राहु केतु को ज्योतिष में ग्रह या छाया ग्रह क्यों कहा जाता है ?
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम् सुप्रभातम् ||
हे ब्रह्मा, मुरारी , त्रिपुरांतकारी (शिव ) , सूर्य, शशि, मंगल (भूमि पुत्र ) बुध , गुरु, शुक्र, शनि , राहू एवं केतू आप सब मेरे सुबहको मंगलकारी करें !
इस श्लोक को बहुत से लोग बोलते हैं, जपते हैं | कुछ लोगों ने पहली बार भी सुना होगा या पढ़ा होगा पहले, पर इस पर बहुत ध्यान नहीं दिया होगा | इस श्लोक में ध्यान देने वाली बात क्या है ? इस श्लोक में ग्रहों के नाम दिए हुए हैं | कुछ जगह इसी श्लोक में, “कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम” की जगह पर “सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु” भी प्राप्त होता है | तो इस श्लोक में बात हो रही है ग्रहों की | पर भानु ? शशि ? ये सब कब से ग्रह हो गए ?
आधुनिक विज्ञान तो इन्हें ग्रह मानता ही नहीं ! फिर हमारा पुरातन धर्म, इन्हें ग्रह क्यों मानता है ? क्या हमारा सनातन धर्म आउटडेटिड है ? और फिर ये राहु और केतु ? ये कौन से ग्रह हैं ? मॉडर्न साइंस में तो ये पढाये ही नहीं जाते ! किन्तु ऐसा अक्सर वही लोग कहते हैं, जिन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता |
चलिए, इसी बात पर आज हम कहानी कहते हैं, राहु और केतु की | पर कहाँ से शुरू करूँ ? समुद्र मंथन से ? नहीं, नहीं | फिर इंद्र और बलि की दोस्ती से ? उम्म्म… नहीं ! शुरू करते हैं गुरु बृहस्पति से | तो हुआ कुछ ऐसा कि एक बार गुरु बृहस्पति इंद्र के दरबार में आये | किन्तु इंद्र, अपनी सभा और अप्सराओं के नृत्य में इतने मग्न थे कि उन्होंने गुरु का न तो सत्कार किया, न कुछ बोला, न बैठने को कहा | खोटी बुद्धि वाले इंद्र इस कृत्य को देखकर, गुरु बृहस्पति कुपित होकर वहां से गायब हो गए | यह देखकर, इंद्र को होश आया और उसने नारद जी से पूछा कि गुरु कहाँ गए ? तब नारद जी ने बताया कि भाई, तुमने जो गुरु की अवहेलना की है, उससे लगता है, वो कुपित हो गए हैं | यह सुनकर इंद्र ने गुरु को मनाने के लिए, उनको ढूढना शुरू किया | किन्तु वो कहीं भी प्राप्त नहीं हुए |
यह बात पातालनिवासी बलि को भी पता चली | उसने सही मौक़ा देखकर, इंद्र पर आक्रमण कर दिया | बिना गुरु के तेज के, इंद्र का बल आधा था | बलि ने, इंद्र को सातों अंगों (राजा, मंत्री, राष्ट्र, किला, खजाना, सोन और मित्रवर्ग) से हरा, स्वर्ग पर अधिग्रहण कर लिया | बलि ने पूरा स्वर्ग लूट लिया किन्तु कुछ रत्न जो उसने लूटे, वो समुद्र में चले गए | बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य से पूछा कि ये क्या हुआ ? तब गुरु शुक्राचार्य ने बताया कि स्वर्ग के रत्न और अन्य वस्तुएं उपभोग करने के लिए १०० अश्वेध यज्ञ करने आवश्यक हैं, बिना उसके, कोई भी स्वर्ग की वस्तुओं का उपभोग नहीं कर सकता | बलि ये बात सुनकर चुप हो गए | इधर इंद्र ब्रह्मा जी के पास पहुचे और पूछा कि ऐसा क्या किया जाए, जिससे स्वर्ग वापस मिल सके | गुरु तो हैं नहीं सो अब इधर उधर ठोकर खाते हुए इंद्र, ब्रह्मा जी के कहने से विष्णु भगवन के पास पहुचे |
