July 4, 2024

खंडन 23 – मूलकासुर की कथा का खंडन

मूलकासुर का खंडन

खंडन 23 – मूलकासुर की कथा का खंडन   

इस बार खंडन-मंडन सीरिज में, रामायण की बात करेंगे | एक वायरल पोस्ट हमारे पास आई, जो कि ऑनलाइन भी वायरल है और हर ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है कि सीता जी द्वारा मूलकासुर का वध किया गया था ? उस वायरल पोस्ट में, इसे रामायण की एक छुपी हुई कथा के रूप में बताया गया है और वो कहानी केवल पोस्ट लिखने वाले ने ही पढ़ी हुई होती है |

आप भी इस वायरल कहानी को, पढ़ सकते हैं, जो कि निम्न प्रकार है, उसके बाद हम उसका खंडन करेंगे |

वायरल पोस्ट

ये कथा आप नहीं जानते होंगे

जब देवी सीता को उठाने पड़े हथियार!!!!!!

 जब राजा राम ने नहीं, देवी सीता ने चलाए बाण….

भगवान श्रीराम राजसभा में विराज रहे थे उसी समय विभीषण वहां पहुंचे। वे बहुत भयभीत और हड़बड़ी में लग रहे थे। सभा में प्रवेश करते ही वे कहने लगे- हे राम! मुझे बचाइए, कुंभकर्ण का बेटा मूलकासुर आफत ढा रहा है। अब लगता है, न लंका बचेगी और न मेरा राजपाट।

भगवान श्रीराम द्वारा ढांढस बंधाए जाने और पूरी बात बताए जाने पर विभीषण ने बताया कि कुंभकर्ण का एक बेटा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था इसलिए उस का नाम मूलकासुर रखा गया। इसे अशुभ जान कुंभकर्ण ने जंगल में फिंकवा दिया था। जंगल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर को पाल लिया।

मूलकासुर जब बड़ा हुआ तो उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। अब उनके दिए वर और बल के घमंड में भयानक उत्पात मचा रखा है। जब जंगल में उसे पता चला कि आपने उसके खानदान का सफाया कर लंका जीत ली और राजपाट मुझे सौंप दिया है, तो वह क्रोधित है।

भगवन्, आपने जिस दिन मुझे राजपाट सौंपा उसके कुछ दिन बाद ही उसने पातालवासियों के साथ लंका पहुंचकर मुझ पर धावा बोल दिया। मैंने 6 महीने तक मुकाबला किया, पर ब्रह्माजी के वरदान ने उसे इतना ताकतवर बना दिया है कि मुझे भागना पड़ा तथा अपने बेटे, मंत्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग के जरिए भागकर यहां पहुंचा हूं।

उसने कहा कि ‘पहले धोखेबाज भेदिया विभीषण को मारूंगा फिर पिता की हत्या करने वाले राम को भी मार डालूंगा। वह आपके पास भी आता ही होगा। समय कम है, लंका और अयोध्या दोनों खतरे में हैं। जो उचित समझते हों तुरंत कीजिए।’

भक्त की पुकार सुन श्रीरामजी हनुमान तथा लक्ष्मण सहित सेना को तैयार कर पुष्पक यान पर चढ़ झट लंका की ओर चल पड़े।

मूलकासुर को श्रीरामचन्द्र के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिए लंका के बाहर आ डटा। भयानक युद्ध छिड़ गया। 7 दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। मूलकासुर भगवान श्रीराम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था।

अयोध्या से सुमंत्र आदि सभी मंत्री भी आ पहुंचे। हनुमानजी संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिलाते जा रहे थे। पर सब कुछ होते हुए भी युद्ध का नतीजा उनके पक्ष में जाता नहीं दिख रहा था। भगवान भी चिंता में थे।

विभीषण ने बताया कि इस समय मूलकासुर तंत्र-साधना करने गुप्त गुफा में गया है। उसी समय ब्रह्माजी वहां आए और भगवान से कहने लगे- ‘रघुनंदन! इसे तो मैंने स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है। आपका प्रयास बेकार ही जाएगा।

