December 21, 2024

खंडन 24 – रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी और रामचंद्र जी एवं वाल्मीकि जी पर आक्षेप का खंडन

valmiki ramayan 2 खंडन 24 – रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी और रामचंद्र जी एवं वाल्मीकि जी पर आक्षेप का खंडन

खंडन 24 – रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी और रामचंद्र जी एवं वाल्मीकि जी पर आक्षेप का खंडन

जैसा कि पूर्व में किये गए खन्डनो से ज्ञात है कि कुछ मूर्ख लोग, जानबूझ कर सनातन धर्म के ग्रंथों पर और उनके पूज्य भगवानो पर आक्षेप लगाते हैं जिससे समाज में, एक वैमनस्य बना रहे क्योंकि वो नहीं चाहते कि समाज एकजुट रहे और उसी के लिये अलग अलग तरीकों से, इंटरनेट पर भ्रामक, गलत जानकारियां, बड़े ही चालाकी से, तार्किक सी दिखने वाली भाषा में लिखते हैं | जिसे पढ़कर, जिसने कभी जीवन में वाल्मीकि रामायण न पढ़ी हो, वो तुरंत ही मूर्ख बन जाता है और हाँ, हाँ, कितना सही कहा है की तर्ज पर मुंडी हिलाता है | ऐसे ही, इस बार हमारे पास, रामायण से संबंधित एक लेख आया, जिसमें रामचंद्र जी पर, रामायण पर, वाल्मीकि पर विभिन्न आक्षेप लगाए गये हैं | क्योंकि इंटरनेट, उनके इस झूठ पटा पड़ा है, इसलिए इसका खंडन लिखना आवश्यक समझा गया और आपके सामने प्रस्तुत है |

वायरल पोस्ट

सत्यजीत सत्यार्थीजन विचार संवाद

********रामायण का उद्घाटन**********

रामायण कवि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया एक महाकाव्य है। कुछ लोग वाल्मीकि को दलित समुदाय का मानते हैं। हालांकि शास्त्रों में वाल्मीकि को ब्राह्मण कहा गया है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया है। परंतु वाल्मीकि के पहले सैकड़ों कवि हो चुके थे। वेदों और उपनिषदों के रचनाकारों को कवि नहीं तो और क्या कहा जाएगा!

वाल्मीकि के रामायण में बुद्ध का वर्णन है। राम एक जगह कहते हैं- “यथा हि चोरः स तथा हि बुद्ध-…”। यहाँ बुद्ध/बौद्ध धर्म की भर्त्सना है। गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित वाल्मीकि रामायण का पृष्ठ संख्या 528 अवलोकनार्थ कृपया।

श्रीराम द्वारा जब छिपकर वाली को तीर मारा जाता है तो वाली उनपर अभियोग लगाता है। राम द्वारा सफाई में मनुस्मृति का दो श्लोक उद्धृत किया जाता है। जी हाँ, आपने सही सुना। राम द्वारा मनुस्मृति के दो श्लोकों को quote किया जाता है। उपर्युक्त वर्णित पुस्तक का पृष्ठ संख्या 797 अवलोकनार्थ कृपया।

इसका अर्थ क्या हुआ? इसका अर्थ हुआ कि इन श्लोकों की रचना बुद्ध और मनुस्मृति लिखे जाने के बाद किया गया।

रामायण के युद्धकाण्ड में श्रीराम द्वारा लंकापति रावण का वध किए जाने के बाद की एक घटना का सरलीकरण कर रहा हूँ। रावण मारा जा चुका है। राम द्वारा विभीषण को कहा जाता है कि वे सीता को उनके सामने स्नान कराने के बाद ले आएं। विभीषण सीता से निवेदन करता है कि वे स्नान कर उनके साथ राम के पास चलें। सीता व्यग्र हैं। सीता कहती है कि वह बिना स्नान के ही तुरंत अपने स्वामी के पास जाना चाहती है। परंतु विभीषण कहता है ऐसा नहीं चलेगा। सीता स्नान करती है। विभीषण पालकी में वैदेही को बैठाकर राम के पास ले जा रहे होते हैं। पूरा भीड़ है। उस भीड़ में वानर भी हैं और राक्षस भी। राम इस पालकी यात्रा को रोक देते हैं और सीता को पैदल लाने के लिए विभीषण को आदेश देते हैं। Vibhishan follows the order. सीता को अब पैदल लाया जा रहा है राम की ओर। सीता राम के समीप पहुंचकर ठहर जाती है। राम सीता से कहते हैं:-