विष्णुजी ने पहले तो इंद्र को उसके कुकृत्य के लिए फटकारा और फिर शरण में आये हुए, इंद्र को उपाय बताया कि तुम दैत्यों से मित्रता कर लो | यह सुनकर इंद्र अपने सभी देवताओं को लेकर, पातळ गए | जैसे ही बलि ने सुना कि इंद्र अन्य देवताओं के साथ आ रहा है, बलि ने अपनी सेना, इंद्र को मारने के लिए तैयार कर ली | तभी नारद जी ने आकर, ऊंच नीच समझाई तब बलि ने अपना विचार त्याग दिया | जब इंद्र आया, तो उसकी दशा श्रीहीन होने के कारण बड़ी दयनीय थी | बलि ने पूछा कि भाई, मेरे पास क्या लेने आये हो ? इंद्र ने बताया कि भाई, भाग्य के विपरीत होने से, तुमने पहले ही स्वर्ग छीन लिया है | मेरे पास अब कुछ नहीं है किन्तु जो रत्न तुम लाने का प्रयास कर रहे थे वो समुद्र में (जहाँ से आये थे, वहीँ पर) चले गए हैं | अतः विद्वान पुरुष को एक दुसरे से मिलकर कर्तव्य पर विचार करना चाहिए | विचार करने से ज्ञान होता है और ज्ञान होने से संकट दूर होता है | इस समय मैं समुद्र मंथन से वो रत्न निकालना चाहता हूँ | बलि ने पूछा कि वो कैसे मिलेंगे, समुद्र मंथन कैसे होगा ? इतने पर आकाशवाणी हुई – देवताओं और दैत्यों ! तुम क्षीर समुद्र का मंथन करो | इस कार्य में तुम्हारे बल की वृद्धि होगी | मंदराचल को मथनी बनाओ और वासुकी नाग को रस्सी बना कर मंथन आरम्भ करो | सभी प्रकार के प्रयत्न करने पर, समुद्र मंथन प्रारभ हुआ और उससे विभिन्न रत्न निकलना प्रारभ हुए | आखिर में, समुद्र में से, धन्वन्तरी जी, हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए | जब तक देवता देखते ही रहे गए, तब तक तो वृषपर्वा दैत्य ने बलपूर्वक वो कलश छीन लिया और भाग कर पातळ आ गया | पीछे पीछे देवता आ गए | बलि ने कहा, कि भाई तुम लोगों ने विभिन्न रत्न ले लिए, हमने अमृत ले लिया | बात खत्म | ऐसी फटकार पड़ने पर इंद्र हमेशा की तरह, विष्णु जी के पास गया |
विष्णु जी ने कहा कि मैं कुछ करता हूँ और यह कहकर उन्होंने मोहिनी रूप बनाया और दैत्यों के पास पहुच गयी | दैत्य उस समय आपस में उस कलश के लिए झगड़ रहे थे कि पहले कौन पिएगा | मोहिनी के रूप पर मुग्ध होकर बलि ने मोहिनी से कहा कि इस विवाद की शांति के लिए, हे देवी ! आप ही इस अमृत का विभाजन कर दीजिये |
मोहिनी ने विभिन्न बातें बनाते हुए बलि से कहा – विद्वान् पुरुष को स्त्री का विश्वास नहीं करना चाहिए | इस पर बलि ने कहा कि हे देवी ! तुम यथोचित विभाग करके आज हम सबको अमृत बाँट दो | तुम जिसे जितना दोगी, उतना ही हम ग्रहण करेंगे | ऐसा सुनकर मोहिनी ने कहा कि आप लोग किसी अनिर्वचनीय देव की सहायता से, अपने कार्य में सफल हुए हैं | अतः अमृत का अधिवासन करें और इसे घर में सुरक्षित रखें | आज व्रती रहकर कल सुबह अमृत का पारण करें | बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि अपने न्यायपूर्वक उपार्जित धन का दसवां भाग, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, किसी सत्कर्म में लगावें |
दैत्यगण मोहिनी से मोहित होकर, वैसा ही करने लगे | अगले दिन सुबह सभी दैत्य पंगत लगाकर बैठ गए | मोहिनी हाथ में कलश लिए, उनको अमृत देने के लिए उधृत ही थी | उसी समय इंद्र, अन्य देवताओं के साथ, हाथ में कटोरा लिये, वहां आ गए | उन्हें देखकर मोहिनी ने कहा – इन्हें आप लोग, अतिथि समझें, ये धर्म को ही सर्वस्व समझते हैं | इनके लिए यथाशक्ति दान देना चाहिए | जो लोग अपनी शक्ति के अनुसार दूसरों का उपकार करते हैं, उन्हें ही धन्य मानना चाहिए | वे ही सम्पूर्ण जगत के रक्षक तथा परम पवित्र हैं | जो केवल अपना ही पेट भरने के लिए उद्योग करते हैं, वे क्लेश के भागी होते हैं |
