उद्देश्य – इस संधर्भ का उद्देश्य मात्र रामायण से पहले के रावण वध की प्रस्तावना और भगवान् राम के सभी सहयोगियों का परिचय कराना है जहाँ कुछ भ्रान्तिया हैं । स्कंध पुराण के अंश से मुझे निम्न लिखित उद्धरण मिला जो आपके सामने प्रस्तुत है ।
सन्दर्भ – सभी देवता रावण के अत्याचारों से त्रस्त हो कर विष्णु जी के समीप उपस्थित हुए । देवताओ के प्रार्थना करने पर भूतभावन भगवान बासुदेव ने संपूर्ण देवताओ से कहा – ‘देवगण ! आप लोग अपने प्रस्ताव के अनुसार मेरी बात सुनो, नंदी को आगे करके तुम सभी शीघ्रता पूर्वक वानर शरीर में अवतार लो । मैं माया से अपने स्वरुप को छिपाए हुए मनुष्यरूप होकर अयोध्या में राजा दशरथ के घर प्रकट होऊंगा । तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिए मेरे साथ ब्रहम विद्या भी अवतार लेंगी । राजा जनक के घर साक्षात् ब्रह्मविद्या ही सीतारूप मैं प्रकट होंगी । रावण भगवान शिव का भक्त है । वह सदा शिव के ध्यान में तत्पर रहता है । उसमें बड़ी भारी तपस्या का भी बल है । जब ब्रह्मविद्या रूप सीता को बलपूर्वक प्राप्त करना चाहेगा, उस समय वह दोनों स्तिथियों से तत्काल भ्रष्ट हो जायेगा । सीता के अन्वेषण में तत्पर होकर वह न तो तपस्वी रह जायेगा और न ही भक्त । जो अपने को न दी हुई ब्रह्मविद्या का बल पूर्वक सेवन करना चाहता है, वह पुरुष धर्म से परास्त हो कर सदा सुगमतापूर्वक जीत लेने योग्य हो जाता है ।
परम मंगलमय भगवान विष्णु इस प्रकार के वचनों द्वारा सम्पूर्ण देवताओ को आश्वासन देकर अंतर्ध्यान हो गए । तदनंतर सब देवता अवतार धारण करने लगे । इंद्र के अंश से बाली उत्पन्न हुए, सुग्रीव सूर्य के पुत्र थे । जाम्बवान ब्रह्मा जी के अंश से प्रकट हुये थे । शिलाद के पुत्र नंदी, जो भगवान शिव के अनुचर तथा ग्यारहवे रूद्र थे, महाकपि हनुमान हुए । ये अमित तेजस्वी भगवान विष्णु की सहायता करने के लिए ही अवतीर्ण हुए थे । अन्यान्य श्रेष्ठ देवता मैंद आदि कपियों के रूप में प्रकट हुए । साक्षात् भगवान विष्णु ही माता कौशल्या का आनंद बढ़ाने वाले श्री राम हुए । सम्पूर्ण विश्व उनके स्वरुप में रमण करता है, इसलिए विद्वान पुरुष उनको ‘राम’ कहते हैं । भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और तपस्या से युक्त शेषनाग भी इस पृथ्वी पर लक्ष्मण के रूप में अवतीर्ण हुए । श्री विष्णु के भुज दण्ड (शंख और चक्र) से भी दो प्रतापी वीर प्रकट हुए, जो तीनो लोको में भरत-शत्रुधन के नाम से विख्यात हुए । ब्रह्मवादी पुरुषों द्वारा जो मिथिलापति जनक की कन्या बतायी गयी हैं, वे सीता साक्षात् ब्रह्मविद्या थी; वे भी देवताओ के कार्य की सिद्धि के लिए ही अवतीर्ण हुई थी ।
राजा जनक ने ब्रह्मविद्या स्वरुप सीता को परमात्मा ब्रह्मरूप श्री राम की सेवा में अर्पित कर दिया । कमलनयन श्री राम ने रावण को जीतने की इच्छा तथा देवकार्य सिद्धि के लिए वन में निवास किया । शेषावतार लक्ष्मण ने भी उसी के लिए अत्यंत दुष्कर एवं महान ताप किया । भरत और शत्रुधन ने भी बड़ी भारी तपस्या की । तदनंतर तपोबल संपन्न हो कपिरूपधारी देवताओ को साथ ले कर श्री राम ने छः मास तक युद्ध करके रावण का वध किया । भगवान विष्णु के द्वारा शस्त्रों से मारा गया रावण अपने गणों, पुत्रो तथा बंधुओ सहित तत्काल भगवन शिव के सारुप्य को प्राप्त हो गया । शंकर जी की कृपा से उसने सम्पूर्ण द्वैताद्वैत ज्ञान प्राप्त किया ।
जो नित्य (द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से किसी भी) लिंगस्वरुप भगवान् शिव की पूजा करते हैं, वे स्त्री, शूद्र, अन्त्यज अथवा चाण्डाल ही क्यों न हो, सम्पूर्ण दुखो का नाश करने वाले शिव को अवश्य प्राप्त होते हैं ।
aur discript hona chahiya
मुझे पुराण में अभी इतना ही मिला है |