July 4, 2024

खंडन 1 : अर्जुन की मृत्यु के बारे में फैली वायरल पोस्ट का खंडन

अर्जुन

खंडन 1 : श्रीकृष्ण और अर्जुन की मृत्यु के बारे में फैली वायरल पोस्ट का खंडन

आज से हम, “शास्त्र : क्या सच, क्या झूठ” सीरिज का प्रारम्भ कर रहे हैं | इस सीरिज में शास्त्रों के नाम पर सोशल मिडिया में फैली विभिन्न पोस्ट का खंडन/मंडन, शास्त्रों के ही आधार पर किया जाएगा | ये पहली पोस्ट ली जा रही है, जिसमें अर्जुन और कृष्ण के बारे में, वभ्रुवाहन और अर्जुन वध को मध्य में रख कर, एक झूठी कहानी फैलाई जा रही है इस पोस्ट में बहुत कुछ झूठ है और इस प्रकार लिखा गया है, जिससे पढने वाले को ये लगे कि कथा ऐसी ही है | जिसने महाभारत नहीं पढ़ी कभी, वो इसे सच ही मान लेगा, जबकि वभ्रुवाहन और अर्जुन के युद्ध का कृष्ण जी से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है | पहले एक बार, सोशल मिडिया में फैली इस भ्रामक पोस्ट को पढ़ लेते हैं |

