युगों से कुछ अधिक काल तक मनु की आयु मानी गयी है । चौदह मनुओं का काल व्यतीत होने पर ब्रह्मा का एक दिन पूरा होता है । जो एक हजार चतुर्युगों का माना गया है; वही कल्प है । अब कल्पों के नाम श्रवण करो –   भवोद्भव, तपोभव्य, ऋतु, वही, वराह, सावित्र, औसिक, गांधार, कुशिक, ऋषभ, खड्ग, गान्धारीय, मध्यम, वैराज, निषाद, मेघवाहन, पंचम, चित्रक, ज्ञान, आकृति, मीन, दंश, वृहक, श्वेत, लोहित, रक्त, पीतवासा, शिव, प्रभु तथा सर्वरूप – इन तीस कल्पों का ब्रह्मा जी का एक मास होता है । ऐसे बारह मासों का एक वर्ष होता है तथा ऐसे ही सौ वर्षों तक ब्रह्मा जी की आयु का पूर्वार्ध मानना चाहिए । पूर्वार्ध के सामान ही अपरार्ध भी है । इस प्रकार ब्रह्मा जी की आयु का मान बताया गया है । अर्जुन ! भगवान् विष्णु तथा भगवान् शंकर जी की आयु का वर्णन करने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ । पाताल लोक में भी देवताओं के मान से ही गणना की जाती है । ये बात मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार ही मैंने बताई है ।

* बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच पांच वत्सर होते हैं । बारह युगों के नाम हैं – प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय । प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है । दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर  है । इनके पृथक पृथक देवता होते हैं, जैसे संवत्सर के देवता अग्नि माने गए हैं ।

नोट 1 – चन्द्रमा ने प्रजापति दक्ष की २७ पुत्रियों से विवाह किया था और नक्षत्रों की संख्या भी २७ ही कही गयी है जहाँ चंद्रमा की गति होती है । या तो हम इन नक्षत्रों को प्रजापति दक्ष की पुत्रियाँ मान सकते हैं या इन नक्षत्रों का नाम ही चंद्रमा की पत्नियों के ऊपर पड़ा । कथा में तथ्य है या तथ्य में कथा है ।

नोट 2 – काफी दिलचस्प है, शब्द “नक्षत्र” का खगोल विज्ञान की एक प्राचीन पुस्तक  “सूर्य सिद्धांत” में प्रदर्शन के रूप में एक अलग अर्थ है । शुरुआती अध्यायों में, लेखक, मायासुर या मयन, ने विभिन्न समय इकाइयों का वर्णन करता है. वह एक “प्राण” को 4 सेकंड की अवधि का  लिखते हैं ।  इसके बाद वे सभी Pranas के एक नंबर से बना कर क्रम से उन्हें कम समय इकाइयों से उत्तरोत्तर लम्बे समय इकाइयों तक की चर्चा की है. उन समय इकाइयों के अनुरूप ही वह  “नक्षत्र” को भी एक समय की इकाई ही बताते हैं । उदाहरण के लिए, एक मिनट में 15 Pranas हैं. एक घंटे में 900 Pranas, एक दिन में 21600 Pranas, एक नक्षत्र में 583,200 Pranas (माह) बताये गए हैं । मायान के अनुसार, एक नक्षत्र 27 दिनों की अवधि के साथ एक समय की ही इकाई है. यह 27 दिन का समय चक्र, सितारों की एक विशेष समूह का परिभाषित करने के लिए लिया गया है. वास्तव में इस समय इकाई से चंद्रमा की  में गति ही दर्शाई है जो की इन नक्षत्रों से होते हुए गुजरता है । इसलिए, ये नक्षत्र घड़ी पर संख्या की तरह हैं, जिसके माध्यम से चंद्रमा अपना समय गुजारता है । समय के साथ नक्षत्र को समय की इकाई मानने की इस अवधारणा को खो दिया है और आकाश में तारों का एक सेट के द्वारा ही समझा जाने लगा है. इस अवधारणा को सूर्य सिद्धांत पर अपने अनुसंधान में डॉ. जेसी Mercay ने बताया है । यह इनकी एक पुस्तक में उल्लेखित है जिसका नाम “Fundamentals of Mamuni Mayans Vaastu Shastras, Building Architecture of Sthapatya Veda and Traditional Indian architecture.” (Mercay, 2006 – 2012, AUM Science and Technology publishers) – From Wikipedia

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page