आज शास्त्रज्ञान सत्र बड़ों के लिए क्यों किया जाता है, इसके बारे मे विस्तार से बताया | इसको पूरा आज के वीडियो में सुना जा सकता है |
उसके बाद बृहदारण्यक उपनिषद (2.4.5) से कुछ श्लोक पढ़ाये –
न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवत्यात्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति,
न वा अरे जायायै कामाय जाया प्रिया भवत्यात्मनस्तु कामाय जाया प्रिया भवति,
न वा अरे पुत्राणां कामाय पुत्राः प्रिया भवन्त्यात्मनस्तु कामाय पुत्राः प्रिया भवन्ति,
न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति,
इस पूरे श्लोक का सार है :
” कोई किसी के सुख के लिए एक क्षण भी कार्य नहीं करता और चाहकर भी नहीं कर सकता , वह जो भी करता है या करेगा एकमात्र स्वयं के सुख के लिए, स्वयं के स्वार्थ के लिए कार्य करता है “
कोई भी हो , पति , स्त्री , माँ , पिता , मित्र , बेटा , बेटी , या कोई भी नातेदार !
अगर कोई किसी से प्यार करता भी है तो वह एकमात्र अपने सुख के लिए प्यार करता है, स्वयं के सुख को भोगने के स्वार्थ के लिए करता है ! “
इसी प्रकार यदि सुख दुःख से अलग होना है, विरक्ति को प्राप्त होना है तो पहले स्वार्थ से मुक्त होना होगा | इस सुख के लोभ से मुक्त होना होगा | इस पर एक लम्बी चर्चा की गयी | जिसको शास्त्रज्ञान के वीडयो में सुना जा सकता है |
In Short – सब स्वार्थी हैं । “सब मोह माया है”
इसीलिए भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ।
इसके बाद सुभाषित पढ़ाया गया –
खलः सर्षपमात्राणि परच्छिद्राणि पश्यति।
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति॥
एक दुष्ट व्यक्ति दूसरों के सरसों के दाने के समान छोटे दोषों/कमियों को भी खोजकर आलोचना करता हैं पर अपने खुद के बेल के फल के समान बडे दोषों को देख कर भी अनदेखा कर देता हैं।
इस सुभाषित पर भी विस्तार से चर्चा हुई और जीवन से कैसे इसको समझा जा सकता है, इसको बताया | इसे भी पूरा वीडियो में सुन सकते हैं |
https://youtube.com/live/CCgCgKR0WlU
इसके बाद महाभारत से कथा सुनाई, जिसमें कृष्ण जी की बुआ के बच्चों और कृष्ण जी और अर्जु का सर्पकन्याओं से सम्बन्ध बताया गया | इसे भी, आज के लाइव में सूना जा सकता है |
अभिनन्दन शर्मा