अर्जुन

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श्री कृष्ण दौड़े चले आये🌞
अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के रूप में किया| सेवक की चिंता स्वामी की चिंता बन जाती है|
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अर्जुन का युद्ध अपने ही पुत्र बब्रुवाहन के साथ हो गया, जिसने अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया… और कृष्ण दौड़े चले आए… उनके प्रिय सखा और भक्त के प्राण जो संकट में पड़ गए थे|
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अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बब्रुवाहन ने पकड़ लिया और घोड़े की देखभाल की जिम्मेदारी अर्जुन पर थी| बब्रुवाहन ने अपनी मां चित्रांगदा को वचन दिया था कि मैं अर्जुन को युद्ध में परास्त करूंगा, क्योंकि अर्जुन चित्रांगदा से विवाह करने के बाद लौटकर नहीं आया था|
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और इसी बीच चित्रांगदा ने बब्रुवाहन को जन्म दिया था| चित्रांगदा अर्जुन से नाराज थी और उसने अपने पुत्र को यह तो कह दिया था कि तुमने अर्जुन को परास्त करना है लेकिन यह नहीं बताया था कि अर्जुन ही तुम्हारा पिता है… और बब्रुवाहन मन में अर्जुन को परास्त करने का संकल्प लिए ही बड़ा हुआ| शस्त्र विद्या सीखी, कामाख्या देवी से दिव्य बाण भी प्राप्त किया, अर्जुन के वध के लिए|
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और अब बब्रुवाहन ने अश्वमेध के अश्व को पकड़ लिया तो अर्जुन से युद्ध अश्वयंभावी हो गया| भीम को बब्रुवाहन ने मूर्छित कर दिया| और फिर अर्जुन और बब्रुवाहन का भीषण संग्राम हुआ| अर्जुन को परास्त कर पाना जब असंभव लगा तो बब्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त हुए दिव्य बाण का उपयोग कर अर्जुन का सिर धड़ से अलग कर दिया|
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श्रीकृष्ण को पता था कि क्या होने वाला है, और जो कृष्ण को पता था, वही हो गया| वे द्वारिका से भागे-भागे चले आए| दाऊ को कह दिया, “देर हो गई, तो बहुत देर हो जाएगी, जा रहा हूं|”
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कुंती विलाप करने लगी… भाई विलाप करने लगे… अर्जुन पांडवों का बल था| आधार था, लेकिन जब अर्जुन ही न रहा तो जीने का क्या लाभ|
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मां ने कहा, “बेटा, तुमने बीच मझदार में यह धोखा क्यों दिया?
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मां बच्चों के कंधों पर इस संसार से जाती है और तुम मुझसे पहले ही चले गए| यह हुआ कैसे?
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यह हुआ क्यों?
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जिसके सखा श्रीकृष्ण हों, जिसके सारथी श्रीकृष्ण हो, वह यों, निष्प्राण धरती पर नहीं लेट सकता… पर यह हो कैसे गया?”
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देवी गंगा आई, कुंती को कहा, “रोने से क्या फायदा, अर्जुन को उसके कर्म का फल मिला है| जानती हो, अर्जुन ने मेरे पुत्र भीष्म का वध किया था, धोखे से| वह तो अर्जुन को अपना पुत्र मानता था, पुत्र का ही प्यार देता था| लेकिन अर्जुन ने शिखंडी की आड़ लेकर, मेरे पुत्र को बाणों की शैया पर सुला दिया था| क्यों?
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भीष्म ने तो अपने हथियार नीचे रख दिए थे| वह शिखंडी पर बाण नहीं चला सकता था| वह प्रतिज्ञाबद्ध था, लेकिन अर्जुन ने तब भी मेरे पुत्र की छाती को बाणों से छलनी किया| तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है… तब मैं भी बहुत रोई थी| अब अर्जुन का सिर धड़ से अलग है| बब्रुवाहन ने जिस बाण से अर्जुन का सिर धड़ से अलग किया है, वह कामाख्या देवी माध्यम से मैंने ही दिया था|
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अर्जुन को परास्त कर पाना बब्रुवाहन के लिए कठिन था, आखिर उसने मेरे ही बाण का प्रयोग किया और मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया| अब क्यों रोती हो कुंती?
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अर्जुन ने मेरे पुत्र का वध किया था और अब उसी के पुत्र ने उसका वध किया है, अब रोने से क्या लाभ?
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जैसा उसने किया वैसा ही पाया| मैंने अपना प्रतिशोध ले लिया|”
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और प्रतिशोध शब्द भगवान श्रीकृष्ण ने सुन लिया… हैरान हुए… अर्जुन का सिर धड़ स अलग था| और गंगा मैया, भीष्म की मां अर्जुन का सिर धड़ से अलग किए जाने को अपने प्रतिशोध की पूर्ति बता रही हैं…
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श्रीकृष्ण सहन नहीं कर सके… एक नजर भर, अर्जुन के शरीर को, बुआ कुंती को, पांडु पुत्रों को देखा… बब्रुवाहन और चित्रांगदा को भी देखा… कहा, “गंगा मैया, आप किससे किससे प्रतिशोध की बात कर रही हैं?
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बुआ कुंती से… अर्जुन से, या फिर एक मां से?
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मां कभी मां से प्रतिशोध नहीं ले सकती| मां का हृदय एक समान होता है, अर्जुन की मां का हो या भीष्म की मां का… आपने किस मां प्रतिशोध लिया है?
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” गंगा ने कहा, “वासुदेव ! अर्जुन ने मेरे पुत्र का उस समय वध किया था, जब वह निहत्था था, क्या यह उचित था?
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मैंने भी अर्जुन का वध करा दिया उसी के पुत्र से… क्या मैंने गलत किया?
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मेरा प्रतिशोध पूरा हुआ… यह एक मां का प्रतिशोध है|”
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श्रीकृष्ण ने समझाया, “अर्जुन ने जिस स्थिति में भीष्म का वध किया, वह स्थिति भी तो पितामह ने ही अर्जुन को बताई थी, क्योंकि पितामह युद्ध में होते, तो अर्जुन की जीत असंभव थी… और युद्ध से हटने का मार्ग स्वयं पितामह ने ही बताया था, लेकिन यहां तो स्थिति और है|
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अर्जुन ने तो बब्रुवाहन के प्रहारों को रोका ही है, स्वयं प्रहार तो नहीं किया, उसे काटा तो नहीं, और यदि अर्जुन यह चाहता तो क्या ऐसा हो नहीं सकता था… अर्जुन ने तो आपका मान बढ़ाया है, कामाख्या देवी द्वारा दिए गए आपके ही बाण का… प्रतिशोध लेकर आपने पितामह का, अपने पुत्र का भी भला नहीं किया|”
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गंगा दुविधा में पड़ गई| श्रीकृष्ण के तर्कों का उसके पास जवान नहीं था| पूछा, “क्या करना चाहिए, जो होना था सो हो गया| आप ही मार्ग सुझाएं|”
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श्रीकृष्ण ने कहा, “आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई, उपाय तो किया ही जा सकता है, कोई रास्ता तो होता ही है| जो प्रतिज्ञा आपने की, वह पूरी हो गई| जो प्रतिज्ञा पूरी हो गई तो अब उसे वापस भी लिया जा सकता है, यदि आप चाहें तो क्या नहीं हो सकता?
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कोई रास्ता तो निकाला ही जा सकता है|”
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गंगा की समझ में बात आ गई और मां गंगा ने अर्जुन का सिर धड़ से जोड़ने का मार्ग सुझा दिया| यह कृष्ण के तर्कों का कमाल था| जिस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो, जिसने अपने आपको श्रीकृष्ण को सौंप रखा हो, अपनी चिंताएं सौंप दी हों, अपना जीवन सौंप दिया हो, अपना सर्वस्व सौंप दिया हो, उसकी रक्षा के लिए श्रीकृष्ण बिना बुलाए चले आते हैं| द्वारिका से चलने पर दाऊ ने कहा था, ‘कान्हा, अब अर्जुन और उसके पुत्र के बीच युद्ध है, कौरवों के साथ नहीं, फिर क्यों जा रहे हो?’
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तो कृष्ण ने कहा था, ‘दाऊ, अर्जुन को पता नहीं कि वह जिससे युद्ध कर रहा है, वह उसका पुत्र है| इसलिए अनर्थ हो जाएगा| और मैं अर्जुन को अकेला नहीं छोड़ सकता|’ भगवान और भक्त का नाता ही ऐसा है| दोनों में दूरी नहीं होती| और जब भक्त के प्राण संकट में हों, तो भगवान चुप नहीं बैठ सकते|
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अर्जुन का सारा भाव हो, और कृष्ण दूर रहें, यह हो ही नहीं सकता| याद रखें, जिसे श्रीकृष्ण मारना चाहें, कोई बचा नहीं सकता और जिसे वह बचाना चाहें, उसे कोई मार नहीं सकता| अर्जुन और श्रीकृष्ण हैं ही एक… नर और नारायण 🌹🙏राधा सखी👸🏻
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खंडन 1 : श्रीकृष्ण और अर्जुन की मृत्यु के बारे में फैली वायरल पोस्ट का खंडन