1. भद्रे! समर में शत्रु को पराजित करके मैंने तुम्हें उसके चंगुल से छुड़ा लिया।

2. मैंने रावण के वश में पड़ी हुई तुमको जीता है।

3. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैंने जो यह युद्ध का परिश्रम उठाया है यह सब तुम्हें पाने के लिए नहीं किया गया है।

4. अपने सुविख्यात वंश पर लगे हुए कलंक का परिमार्जन करने के लिए यह सब मैंने किया है।

5. तुम्हारे चरित्र में संदेह का अवसर उपस्थित है।

6. अतः जनककुमारी! तुम्हारी जहाँ इच्छा हो, चली जाओ। अब तुमसे मेरा कोई प्रयोजन नहीं है।

7. कौन ऐसा कुलीन पुरुष होगा, जो तेजस्वी होकर भी दूसरे के घर में रही हुई स्त्री को, केवल इस लोभ से कि यह मेरे साथ बहुत दिनों तक रहकर सौहार्द स्थापित कर चुकी है, मन से भी ग्रहण कर सकेगा।

8. रावण तुम्हें अपनी गोद में उठाकर ले गया और तुम पर अपनी दूषित दृष्टि डाल चुका है, ऐसी दशा में अपने कुल को महान बताता हुआ मैं फिर तुम्हें कैसे ग्रहण कर सकता हूँ।

9. तुम जहाँ चाहो जा सकती हो।

10. तुम चाहो तो भरत या लक्ष्मण के संरक्षण में सुखपूर्वक रहने का विचार कर सकती हो।

11. सीते! तुम्हारी इच्छा हो तो तुम शत्रुघ्न, वानरराज सुग्रीव अथवा राक्षसराज विभीषण के पास भी रह सकती हो।

12. सीते! तुम-जैसी दिव्यरूप-सौंदर्य से सुशोभित मनोरम नारी को अपने घर में स्थित देखकर रावण चिरकाल तक तुमसे दूर रहने का कष्ट नहीं सह सका होगा।

इतना सुनने के बाद व्यथित सीता अग्नि में प्रवेश कर जाती है। परंतु सीता जलती नहीं है क्योंकि अग्निदेव स्वयं सशरीर उपस्थित होकर सीता को बचा लेते हैं। अग्निदेव राम से कहते हैं कि सीता पवित्र है। यह सर्टिफिकेट मिलने के बाद राम कहते हैं कि उसे पहले से ही पता था कि सीता पवित्र है। राम कहते हैं कि अब सीता पर कोई उसके चरित्र को लेकर कोई आपत्ति नहीं कर पाएगा। उपर्युक्त वर्णित पुस्तक का पृष्ठ संख्या 617 से 628 अवलोकनार्थ कृपया।

इस Character Certificate की validity उस वक्त खत्म हो जाती है, जब अयोध्या का एक धोबी सीता के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। सीता को तड़ीपार कर जंगल भेज दिया जाता है। वह उस वक्त गर्भवती होती है। रामायण के रचयिता वाल्मीकि के आश्रम में सीता को आश्रय प्राप्त होता है।

उत्तरकाण्ड में एक ब्राह्मण का इकलौता 13 या 14 वर्षीय पुत्र मारा जाता है। ब्राह्मण दुःखी होकर राजा राम के दरबार में आकर न्याय के लिए अनशन कर देता है। राम अपने दरबार के योग्य लोगों के साथ विमर्श करते हैं। आकलन किया जाता है कि निम्न जाति का कोई व्यक्ति तपस्या कर रहा होगा, उसी अनिष्ट के कारण ब्राह्मण पुत्र की अकाल मृत्यु हुई है। राम पुष्पक विमान में सवार हो उस दुराचारी की खोज में निकल पड़ते हैं। अंततः उसे खोज लिया जाता है। शम्बूक नामक एक शूद्र जंगल में तपस्या कर रहा था। जब राम confirm हो जाते हैं कि यह व्यक्ति शूद्र ही है तो फिर एक पल बिना देर किए without trial वे इस व्यक्ति का सर अपने खड्ग (तलवार) से काट देते हैं। देवतागण आकाश में प्रकट होते हैं और राम पर पुष्वृष्टि करते हैं और कहते हैं- “साधु साधु” अर्थात बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। उपर्युक्त वर्णित पुस्तक का पृष्ठ संख्या 854 से 863 अवलोकनार्थ कृपया।