श्रीराम, इससे संबंधित एक बात और है, उसे भी जान लेना फायदेमंद हो सकता है। जब इसके भाई-बिरादर लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुखी होकर कहा, ‘चंडी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ’। इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया- ‘दुष्ट! तूने जिसे ‘चंडी’ कहा है, वही सीता तेरी जान लेगी।’ मुनि का इतना कहना था कि वह उन्हें खा गया बाकी मुनि उसके डर से चुपचाप खिसक गए। तो हे राम! अब कोई दूसरा उपाय नहीं है। अब तो केवल सीता ही इसका वध कर सकती हैं। आप उन्हें यहां बुलाकर इसका वध करवाइए, इतना कहकर ब्रह्माजी चले गए।

भगवान श्रीराम ने हनुमानजी और गरूड़ को तुरंत पुष्पक विमान से सीताजी को लाने भेजा।

इधर सीता देवी-देवताओं की मनौती मनातीं, तुलसी, शिव-प्रतिमा, पीपल आदि के फेरे लगातीं, ब्राह्मणों से ‘पाठ, रुद्रीय’ का जप करातीं, दुर्गाजी की पूजा करतीं कि विजयी श्रीराम शीघ्र लौटें। तभी गरूड़ और हनुमानजी उनके पास पहुंचे।

पति के संदेश को सुनकर सीताजी तुरंत चल दीं। भगवान श्रीराम ने उन्हें मूलकासुर के बारे में सारा कुछ बताया। फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया। उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ़ चलीं।

इधर श्रीराम ने वानर सेना को इशारा किया कि मूलकासुर जो तांत्रिक क्रियाएं कर रहा है उसको उसकी गुप्त गुफा में जाकर तहस-नहस करें। वानर गुफा के भीतर पहुंचकर उत्पात मचाने लगे तो मूलकासुर दांत किटकिटाता हुआ सब छोड़-छाड़कर वानर सेना के पीछे दौड़ा। हड़बड़ी में उसका मुकुट गिर पड़ा। फिर भी भागता हुआ वह युद्ध के मैदान में आ गया।

युद्ध के मैदान में छाया सीता को देखकर मूलकासुर गरजा, तू कौन? अभी भाग जा। मैं औरतों पर मर्दानगी नहीं दिखाता।

छाया सीता ने भी भीषण आवाज करते हुए कहा, ‘मैं तुम्हारी मौत चंडी हूं। तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों और ब्राह्मणों को खा डाला था, अब मैं तुम्हें मारकर उसका बदला चुकाऊंगी।’ इतना कहकर छाया सीता ने मूलकासुर पर 5 बाण चलाए। मूलकासुर ने भी जवाब में बाण चलाए। कुछ देर तक घोर युद्ध हुआ, पर अंत में ‘चंडिकास्त्र’ चलाकर छाया सीता ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया और वह लंका के दरवाजे पर जा गिरा।

राक्षस हाहाकार करते हुए इधर-उधर भाग खड़े हुए। छाया सीता लौटकर सीता के शरीर में प्रवेश कर गई। मूलकासुर से दुखी लंका की जनता ने मां सीता की जय-जयकार की और विभीषण ने उन्हें धन्यवाद दिया। कुछ दिनों तक लंका में रहकर श्रीराम सीता सहित पुष्पक विमान से अयोध्या लौट आए।

