November 21, 2024

*मंडन 4 – शून्य की खोज किसने की, इस वायरल पोस्ट का सच*

हमारे पास सोशल मिडिया में घूमती एक वायरल पोस्ट आई थी | इस पोस्ट में शून्य के विषय में कुछ बातें लिखी थी |पहले आप वो वायरल पोस्ट पढ़ें और फिर उसके बाद हमारा उस पोस्ट पर क्या दृष्टिकोण हैं, उसे पढ़ें –

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शून्य पर फ़ैल रही वायरल पोस्ट
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आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी ? रावण के दस सिर कैसे हो सकते हैं, जबकि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की?

कुछ लोग हिन्दू धर्म व “रामायण” महाभारत “गीता” को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट्ट ने लगभग 6 वी शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट्ट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई !!!

और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई !! जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे !! तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना !!!!

अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हु !! कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे!

आर्यभट्ट से पहले संसार 0 (शुन्य) को नही जानता था !! आर्यभट्ट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है !! लेकिन आर्यभट्ट ने “0( जीरो )”” की खोज अंको मे की थी, शब्दों में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था !!!

उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण,स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को शुन्य कहा गया है !! यहाँ पे “शुन्य” का मतलव अनंत से होता है !! लेकिन रामायण व महाभारत काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी संस्कृत मे !! उस समय 1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10 अंक के स्थान पे शब्दो का प्रयोग होता था वह भी संस्कृत के शव्दो का प्रयोग होता था !!!

जैसे !
1 = प्रथम
2 = द्वितीय
3 = तृतीय”
4 = चतुर्थ
5 = पंचम””
6 = षष्टं”
7 = सप्तम””
8 = अष्टम””
9 = नवंम””
10 = दशम !!

दशम = दस | यानी” दशम मे दस तो आ गया,लेकिन अंक का | 0 (जीरो/शुन्य ) नही आया,‍‍रावण को दशानन कहा जाता है !! दशानन मतलव दश+आनन =दश सिर वाला

अब देखो – रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई !! लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया !!

इसी प्रकार महाभारत काल मे संस्कृत शब्द मे कौरवो की सौ की संख्या को शत-शतम “”बताया गया !! शत् एक संस्कृत का “शब्द है, जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है !! सौ(100) “को संस्कृत मे शत् कहते है !! शत = सौ| इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई !! लेकिन इस गिनती मे भी अंक का 00(डबल जीरो) नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई !!! महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है!

रोमन मे भी 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की जगह पे (¡)”(¡¡)”””(¡¡¡)”” पाँच को V कहा जाता है !! दस को x कहा जाता है !! रोमन मे x को दस कहा जाता है !! X= दस | इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया !! और हम” दश पढ “भी लिए और” गिनती पूरी हो गई!! इस प्रकार रोमन word मे “कही 0 (जीरो) “नही आता है!! और आप भी” रोमन मे””एक से लेकर “सौ की गिनती “पढ लिख सकते है !! आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है !!

पहले के जमाने मे गिनती को शब्दो मे लिखा जाता था !! उस समय अंको का ज्ञान नही था !! जैसे गीता,रामायण मे 1″2″3″4″5″6 या बाकी पाठो (lesson ) को इस प्रकार पढा जाता है !! जैसे (प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय… आदि !!) इनके”” दशम अध्याय ‘ मतलब दशवा पाठ (10 lesson) “” होता है !! दशम अध्याय= दसवा पाठ | इसमे दश शब्द तो आ गया !! लेकिन इस दश मे अंको का 0 (जीरो)” का प्रयोग नही हुआ !! बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई !!

(हिन्दू बिरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा ‍ हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है !!) जिससे हिन्दूओ के मन मे हिन्दू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके,हिन्दू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए !!!