घोषणा- इस लेख में सिर्फ facts हैं। मैंने अपने तरफ से कुछ भी नहीं जोड़ा है। सिर्फ विषयों का सरलीकरण किया है। मैं उक्त पुस्तक के संबंधित पृष्ठों का फोटो भी इस लेख के साथ ही पोस्ट कर रहा हूँ। फिर भी आपको संदेह हो तो आप स्वयं इस महाकाव्य में इन विषयों को देखिए।

खंडन 24  

ये लेख, फेसबुक पर जिन्होंने लिखा है, उन्होंने अपना नाम लिखा है, सत्यजीत सत्यार्थी – जो सत्य को जीत चुके हैं और सत्य के अर्थ को जानने वाले हैं | उनके नाम और लेख को पढ़कर, मुझे सत्यव्रत की कथा याद आ गयी, जो ये कहता था कि मैं अपने नाम के अनुरूप ही हमेशा सत्य ही बोलता हूँ और जबकि बोलता हमेशा झूठ और गलत था | (कहानी का लिंक, कमेंट में) यही हाल इनका है | नाम रखा सत्यजीत सत्यार्थी और बातें सारी तोड़ी मरोड़ी हुई |

इन्होने सबसे पहले तो वाल्मीकि जी को निशाने पर लिया कि उन्हें आदिकवि कहा जाता है, जबकि उनसे पहले भी वेदों में/उपनिषदों में बहुत से ब्राह्मणो ने कवितायेँ लिखी हैं अतः उन्हें आदिकवि कहना गलत है और इनके लेख के पहले ही वाक्य ने, इनके लेख की गम्भीरता की हवा निकाल दी क्योंकि जिसे ये नहीं पता कि वेदों और उपनिषदों में कवितायें नहीं हैं, अपितु मन्त्र हैं वो हमारे शास्त्रों और ग्रंथो की मीमांसा कर रहे हैं, इससे बड़ा मजाक और क्या होगा !

वाल्मीकि जी को आदि कवि इसलिए कहा गया क्योंकि उन्होंने क्रोंच जोड़े के विरह को देखकर सर्वप्रथम किसी रसयुक्त (करुण रस) कवित्त का निर्माण किया | उससे पहले वाले कवियों को कवि इसलिए नहीं कहा गया क्योंकि उन्होंने काव्य नहीं लिखा था, वेदों के मन्त्र लिखे थे, इसलिए उन्हें मन्त्रदृष्टा ब्राह्मण कहा गया, कवि नहीं और आदिकवि होने का ये सम्मान केवल वाल्मीकि जी को ही प्राप्त है | पर इन महोदय के अनुसार, हमारे पूर्वज मूर्ख थे, जिन्हें मन्त्र और कवित्त में फर्क नहीं पता था और इन महोदय को पता है, जिनके हिसाब से, वाल्मीकि जी आदिकवि नहीं थे |

आगे बढ़ते हैं, आगे इन्होने वही इंटरनेट पर हर जगह फैला हुआ श्लोक लिखा है, रामायण का, जिसके गीता प्रेस द्वारा गलत अनुवाद की वजह से, इन जैसे पाखंडियों को मौका मिला, रामायण पर लांछन लगाने का | इन्होने लिखा है कि रामायण में बुद्ध का नाम है, इसलिये रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी और प्रमाण में, वही गीता प्रेस की रामायण के गलत अनुवाद को चिपका दिया | मूल पूर्ण श्लोक इस प्रकार है –

यथा हि चोरः स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि।

तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानां स नास्तिके नाभिमुखो बुधः स्यात् ।

जिसका गलत अनुवाद कुछ ऐसा है कि – जिस प्रकार चोर दंडनीय होता है उसी प्रकार वेदविरोधी बुद्ध (बौद्ध मतावलंबी) भी।

जबकि इसका अर्थ ये नहीं होगा | श्लोक 34 में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र, जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है विद्धि। यहाँ इसका अन्वय होगा – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतं अर्थात बुद्धजीवी (बुद्ध) जो मात्र (केवल ) नास्तिक है, उसे उसके समान मानना चाहिए | किसके समान ? तो यहाँ फिर पहली पंक्ति आती है कि उसे चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चाहिए | अर्थात यहाँ बुद्ध का अर्थ, बुद्धजीवी से लिया गया है और वो भी कैसा, नास्तिक अर्थात जिसकी वेदों पर श्रद्धा नहीं है | अतः यहाँ श्री सत्यजीत ने, सत्य के नाम पर, बिना संस्कृत का अर्थ जाने, बिना विचारे, जहाँ कहीं गलत अर्थ मिला, उसे गीताप्रैस को को प्रमाण मानकर, लिख दिया कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी है जो कि हास्यास्पद है |