अब आते हैं, कि यदि ये झूठ है, भ्रामक है तो फिर सही क्या है ?

वभ्रुवाहन, अर्जुन का बेटा था, जो चित्रांगदा से उत्पन्न था | अर्जुन की दो पत्नियाँ और थी, जिनमें एक थी उलूपी (सर्प राजकुमारी) और दूसरी थी चित्रांगदा (ईस्ट इंडिया क्षेत्र से) विवाह के उपरान्त, चित्रांगदा के पुत्र और चित्रांगदा को उसके पिता ने अपने पास रख लिया (शादी से पहले ही ये शर्त decide हो गयी थी) जब महाभारत के बाद युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया और अर्जुन घोडा लेकर, चित्रांगदा के राज्य पहुचे तो रात को वभ्रुवाहन ने वो घोडा चुरा लिया क्योंकि उसे नहीं पता था कि ये घोडा उसके ताऊ जी का है | उसे बस इतना पता था कि ये अश्वमेध का घोडा है और क्षत्रिय कभी भी युद्ध के मौके को हाथ से नहीं जाने देते (क्योंकि वीरगति स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली होती है) और बिना युद्ध के कैसे वो हार मान ले, ये सोचकर उसने घोडा जीत लिया | अगले दिन अर्जुन को पता चला तो अर्जुन अपनी सेना लेकर, राज्य की ओर बढे | चित्रांगदा को पता चला कि घोडा वभ्रुवाहन ले आया है और अब अर्जुन सेना लेकर आ रहे हैं तो माता ने पुत्र को समझाया कि वो तेरे पिता हैं, ये घोडा वापिस कर दे | बेटा भी खुश हो गया, घोडा, मंत्री, माला, साज सज्जा लेकर वो पिता का स्वागत करने पहुचा |

