November 21, 2024
पात्र

पात्र कौन होता है ? पात्र कैसे बना जाए ? ज्ञान किसको मिलेगा ?

शास्त्रों में कहते हैं कि ज्ञान पात्र को ही देना चाहिये | पर पात्र की भी सही सही परिभाषा कहीं एक जगह नहीं मिलती है, जैसे धर्म की नहीं मिलती है | आज जानते हैं कि पात्र कौन होता है ? ऐसी परिभाषा पात्र की कहीं अन्यत्र नहीं मिलेगी अतः इसे अवश्य पढ़ें, यदि ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं –


पात्र मतलब बर्तन – बर्तन कोई सपाट नहीं होता, सबमें थोड़ी गहराई होती है | बिना गहराई का कोई बर्तन नहीं होता है | यदि मैं एक लकड़ी की सीधी प्लेट पर पानी डालूँगा तो जल नहीं रुकेगा लेकिन यदि मैं किसी बर्तन में पानी डालूँगा तो अवश्य रुकेगा | अतः पात्र की पहली पहचान होती है कि उसमें गहराई होनी चाहिए…जो जितना गहरा पात्र होगा, उसमें उतनी ही अधिक मात्रा में, पानी (ज्ञान) इकठ्ठा हो सकता है | जिसमें कम गहराई होगी, उसमें कम ही बातें आ पाएंगी | अतः पात्र बनने के लिए अपने अन्दर गहराई लानी चाहिए, धैर्य लाना चाहिए | जो अधीर है, जल्दी जल्दी उत्तर चाहिए जिसे, short में उत्तर चाहिए जिसे, उसमें गहराई का अभाव है |


पात्र मतलब बर्तन – बर्तन पहले से खाली होना चाहिए | यदि बर्तन पहले से भरा होगा तो उसमें कुछ भी और नहीं आ सकता है | यदि गिलास पहले से भरा होगा (गंदे पानी रुपी अज्ञान से) तो क्या उसमें आप और साफ़ पानी डाल सकते हैं ? पहले उस गिलास को खाली करना पड़ेगा, मांजना पड़ेगा (निर्मल और संशयरहित बुद्धि से) तब ही आप उसमें और पानी (ज्ञान) डाल सकते हैं | अतः ये मानना चाहिए कि अभी मुझे जो आता है, वो आवश्यक नहीं कि सही ही हो | हो सकता है वो गलत भी हो | जिसे पहले से थोडा बहुत गायन आता है, उसे गायन सिखाना मुश्किल है, बजाय जिसे संगीत बिल्कुल नहीं आता उसे |


पात्र मतलब बर्तन – बर्तन की गहराई वाला हिस्सा नीचे होना चाहिए, मतलब बर्तन खुला होना चाहिए | यदि बर्तन उल्टा रखा होगा तो ऊपर से पानी डालने पर भी बर्तन नहीं भरेगा | अतः जो पात्र है, उसको अपने दिमाग को खुला रखना पड़ेगा, बिना ये सोचे कि इसकी बात पूरी हो जाए, फिर इसको बताता हूँ, ऐसा प्रश्नरुपी ईंट का ढेला मारूंगा कि मजा आ जायेगा (इसका मतलब है कि बर्तन उल्टा है, सीधा नहीं है, उस बर्तन में किसी प्रश्न का उत्तर (ज्ञानरुपी जल) घुसेगा ही नहीं क्योंकि फोकस उत्तर पर है भी नहीं, फोकस तो अगले प्रश्न पूछने पर अथवा छिद्रान्वेषण अर्थात कमियां निकालने में है)


पात्र मतलब बर्तन – यदि पहले से साफ़ हो (सौम्यता, शील, नम्रता, पूर्वाग्रह रहित अदि गुणों से युक्त) तो ही उसमें साफ जल डालने का फायदा है अन्यथा आप उसमें साफ़ जल डालेंगे लेकिन पहले की गंदगी की वजह से वो साफ़ जल भी पुनः गन्दा हो जायेगा | पीने योग्य (ग्रहण करने योग्य) नहीं होगा | अतः पात्र को ये समझना चाहिए कि ज्ञान लेना है तो स्वयं के ग्यानी होने का दंभ ले कर न जाए अन्यथा कुछ नया नहीं सीख पायेगा (ये गुण आजकल बड़ा ही दुर्लभ है, आजकल सभी ग्यानी हैं)


ऊपर के बर्तन से ही जल नीचे के बर्तन में जाता है, उल्टा नहीं – अतः जिसे ज्ञान चाहिए, वो स्वयं को, जिससे प्रश्न कर रहा है, उससे ऊपर न समझे | यदि स्वयं को ऊपर समझेगा तो भी उसे कुछ भी नया प्राप्त नहीं होगा | अपना घमंड लेकर जाएगा और अपना घमंड ही वापिस लेकर आएगा |


श्रद्धावान लभते ज्ञानं – ये वाला भगवद्गीता से | जिससे प्रश्न पूछता हो, उसमें श्रद्धा होनी चाहिए कि यहाँ से मुझे उत्तर मिलेगा | ये न सोचे कि ये क्या उत्तर देगा ? इसको क्या पता है ? अथवा मेरे पास तो ऐसा प्रश्न है, जिसका कोई उत्तर ही नहीं है, ये कहाँ से देगा ! अथवा ये सोचे कि अरे ! ये क्या जानता है, ये कौन सा ओशो या कोई बहुत बड़ा बाबा/संत है ! पर ध्यान रखिये यदि सचिन तेंदुलकर भी ऐसा सोचता कि ये आचरेकर जी मुझे क्या सिखायेंगे, इन्होने तो खुद कुल जमा 100 इंटरनेशनल मैच नहीं खेले ! ये क्या सिखायेंगे ! तो वो कभी सचिन तेंदुलकर नहीं बन पाता अतः जिससे प्रश्न करे, उसमें श्रद्धा भी अवश्य रखे | हो सकता है कि उत्तर देने वाले का उत्तर तुरंत समझ न आये (बतर्न के कम विस्तार की वजह से) पर गुरु के सानिध्य से जल्द ही आपका बर्तन विस्तृत हो जाएगा और फिर बहुत सी बातें समझ आने लगेंगी, जो पहले नहीं आती थी | ये ठीक वैसा है जैसे बहुत लोगों को लगता है कि मेरा बाप क्या जानता है, ये तो पुराने जमाने के हैं ! मैं मॉडर्न हूँ, इनसे ज्यादा जानता हूँ, इन्हें क्या पता है ? पर जब पिताजी चले जाते हैं और खुद अपने बराबर के बच्चे का बाप होता है, तब सोचता है कि यार ! ये बात पिताजी बताते थे, सही बताते थे | मैंने कभी ध्यान नहीं दिया, उनके जीते जी | पर आपकी समझ में वो बात तब इसलिए नहीं आई क्योंकि आपका बर्तन छोटा था | उसमें विस्तार कम था |


उपरोक्त जैसी परिभाषा पात्र की, आपको किसी शास्त्र में नहीं मिलेगी अतः ये समझें कि शास्त्रों के समुचित चिन्तन, मनन से, विभिन्न विषय बहुत स्पष्ट हो जाते हैं, बशर्ते कि प्रश्नकर्ता जिज्ञासु (जिज्ञासु ही ज्ञान प्राप्त करता है) हो और पात्र भी हो | तब ……. तब बर्तन एकदम नए जैसा चमकेगा 🙂


पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

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