इसके बाद, बताते हैं कि बाली को जब मारा गया तो रामचंद्र जी अपने स्पष्टीकरण में मनुस्मृति का श्लोक सुनाते हैं अतः रामायण मनुस्मृति के भी बाद लिखी गयी थी गोया कि इनके हिसाब से, मनुस्मृति बुद्ध के बाद लिखी गयी हो ! अरे भाई, मनु महाराज, महाप्रलय के बाद के पहले व्यक्ति थे, तो मनुस्मृति रामायण से पहले होगी, ? इतना ही कॉमन सेन्स इस व्यक्ति ने नहीं लगाया |

इसके बाद, रामायण में सीता जी के प्रकरण को बताया गया कि किस तरह रामचंद्र जी सीता जी को रावण के यहाँ से लाने के बाद, त्यागने को कहते हैं और कहते हैं कि अब मैं तुम्हें नहीं स्वीकार कर सकता और उनकी विभिन्न बातें सुनकर, सीता जी, अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं और अग्नि देवता, सीता जी को सर्टिफिकेट देते हैं कि ये पवित्र हैं और आगे लिखते हैं कि रामचंद्र जी कहते हैं कि उन्हें तो पता ही था कि सीता जी पवित्र हैं, पर अब उनके चरित्र पर कोई संदेह नहीं कर पायेगा पर इस अग्नि देवता के दिए गए करैक्टर सर्टिफिकेट की समय सीमा, उस समय समाप्त हो जाती है, जब एक धोबी आरोप लगा देता है, सीता जी पर |

यहाँ, इन महोदय ने बहुत सारी आधी अधूरी बातें लिख कर, अपने समग्र ज्ञान का परिचय दिया | इस पर भी बात कर लेते हैं |

इसके बाद, रामायण में सीता जी के प्रकरण को बताया गया कि किस तरह रामचंद्र जी सीता जी को रावण के यहाँ से लाने के बाद, त्यागने को कहते हैं और उनको किन्हीं भी दिशाओं में चले जाने को कहते हैं अथवा जिस भी व्यक्ति के पास उनको सुख होता हो, उसके पास चले जाने को कहते हैं और कहते हैं कि अब मैं तुम्हें नहीं स्वीकार कर सकता और उनकी विभिन्न बातें सुनकर, सीता जी, अग्नि में प्रवेश कर जाती हैं और अग्नि देवता, सीता जी को सर्टिफिकेट देते हैं कि ये पवित्र हैं और आगे लिखते हैं कि रामचंद्र जी कहते हैं कि उन्हें तो पता ही था कि सीता जी पवित्र हैं, पर अब उनके चरित्र पर कोई संदेह नहीं कर पायेगा पर इस अग्नि देवता के दिए गए करैक्टर सर्टिफिकेट की समय सीमा, उस समय समाप्त हो जाती है, जब एक धोबी आरोप लगा देता है, सीता जी पर |

