ये हमारे देश का दुर्भाग्य है, यहां पाइथोगोरस बच्चों को पढ़ाया जाता है, गौस के नियम पढ़ाए जाते हैं, राइट हैंड थंब रूल पढ़ाया जाता है, इंटीग्रल, फूरियर ट्रांसफॉर्म आदि पढ़ाया जाता है पर कोई नहीं जानता क्यों पढ़ा रहे हैं ?? शिक्षाविदों ने केवल दूसरे देशों से कोर्स बनाने में नकल की, अक्ल नहीं लगाई अगर लगाते तो पूछते, कि इनमें से कितनी चीजें, वास्तव में काम में आती हैं जीवन में ? आप इंजीनियर हैं तो बताइए, आखिरी बार इंटीग्रल कब किया था ? आखिरी बार फूरियर ट्रांसोफर्म कहां लगाया था ?? यदि साधारण व्यक्ति हैं, इंजीनियर नहीं है तो बताइए, आखिरी बार पाइथोगोरस कब लगाई थी ? बाकी जो पच्चीस प्रकार की प्रमेय (theorem) या निर्मेय (irredeemable) थी, वो आखिरी बार कब प्रयोग की थी ??
पर वो सब पूरे भारत देश को पढ़ाया जाता है, जो बहुधा अधिकांश लोगों के जीवन में कभी दुबारा प्रयोग नहीं होता !! क्यों ?? क्योंकि अंग्रेजी शिक्षाविदों ने अपने पूर्वजों के ज्ञान को सहेजने के लिए एक सिस्टम बनाया, कि अगर उन्हें याद रखना है, तो उनकी खोजों को, उनके ज्ञान को आगे की पीढ़ी को बताते रहो, उस आगे की पीढ़ी में से भले ही वो सबके काम न आए पर उनमें से कुछ, उसके आधार पर, आगे कुछ नया खोज सकेंगे और खोजें होती रहती हैं । दुनिया भर में खोज होती हैं पर हमारे लिए वो आयातित ज्ञान है !!
उसे पढ़ना बुरा नही है, वो भी आना चाहिए लेकिन हमने अपने पूर्वजों के कितने ज्ञान को अपने कोर्स, अपने कॉलेज की रेगुलर शिक्षा का माध्यम बनाया ?? दसवीं तक सभी को गणित, विज्ञान आदि पढ़ाते हैं पर क्या दसवीं तक, भारतीय ज्ञान, यथा आयुर्वेद, धनुर्वेद, ज्योतिष, संस्कृत, संस्कृत साहित्य, छंदशास्त्र, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र, नितिशास्त्र कुछ भी पढ़ाते हैं ??
उन्होंने तो अपने पूर्वजों का ज्ञान सहेज लिया और हमने क्या किया ?? हमने की सिर्फ और सिर्फ नकल, कोर्स मेटेरियल बनाने में !! अपने पूर्वजों के ज्ञान को नकार दिया, भुला दिया या डिग्रियों में बांट दिया कि जो MA साहित्य करेगा उसे ही कुमारसम्भव पढ़ाएंगे, या जो MA हिंदी करेगा, उसे ही छंद बताएंगे पर सबको नहीं बताएंगे !!!
नतीजा, पूरा भारतीय समाज भुगत रहा है, अपने पूर्वजों के ज्ञान को भुलाए बैठा है, आधे नास्तिक हो गए, आधे बौद्ध हो गए, आधो को कोई फर्क ही नहीं पड़ता भगवान है, नहीं है, बस पैसा कमाओ । तो शास्त्रों के ज्ञान के आधार पर कुछ नया निकलेगा, ये बात ही बेमानी हो जाती है । कुछ लोग, बहुत थोड़े से लोग बचे हैं, जो कुल परंपरा से या शास्त्रों में रूची होने के कारण उनका अध्ययन करते हैं, जितना भी संभव हो पाता है वरना, शास्त्रों के नाम पर लोग रामचरित मानस या गीता पढ़कर समझते हैं कि हमने तो पता नहीं क्या भारी अध्ययन कर लिया !!! उन्हें ये भी नहीं पता कि गीता एक नहीं है, अनेकों हैं !! सूर्य गीता अलग है, भीष्म गीता अलग है, विदुर गीता अलग है और जाने कितनी गीता हैं पर वो एक को पढ़कर (चाहे समझ में आए या ना आए) समझते हैं कि बड़ा भारी अध्ययन कर लिया ।
क्यों नहीं ये सब कोर्स का हिस्सा है ?? चलो अब तक नहीं था तो अब क्यों नही हो सकता ?? कौन बनाएगा ऐसा कोर्स मेटेरियल ?? कौन बीड़ा उठाएगा ?? या सिर्फ नकल करने में ही सारी अकल खर्च कर देनी है या ये समझा जाएं कि सारे शिक्षाविद खत्म हो चुके हैं, इस देश से !!!
मेरा देश गर्त में जा रहा है, जहां कोई नीति नहीं बची, बस एक नीति है, पैसा । जहां कोई रिश्ता नहीं बच रहा, केवल एक रिश्ता बचा हुआ है, बॉस और एंप्लॉय का !! उसके लिए घर में झगड़ा हो, रिश्ते टूट जाएं पर बॉस से बनी रहनी चाहिए । नौकरी नहीं जानी चाहिए, क्योंकि स्किल्स के नाम पर भी नौकर होने की ही शिक्षा दी जा रही है हमें !!! ये डिप्लोमा, इंजीनियरिंग, सब बस हमें नौकर बनाने के लिए ही पढ़ाया जा रहा है अन्यथा उसकी जीवन में उसकी कोई उपयोगिता नहीं है । पढ़ो और नौकर बनो।
जिसकी जीवन में उपयोगिता है, शास्त्रों की, ज्ञान की, नीति की, अर्थशास्त्र की, वो सिरे से गायब है । कैसे बचेगा देश ? कैसे बचेगा धर्म ? कैसे बचेगा पूर्वजों का ज्ञान ?? कहां है अपना देशी ज्ञान ?
Abhinandan Sharma
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