शरद पूर्णिमा के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है, लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि ज्यादा कहने की बजाय कुछ meaningful कहने की कोशिश करूं ।
आजकल के बच्चे जो अंग्रेजी मीडियम में पढ़ते हैं, वो जानते भी नहीं हैं कि ऋतुएं कितनी होती हैं । उनसे अगर पूछेंगे कि कितनी ऋतुएं या सीजन होते हैं तो वो आपको बताएंगे कि चार season होते हैं, spring, summer, autumn and winter । उनको पता ही नहीं है कि ये ऋतुएं वहां होती हैं, जहां का एजुकेशन सिस्टम हमारे यहां पढ़ाया जा रहा है, मतलब UK में । भारत में चार नहीं छः ऋतुएं होती हैं । अफसोस की बात है कि भारत के बच्चों को, भारत की ऋतुओं के बारे में नहीं पता, पर UK की ऋतुएं पता हैं ।
भारत की छः ऋतुओं में होती हैं, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर। अंग्रेजी में जिसे autumn कहते हैं, उसे ही हिंदी में शरद ऋतु कहते हैं लेकिन ऋतुओं में यदि देखा जाए तो सबसे सुहाना मौसम बसंत और शरद ऋतु में ही होता है । ठंडी ठंडी हवा चलती है, मौसम में न बहुत गर्मी होती है और न सर्दी होती है ।
ऐसी शरद ऋतु की पूर्णिमा यानि full moon को शरद पूर्णिमा कहा जाता है । वैसे तो पूर्णिमा हरेक महीने में आती ही है लेकिन शरद पूर्णिमा का भारत में विशेष महत्व है ।
क्योंकि ज्योतिष के अनुसार, इस दिन चंद्रमा, धरती के सबसे करीब होता है । इसीलिए पूरे साल में, सबसे बड़ा चंद्रमा इसी रात में देखा जाता है । विदेशी लोग, astronomy में इस चंद्रमा के orbit के धरती के सबसे पास के प्वाइंट को perigee बोलते हैं, जो कि धरती से 363300 किलोमीटर दूर है । हम इसे शरद पूर्णिमा कहते हैं और अंग्रेज इसे full moon की जगह supermoon कहते हैं । आजकल के बच्चों को supermoon तो पता होगा लेकिन शरद पूर्णिमा नहीं पता होगा क्योंकि वो कहीं पढ़ाया ही नहीं जाता पर ये जानकारी सबको होनी चाहिए कि शरद पूर्णिमा में विशेष क्या है ।
भारतीयों ने ऐसी खगोलीय घटनाओं को याद रखने के लिए, अनेक प्रकार की कथाएं बनाई, ताकि जो लोग ज्योतिष नहीं पढ़ते या जानते, वो भी ऐसी खगोलीय घटनाओं को कथाओं के माध्यम से जानें । ऐसी ही एक कथा है कि चंद्रमा की 27 पत्नियां थी, जो कि प्रजापति दक्ष की बेटियां थीं । अब आप सोचिए कि चंद्रमा की 27 पत्नियां क्यों बताई गईं ? क्योंकि भारतीय ज्योतिष के हिसाब से, कुल 88 नक्षत्र (constellation) होते हैं लेकिन चंद्रमा के orbit में 27 नक्षत्र पड़ते हैं, अब इसे कथाओं में पिरोने के लिए बताया गया कि चंद्रमा की 27 पत्नियां थी । चंद्रमा इन 27 नक्षत्रों में पूरे साल में घूमता रहता है, और इस प्रकार चंद्रमा एक नक्षत्र में करीब साढ़े 13 दिन रहता है और चंद्रमा के एक पूर्णिमा से अगली पूर्णिमा में आने तक 27 दिन लगते हैं, जैसी नक्षत्र मास कहते हैं। भारतीय ज्योतिष में इसका बहुत महत्व है, इसीकी वजह से मलमास या खड़मास होता है पर उस पर किसी और दिन बात करेंगे क्योंकि वो कैलेंडर का विषय है। अभी हम वापिस कथा पर आते हैं ।
तो चंद्रमा की 27 पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से शिकायत की, कि चंद्रमा हमसे अधिक प्रेम रोहिणी (another constellation) से करता है । पिता ने बेटियों की शिकायत पर चंद्रमा से बात की, चंद्रमा ने assure किया कि आगे से ऐसा नहीं होगा, लेकिन फिर भी ऐसा ही हुआ । तो दुबारा शिकायत की गई, इस बार चंद्रमा को प्रजापति दक्ष के क्रोध का सामना करना पड़ा और चंद्रमा की शाप मिला कि वो क्षय रोग से पीड़ित हो जाए। चंद्रमा को क्षय रोग हुआ (TB) तो चंद्रमा घटने लगे । रोज थोड़ा थोड़ा घटने लगे तो लगा कि 15 वें रोज, मर ही जायेंगे तो वो न मरे, इसके लिए प्रजापति दक्ष की एक अन्य कन्या सती ने उनके लिए महामृत्युंजय का जाप किया । जिसके कारण शिव जी प्रसन्न होकर आए तो सती ने कहा कि मेरे जीजा जी, मरणासन्न है, इनको जीवनदान दे । शिवजी ने कहा शाप तो वो समाप्त नहीं कर सकते, लेकिन अब से चंद्रमा को मैं अपनी शरण में लेता हूं और जो मेरी शरण में है, वो मरेगा नहीं अतः चंद्रमा क्षय होने के बाद (अमावस्या) पुनः अपने पूर्ण रूप में आएगा लेकिन वर्ष में एक दिन, वो अपने संपूर्ण रूप में आया करेगा ।