यहाँ, इन महोदय ने बहुत सारी आधी अधूरी बातें लिख कर, अपने समग्र ज्ञान का परिचय दिया | इस पर भी बात कर लेते हैं | इन्होने कुछ बातें वाल्मीकि रामायण से लिखीं कि रामचंद्र जी ने, सीता जी से कटु वचन बोले पर ये नहीं बताया कि क्या दिया ? रामचंद्र जी ने कहा कि क्योंकि सीता जी रावण द्वारा कुदृष्टि से देखी गयी थी, रावण द्वारा बलपूर्वक उनको छुआ गया था और ये भी ज्ञात नहीं था कि रावण ने सीता के साथ कोई दुराचार तो नहीं किया था, जबकि वो रावण के महल में, महीनों रही थीं अतः कोई भी समाज में प्रतिष्ठित पुरुष, उस स्त्री को स्वीकार नहीं करेगा | पर इन भाईसाहब के हिसाब से रामचंद्र जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था और सीता जी को ले जाना चाहिए था | पर एक बात बताइये, रामचंद्र जी तो एक बार को इस बात को मान लेते पर क्या प्रजा मान पाती ? रामचंद्र जी का रामराज्य ऐसे ही प्रसिद्ध नहीं है, क्योंकि रामचंद्र जी, प्रजा के अनुरूप ही न्याय किया करते थे, अतः उन्होंने, सीता को त्याग दिया अन्यथा प्रजा, उनके ही कुल पर लांछन लगाती और ये सब उन्होंने पब्लिक के सामने किया ताकि कुछ भी छुपा हुआ न रह सके | ये सारा स्वांग, प्रजा के लिये ही था | बाकी इन महोदय को शायद ये भी न पता हो कि जो सीता, रावण के महल में थी, वो सीता जी नहीं थी अपितु अग्नि देवता की पत्नी थी और उनको उनकी पत्नी लौटाने के लिये और अपनी सीता को वापिस प्राप्त करने के लिए भी, ये लीला रची गयी थी | इसीलिए, आधा अधूरा अध्ययन करने वाले लोगों को सनातन ग्रंथों की मीमांसा नहीं करनी चाहिए | इन्होने ये तो लिखा कि रामचंद्र जी ने सीता जी से क्या कहा पर ये नहीं बताया कि जवाब में सीता जी ने रामचंद्र जी को सुनाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी | उन्होंने रामचंद्र जी से पूछा कि आप ऐसे गंवारों जैसी बातें क्यों कर रहे हैं ? कुलहीन स्त्रियों की भांति ही, आरोप समस्त स्त्रियों पर लगाना, कैसे उचित है ? ये भी पूछा कि अगर मुझे त्यागना ही था तो हनुमान जी से अंगूठी भेजते समय ही, मुझे क्यों नहीं बता दिया कि आप मुझे त्यागने वाले हैं ? अगर तब बता देते तो मैं स्वयं ही प्राण त्याग देती तब आपको रावण को मारने का इतना भारी श्रम नहीं करना पड़ता | क्रोध से भरे हुए, साधारण पुरुष की भांति आपने जो कटुवचन कहे, उससे पूर्व आपने मेरे पृथ्वी से जन्म लेने पर विचार किया और न ही मेरे पिता, राजा जनक का ही मान किया | (अर्थात मैं साधारण स्त्री नहीं हूँ)

कहने का तात्पर्य है कि जब लिखो तो पूरा लिखो, किसी विषय को कांट छांट के, सन्दर्भ से अलग तरह से लिख देने से उसका अर्थ अलग ही निकलता है | इन महोदय ने अंत में बहुत अच्छा काम किया, जो ये लिख दिया कि ये सब फैक्ट्स हैं क्योंकि इनको ये भी नहीं पता कि फैक्ट्स सत्य नहीं होते | फैक्ट्स का अर्थ होता है, तथ्य | तथ्य, सत्य ही हों, ये आवश्यक नहीं है | बहुत सारे फैक्ट्स यानि तथ्यों को मिलाकर, उनके विवेचन से सत्य निकलता है | ठीक वैसे, जैसे अदालत में, वकील फैक्ट्स यानि केस के तथ्य, जज के सामने रखते हैं फिर जज, उन विभिन्न तथ्यों और कहे गए वचनों (बयानात) के बाद, अपना जजमेंट देता है | ऐसे ही तथ्यों से सत्य या असत्य दोनों की प्रतीति हो सकती है, ये उसके विवेचन के बाद ही पता चलता है |

जैसे कि अब आपको पता चल गया कि ये जिस पोस्ट का खंडन है, वो गलत और भ्रामक है | उसमें तथ्य तो हैं पर तथ्यों से निकाले गये निष्कर्ष गलत हैं, ठीक वैसे, जैसे वाल्मीकि जी आदि कवि थे, पर लेखक लिखता है कि नहीं थे | ये है गलत निष्कर्ष ! उसने ऐसा क्यों किया होगा ? आपको भरमाने के लिये ! कुछ लोगों का उद्देश्य ही मात्र इतना है कि सनातन धर्म के बारे में, उसके ग्रंथों के बारे में, इतने भरम फैला दो, कि लोग उन्हें पढ़ना ही छोड़ दें ! पर भरम का इलाज ही, पढ़ना है अतः आप प्रण लीजिये कि जहाँ कहीं भी आपको ये पोस्ट मिलेगी, वहां आप ये खंडन अवश्य शेयर करेंगे | जैसे उस व्यक्ति के लेख से, पूरा इंटरनेट भरा पड़ा है, वैसे ही, आप भी इस खंडन को यथासम्भव ब्लॉग, व्हाट्सप्प, फेसबुक आदि पर अवश्य शेयर करेंगे ताकि जब कोई सर्च करे तो उसे गूगल पर ये खंडन भी प्राप्त हो और वो भ्रमित निष्कर्षों तक पहुंचने की बजाय, सही निष्कर्षों पर पहुचें |

पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

परिचय एवं अन्य महत्वपूर्ण कार्य – https://linktr.ee/ShastraGyan

You cannot copy content of this page