मोहिनी के ऐसा कहने पर दैत्यों ने, देवताओं को अमृत पीने के लिए बुलाया | उनके बैठ जाने पर मोहिनी ने पुनः कहा – वैदिक श्रुति कहती है कि सबसे पहले अतिथि का सत्कार होना चाहिए | अब आप लोग ही बताएं अथवा महाराज बलि बताएं कि पहले किनको अमृत परोसूं ? बलि ने कहा – हे सुंदरी, तुम्हारी जैसी रूचि हो, वैसे ही करो | ऐसा सुनकर मोहिनी ने पहले, देवताओं को अमृत देना आरम्भ किया | उसी समय राहु नामका एक दैत्य, देवताओं के बीच बैठ गया | उसने ज्यो ही, अमृत पीने की इच्छा की; सूर्य और चंद्रमा ने भगवान् विष्णु को इसकी सूचना दे दी | तब भगवान् विष्णु ने विकृत और विकराल शरीर वाले राहु का मस्तक काट डाला | किन्तु तब तक अमृत का पान करने से, उसका कटा हुआ मस्तक आकाश में उड़ गया और शरीर पृथ्वी पर गिर पड़ा | तब से राहु, सूर्य और चंद्रमा का शत्रु हो गया | उसके मस्तक का नाम राहु प्रसिद्ध हुआ और उसके शरीर का नाम, केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ | तब से राहु केतु, सूर्य और चंद्रमा के शत्रु हो गए और इन दोनों को खाने का प्रयास करते हैं |
अब हम देखते हैं कि ये सूर्य और चंद्रमा को कैसे खाते हैं | चित्र में राहु और केतु की ज्योतिष के अनुसार स्थिति दिखाई गयी है |
ज्योतिष के अनुसार, केतु और राहु, चंद्रमा के परिभ्रमण चक्र द्वारा, पृथ्वी के तल को काटने वाले, दो स्थान हैं | इन दो काल्पनिक स्थानों को ही राहु और केतु कहा जाता है, जिन्हें पश्चिमी विज्ञान लूनर नोड बोलता है, हम उन्हें राहु और केतु बोलते हैं |
जब चंद्रमा केतु की स्थिति पर आता है तो केतु सूर्य को खा जाता है अर्थात इस स्थान पर आने से, चंद्रमा की परछाई से, सूर्य ग्रहण हो जाता है | जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है तो उसे क्या कहते हैं ? खग्रास सूर्य ग्रहण | खग्रास मतलब ख+ग्रास अर्थात पूरा का पूरा गस्सा |
ऐसे ही जब चंद्रमा राहु की स्थिति पर आता है, तब पृथ्वी की छाया से ढकने से, चन्द्र ग्रहण हो जाता है | इस प्रकार राहु, अपने स्थान पर चंद्रमा की स्थिति होने पर, चंद्रमा को खा लेता है |
इस प्रकार राहु और केतु की कथा आज, आप लोगों ने सुन ली | क्या कहा ? इनको ग्रह क्यों कहा जाता है ? ये पता ही नहीं चला | अरे हाँ ! वो तो बताना ही भूल गया | हमारे ज्योतिष में ग्रहों की परिभाषा और पश्चिमी विज्ञान के ग्रहों की परिभाषा अलग अलग है | यदि आप उनकी परिभाषा से मैच करेंगे, फिर तो न सूर्य ग्रह है, न चंद्रमा ग्रह है और न राहु और केतु | लेकिन विज्ञान की परिभाषाएं तो बदलती रहती हैं (अब सूर्यमंडल में 9 की जगह 8 ग्रह हैं क्योंकि विज्ञानं ने अपनी परिभाषा फिर से बदल दी है |) लेकिन हमारे ज्योतिष में एक ही परिभाषा है ग्रह की | और वो ये कि जो भी आकाशीय पिंड मनुष्य जीवन को प्रभावित करे, वह ग्रह है | सूर्य भी, चंद्रमा भी और अन्य ग्रह भी | ऐसा नहीं है कि उनको सूर्य, चंद्रमा गुरु, मंगल तो पता था पर उनको नेपच्यून, प्लूटो आदि के बारे में न पता हो | ज्योतिष को तो यम, अरुण और वरुण के बारे में भी पता था किन्तु वो उन्हें ग्रह नहीं मानता था क्योंकि वो पृथ्वी से इतने दूर हैं कि उनके द्वारा आने वाली किरण, मनुष्य जीवन को प्रभावित नहीं करता | अतः ज्योतिष की कुंडली में, इनको स्थान नहीं दिया जाता | राहु और केतु, ज्योतिष में ग्रह नहीं है अपितु छाया ग्रह हैं क्योंकि ये कोई वास्तविक पिंड नहीं है किन्तु इन जगहों पर आने का, मनुष्य के जीवन में, ग्रहों की पोजीशन से, बड़ा महत्व है | अतः इन दोनों नोड्स को, राहु और केतु के रूप में छायाग्रह के नाम से ज्योतिष में ग्रहण किया गया है |
तो इसी बात पर, एक बार फिर से बोलिए |
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम् सुप्रभातम् ||