लेकिन आज का हिन्दू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है !!! यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानि कारक है !! अपनी सभ्यता पहचाने,गर्व करे की हम भारतीय है।

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*मंडन 4 – शून्य की खोज किसने की, इस वायरल पोस्ट का सच*

पोस्ट को, जो हमारे पास खंडन/मंडन के लिए आई थी, उस पर हमने विभिन्न दृष्टान्तों से देखा |  पोस्ट में जो लिखा गया है कि “आर्यभट ने ही शून्य की खोज की, ये एक सत्य है |” हमारा मत ऐसा नहीं है | आर्यभट ने शून्य की खोज नहीं की थी | आर्यभट से पहले भी पूर्व में, बहुत जगह दश, शत आदि संख्याओं का ज्ञान था | आर्यभट ने अपने गणितीय ग्रंथों में शून्य के लिये एक अक्षर प्रयोग किया – ख |

विदेशियो को किसी भी खोज के लिये, लिखित में चाहिये, जिसके ग्रन्थ काल, लेखक आदि के बारे में प्रमाण उपलब्ध हों कि वो कितना पुराना आदि है | हमारे यहाँ, वैदिक काल में अथवा बाद में भी, ग्रंथों में अपना नाम देने की परम्परा नहीं थी, अपने किये कार्य की श्रेय लेने की परम्परा नहीं थी | कभी लेखक लिख देता था अथवा लेखक के बाद के लोग, सम्मान में, लिख देते थे कि फलाना ज्ञान अथवा पुस्तक, उन्होंने कही होने के कारण, उनकी ही है | सूर्य सिद्धांत में मय दैत्य का नाम है, लेखक का पता ही नहीं है कि किसने लिखी है जबकि गणित का और ज्योतिष का अप्रतिम ग्रन्थ माना जाता है | अतः विदेशियों ने आर्यभट को ही सबसे आधुनिक, प्रामाणिक माना कि शून्य के बारे में इन्होने लिखा है अतः इन्होने ही शून्य की खोज की | कह सकते हैं कि विदेशियों के लिये, शून्य की खोज आर्यभट ने की, किन्तु हमारे यहाँ शून्य का प्रयोग बहुत पहले से होता आ रहा है, जैसा कि पोस्ट में लिखा हुआ है और विभिन्न सन्दर्भ दे रखे हैं कि दशानन, शत आदि शब्द |

पोस्ट में मात्र, रामायण और महाभारत के ही सन्दर्भ है, कुछ और सन्दर्भ हम जोड़ देते हैं, जिससे कि ज्ञात हो कि शून्य का ज्ञान हमको बहुत पहले से था… जब बहुत पहले कहा जा रहा है तो तात्पर्य वैदिक काल से है |

उदा 1 – यजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा में दाशमिक प्रणाली का स्पष्ट वर्णन है, जहाँ दस से गुणा करते करते 10 की घात 12 तक का वर्णन है | जिसकी इमेज अलग से दी जा रही है |

pratima मंडन 4 - शून्य की खोज का सच |

उदा 2 – शुक्ल यजुर्वेद के 18 वें अध्याय में मन्त्र है (रुद्राष्टाध्यायी) –  ऽष्टौ च मे ऽष्टौ च मे द्वादश च मे द्वादश च मे षोडश च मे षोडश च मे विशतिश्च मे विशतिश्च मे चतुर्विशतिश्च मे….. | अब यदि दशम प्रणाली न होती तो द्वादश (१२) अथवा षोडश (16) की परिकल्पना कैसे होती ? इसी बात को अघोरी अघोरी बाबा की गीता में स्पष्ट लिखा गया है | उसमें इस प्रकार के बहुत सी बातों के खंडन/मंडन हैं, जो पठनीय हैं |

abkg 1 मंडन 4 - शून्य की खोज का सच |
abkg 2 मंडन 4 - शून्य की खोज का सच |

पोस्ट की अन्य बातों से हमारी सहमति है | अतः हम कह सकते है कि छोटी सी त्रुटी के अलावा ये पोस्ट बिल्कुल सही है और हम इसका मंडन करते हैं | जाते जाते आपको दशमलव शब्द के बारे में बताते हैं – दशम अर्थात दस और लव अर्थात टुकड़ा अतः दशमलव का मतलब वो जो पॉइंट लगाते हैं, केवल वो नहीं है, वो तो उसको दिखाने का एक तरीका है, वास्तविक अर्थ है – दसवां टुकड़ा | (अगली बार आई लव यू को, तुम मेरे टुकड़े हो, कह सकते हैं 😊)

पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा
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