पाताल के नीचे बहुत अधिक जल है और उसके नीचे नरकों की स्तिथि बताई गयी है । जिनमें पापी जीव गिराए जाते हैं । महामते ! उनका वर्णन सुनो – यों तो नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर श्वभोजन तक इक्कीस प्रधान हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं – रौरव, शूकर, रौघ, ताल, विशसन, महाज्वाल, तप्तकुम्भ, लवण, विमोहक, रूधिरान्ध, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रवन,कृष्ण, भयंकर, लालभक्ष, पापमय, पूयमह, वहिज्वाल, अधःशिरा, संदर्श, कालसूत्र, तमोमय-अविचि, श्वभोजन और प्रतिभाशून्य अपर अवीचि तथा ऐसे ही और भी भयंकर नर्क हैं ।
झूठी गवाही देने वाला मनुष्य रौरव नरक में पड़ता है । गोओं और ब्राह्मणों को कहीं बंद करके रोक रखने वाला पापी रोध नरक में जाता है । मदिरा पीने वाला शूकर नरक में और नर हत्या करने वाला ताल नरक में पड़ता है । गुरु पत्नी के साथ व्यभिचार करने वाला पुरुष तप्तकुम्भ नामक नरक में गिराया जाता है तथा जो अपने भक्त की हत्या करता है उसे तप्तलोह नरक में तपाया जाता है । गुरुजनों का अपमान करने वाला पापी महाज्वाल नरक में डाला जाता है । वेद शास्त्रों को नष्ट करने वाला लवण नामक नरक में गलाया जाता है । धर्म मर्यादा का उल्लंघन करने वाला विमोहक नरक में जाता है । देवताओं से द्वेष रखने वाला मनुष्य कृमिभक्ष नरक में जाता है । दूषित भावना से तथा शास्त्रविधि के विपरीत यज्ञ करने वाला पुरुष कृमिश नरक में जाता है । जो देवताओं तथा पितरों का भाग उन्हें अर्पण किये बिना ही अथवा उन्हें अर्पण करने से पहले ही भोजन कर लेता है, वह लालभक्ष नामक नरक में यमदूतों द्वारा गिराया जाता है ।
सब जीवों से व्यर्थ बैर रखने वाला तथा छल पूर्वक अस्त्र शस्त्र का निर्माण करने वाला विशसन नरक में गिराया जाता है । असत्प्रतिग्रह ग्रहण करने वाला अधोमुख नरक में और अकेले ही मिष्ठान्न ग्रहण करने वाला पूयवह नरक में पड़ता है । मुर्गा, कुत्ता, बिल्ली तथा पक्षियों को जीविका के लिए पालने वाला मनुष्य भी पूयवह नरक में पड़ता है । जो दूसरों के घर, खेत, घास और अनाज में आग लगाता है, वह रुधिरान्ध नरक में दाल जाता है । नक्षत्र विध्या तथा नट एवं मल्लों की वृत्ति से जीविका चलाने वाला मनुष्य वैतरणी नामक नरक में जाता है । जो धन और जवानी के मद से उन्मत्त होकर दूसरों के धन का अपहरण करता है, वह कृष्ण नामक नरक में गिरता है । व्यर्थ ही वृक्षों को काटने वाला मनुष्य असिपत्रवन में जाता है । जो कपटवृत्ति से जीविका चलाते हैं, वे सब लोग बहिज्वाल नामक नरक में गिराए जाते हैं । परायी स्त्री और पराये अन्न का सेवन करने वाला पुरुष संदर्श नरक में डाला जाता है । जो दिन में सोते हैं तथा वृत का लोप किया करते हैं और जो शरीर के मद से उन्मत्त रहते है, वे सब लोग श्वभोज नामक नरक में पड़ते हैं । जो भगवान् शिव और विष्णु को नहीं मानते, उन्हें अवीचि नरक में जाना पड़ता है ।
इस प्रकार के शास्त्र निषिद्ध कर्मों के आचरणरूप पापों से पापी सहस्त्रों अत्यंत घोर नरकों में अवश्य गिरते हैं । अतः जो मनुष्य इन नरकों से छुटकारा पाना चाहते हो, उसे वैदिक मार्ग का अवलंबन करके भगवान् विष्णु और शिव दोनों की आराधना करनी चाहिए ।