आजकल स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली हिंदी की किताबों में उर्दू के शब्द देख कर दिल जल जाता है । अरे भाई, जब किताब हिंदी की है, बच्चों को हिंदी पढ़ाने के लिए है तो वहां नुक्ते का क्या काम ??
आज कल का बच्चा सही से फल नहीं बोल सकता, फुम फुम फुल्लार शब्दम् (भैरव जी की स्तुति) कैसे बोलेगा ? वो फल को फ़ल बोलता है और नुक्ता लगा कर बोलता है क्योंकि यही स्कूलों में पढ़ाया जाता है पर जो हिंदी के अध्यापक पढ़ा रहे हैं, उन्हें ही नहीं पता कि नागरी प्रचारिणी सभा (plz dont ask, what is this, if you dont know about this, you know nothing about Hindi) ने नुक्ते के प्रयोग पर पूरे भारत में ही मनाही कर दी थी ।
तो जो पूरे भारत में मना कर दिया गया, वो स्कूल की किताबों तक कैसे आया ?? किसने इसकी परमिशन दी ?? या हम अपने बच्चों को जान बूझ कर हिंदी भाषा से दूर करने पर तुले हुए हैं !
सभी हिंदी के अध्यापकों, प्रधानाचार्यों को इस बारे में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।
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