ये देखकर अर्जुन क्रोधित हो गए और उसको फटकारा और उसके मंत्रियों को भी फटकारा | बोला कि अगर युद्ध करने का दम ही नहीं था तो घोडा क्यों चुराया ? सामने अर्जुन खडा है, ये देख कर डर गए ? माला लेकर आ गए ? ये मंत्रणा अवश्य इन दुर्बुद्धि मंत्रियों ने दी होगी क्योंकि अर्जुन का पुत्र तो यमराज से नहीं डर सकता और तुम बिना रथ लिए, बिना धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाए, डर के मारे, घोडा लौटाने आ गए ? जब वभ्रुवाहन ने सूना तो वहां उलूपी भी आ गयी और उसने आग में घी डाला और वभ्रुवाहन को उत्तेजित किया, तो उसे बहुत बुरा लगा, उसने कहा, कि आप समझे कि मैं डर से आपके पास आया हूँ तो अब आप मेरा पराक्रम देखिये | और ये कहकर, वो सुसज्जित होकर युद्धभूमि में आ गया |

दोनों में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ और अर्जुन और वभ्रुवाहन दोनों घायल हुए और वभ्रुवाहन एक एक बाण से, अर्जुन युद्धभूमि में मारे गए | (सर काट कर नही, अपितु ह्रदय में बाण लगने से) वभ्रुवाहन भी ये देखकर कर अचेत हो गया | उसकी माता वहां आई और बोली कि अर्जुन मर गए और मेरे ही पुत्र ने ऐसा कर दिया तो अब यदि ये जिन्दा नहीं होंगे तो मैं भी यहीं मर जाउंगी और वो वहीँ बैठ गयी, चिता की प्रतीक्षा में | वभ्रुवाहन ने देखा तो उसने भी प्रण लिया कि मैंने अपने पिता को ही मार डाला, मुझ जैसा नराधम कौन होगा सो वो भी मृत्युकाल तक उपवास रखने का प्रण लेकर वहीँ बैठ गया |

तब उलूपी, अपने पिता से, नागमणि लेकर आई और अर्जुन को पुनर्जीवित कराया | तब अर्जुन ने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया ? क्या तुम्हारी वभ्रुवाहन से या अपनी सौत से कोई दुश्मनी थी या मैंने कोई गलती कर दी थी ! तब उलूपी ने बताया कि आपने भीष्म को अनुचित तरह से मारा था, जिसकी वजह से वसुओं ने (भीष्मं आठवें वसु थे, जो जीवित थे, पूर्वजन्म में श्राप की वजह से) अर्जुन को श्राप दिया कि अर्जुन की मृत्यु हो जायेगी और नरकगामी होगा | मैंने ये बात सुन ली और अपने पिता को बताया तो वो वसुओं को मनाने पहुचे और उन्होंने कहा कि अर्जुन का पुत्र ही यदि अर्जुन का वध कर दे, क्योंकि अर्जुन भी भीष्म के लिए पुत्र ही था तो हमारा श्राप उतर जाएगा | इसलिए, मैंने वभ्रुवाहन को युद्ध करने को उकसाया | अर्जुन को तो साक्षात इंद्र भी नहीं हरा सकता किन्तु मैंने ही वभ्रुवाहन को ऐसा शस्त्र दिया था, जिसकी काट अर्जुन के पास नहीं थी | इस प्रकार मैंने अर्जुन के ऊपर से उसका श्राप ही उतारा है |

अब आप बताएं, इस कथा में कृष्ण जी कहाँ है ? क्या गंगा ने श्राप दिया ? क्या अर्जुन का सिर कटा ? क्या कृष्ण जी अर्जुन को बचाने दौड़े चले आये ? इस प्रकार, जिसने कथा नहीं सुनी है, वो इस भ्रामक पोस्ट को सत्य ही मान लेगा, जबकि ये कथा गलत है | आप भी सही को जाने, और इस पोस्ट का उचित तरह से प्रतिकार करें और सही पोस्ट का प्रसार करें |

पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

शास्त्रों को आसान भाषा में समझने के लिए, आज ही पढ़ें |

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