मातृकाम को विजानाति कतिधा किद्रशक्षराम । पञ्चपंचाद्भुतम गेहं को...
Month: April 2015
द्विहेतु षड्धिष्ठानाम षडंगम च द्विपाक्युक् । चतुष्प्रकारं त्रिविधिम त्रिनाशम...
पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता हि परमं तपः ।...
यह सन्दर्भ तब का है जब कार्तिकेय ने तारकासुर...
स्कन्द जी ने अर्जुन को ब्रह्माण्ड के बारे में...
नारद जी ने कहा – कुरुश्रेष्ठ ! भूमि से...
पाताल के नीचे बहुत अधिक जल है और उसके...
अब मैं तुमसे काल का मान बताऊंगा, उसे सुनो...
न जायते कुलम यस्य बीजशुद्धि बिना ततः | तस्य...
नारद जी कहते हैं – अर्जुन ! इसके बाद...