ये पूर्ण रूप है, पूर्णिमा और ये सम्पूर्ण रूप है, supermoon, जो शरद पूर्णिमा के दिन हुआ करता है । अब इस कथा से, जो लोग ज्योतिष नहीं जानते, वो भी जान गए कि चंद्रमा हरेक तिथि (दिन नहीं, तिथि दिन से थोड़ा छोटी होती है) पर एक कला छोटा हो जाता है और इस प्रकार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का कॉन्सेप्ट, अमावस्या और पूर्णिमा का कॉन्सेप्ट और शरद पूर्णिमा के माध्यम से चंद्रमा की खगोलीय स्थिति का कॉन्सपेट, जन जन तक पहुंच गया पर कालांतर में लोग केवल कथाओं को याद रखने लगे और उनके मूल कांसेप्ट को भूल गए, वो सब बताने वाले भी खतम हो गए । अब बस पंडित बचे हैं और कथाएं बची हैं और मूल ज्ञान भी क्षय होता जा रहा है ।
रही बात कि इस विशेष दिन का क्या असर होता है, तो चंद्रमा के पृथ्वी के सबसे पास आने से बहुत सी चीजों में बहुत प्रभाव पड़ता है । जैसे कि पूरे साल में क्योंकि चंद्रमा इस दिन धरती के सबसे पास होता है तो उसकी गुरत्वकर्षण शक्ति इस दिन धरती पर सबसे ज्यादा होती है और इसी की वजह से इस दिन समुद्र में पूरे साल का सबसे बड़ा ज्वार यानि tides आते हैं।
वेदों में कहा गया है, चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत, मनुष्य, चाहे स्त्री हो या पुरुष, उसके मन पर चंद्रमा का गहरा प्रभाव होता है । यही वजह है कि अमावस्या वाले दिन asylum में पागल अमूमन शांत रहते हैं लेकिन पूर्णिमा के दिन, उनकी एक्टिविटीज बढ़ जाती हैं क्योंकि पूर्णिमा या सुपरमून के समय, मनुष्य के मन में चंचलता/वैचारिकता बढ़ जाती है । ज्योतिषी बताते हैं कि फुल moon के आस पास पैदा हुए लोग मानसिक रूप से मजबूत होते हैं जबकि अमावस्या के आसपास पैदा हुए लोग, अमूमन अकेलापन और भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं । केवल इतना ही नहीं, जैसे ज्योतिष में रक्त का संबंध मंगल ग्रह से माना जाता है, ऐसे ही चंद्रमा का संबंध प्लाज्मा से माना जाता है। जिस व्यक्ति का चंद्रमा कमजोर होता है, उसे आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष (बलगम, छाती, सांस रोग, TB) होने की संभावना अधिक रहती है जबकि, जिनका चंद्रमा मजबूत होता है, उन्हें ये रोग कम होते हैं या नहीं होते हैं । इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात को खीर पका कर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है और उस खीर को फिर खाते हैं, इससे ये माना जाता है कि कफ दोष का शमन होता है और छाती रोग में आराम मिलता है ।
इस प्रकार भारतीय परंपराओं के पीछे बहुत से रहस्य, तर्क, विज्ञान, खगोलीय घटनाएं, आयुर्वेद हो सकती हैं, लेकिन समय के साथ हम, उस सब को, जो हमारा अपना देशी ज्ञान है, उसे भूलते जा रहे हैं । जहां के बच्चे अपने देश के मौसम नहीं बता पाते, उस देश में शरद ऋतु को याद करने वाले, आज से 50 साल बाद कितने ही लोग बचेंगे। धीरे धीरे हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएं और हमारा देशी ज्ञान भी क्षय रोग को प्राप्त हुआ जा रहा है, मैं आशा करता हूं कि आने वाले समय में कोई इसके लिए भी महामृत्युंजय जप करे और इस क्षय और समाप्त होती हुई परंपराओं को जीवित रखने के लिए, कोई प्रयास करे ।
इसी आशा के साथ मैं आप सभी को शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं देता हूं । आइए, हम अपने ज्ञान को संरक्षित करने का प्रयास करें और खीर खाएं ।