खंडन 23  

आज हम बात करेंगे रामायण की | आपने ये बात देखी होगी कि रामायण के बारे में विभिन्न प्रकार की कथाएँ हैं और सब आपको ऐसे बताई जाती हैं, जैसे ये बातें, ये पोस्ट बनाने वाले ने ही पढ़ी हैं, और लोग पढ़ ही नहीं पाए, ये सब | कहाँ से आती हैं, ये सब बातें ? जैसे कि सीता जी योद्धा थी ? रावण ने रामेश्वर पर शिवलिंग की स्थापना के लिए पुरोहित्व स्वीकार किया ? कुछ रामायण में तो रावण बहुत बड़ा पंडित था ? ग्यानी था ? एक रामायण में तो ये तक लिखा है कि सीता जी, रावण की बेटी थी !!! है न कमाल ? आखिर ऐसे कमाल कैसे हुए ? ऐसे कमाल इसलिए हुए क्योंकि रामायण कोई एक नहीं है | रामायण को वाल्मीकि जी ने सर्वप्रथम लिखा/गाया और उसके बाद एक रामायण से दूसरी, दूसरी से तीसरी आदि बनती गयी और आज के समय में करीब 5000 से अधिक रामायण उपलब्ध हैं | रामायण के बारे में, विभिन्न लेखकों ने आधार, वाल्मीकि रामायण को ही बनाया, पात्र वहीँ के लिए लेकिन कथानक में, अपनी अक्ल लगाकर, अलग अलग प्रकार की रामायण बना दी | भारतीय क्षेत्र में, अमूमन तीन रामायण सबसे अधिक प्रचलित हैं, वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास जी की रामचरित मानस और कम्ब रामायण | इसके अलावा भी अन्य बहुत सी रामायण हैं, किन्तु उनकी वैसी प्रसिद्धि नहीं है | लोग, इन्हीं अप्रचलित रामायणों में से सन्दर्भ निकाल कर देते हैं और सोशल मिडिया पर डाल देते हैं | आजकल कुछ कुटिल लोग, अपनी तरफ से भी नयी नयी कथा भी बना देते हैं, जो रामायण से बिल्कुल उलट होती हैं और किसी रामायण में नहीं लिखी होती हैं | लेकिन जब जब रामायण में प्रमाण की बात आएगी, तब तब हमें मूल रामायण अर्थात वाल्मीकि रामायण की ही ओर देखना पड़ेगा | तुलसीदास जी की रामचरित मानस को भी ले सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी रामायण में “नानापुराण निगमागम सम्मत” कह कर, विभिन्न  पुराणों में लिखी कथाएँ और विभिन्न आगम और निगम की कथाएँ भी जोड़ दी हैं | उन्होंने अपनी काल्पनिकता, विभिन्न अलंकारों में, दृष्टान्तों में तो दिया है किन्तु अधिकतम चीजें, वैसी ही हैं, जैसी पुराण आदि में लिखी हैं | आजकल के लेखक, रामचंद्र जी से मछली जी की आँख में तीर लगवाते हैं तो कभी सीता जी को योद्धा बता देते हैं अतः ऐसी कथाओं को रामायण नहीं समझना चाहिए | 

ऐसी ही एक कहानी आपने, इस सोशल मिडिया की वायरल पोस्ट में पढ़ी | इस कहानी में कोई सन्दर्भ नहीं दिया गया है कि कहाँ से ली गयी है, कौन सा श्लोक है आदि | अतः सोशल मिडिया पर आने वाली ऐसी किसी भी कथा को सही नहीं मानना चाहिए, ये पहला सिद्धांत बना लीजिये | अब आते हैं, इस कहानी पर | इसमें पहली बात बड़ी विचित्र है, कि कुम्भकर्ण के बेटे का नाम जो दिया है मूलकासुर, वो वाल्मीकि रामायण में नहीं दिया गया है | वाल्मीकि रामायण में युद्ध काण्ड में, कुम्भकर्ण के 2 बेटों का नाम है –

स निकुम्भं च कुम्भं च कुम्भकर्णात्मजावुभौ |
प्रेषयामास सङ्क्रुद्धो राक्षसैर्बहुभिः सह || ३७||

उसने (रावण ने) कुम्भकर्ण के दोनों बेटों (दोनों का अर्थ है कि इसके 2 ही बेटे थे अन्यथा दो बेटों को लिखा होता) को क्रोध में भरकर बहुत से राक्षसों के साथ (वानरों से लड़ने के लिए) भेजा |

यहाँ ये स्पष्ट होता है कि कुम्भकर्ण के 2 ही बेटे थे, अगर 2 से अधिक होते तो उपरोक्त श्लोक में “दोनों” की जगह “दो बेटों को” लिखा होना चाहिए था | पहले भी कहा गया है कि प्रमाण वाल्मीकि रामायण ही होगा अतः यहाँ ये स्पष्ट हो जाता है कि कुम्भकर्ण के बेटों के नाम कुम्भ और निकुम्भ था | वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुम्भ को सुग्रीव ने और निकुम्भ को हनुमान जी ने मारा था |

एक और विचित्र बात इस वायरल पोस्ट में दिखाई गयी जिसमें लिखा है कि रामचंद्र जी सबको पुष्पक विमान में बैठा कर, लंका ले गए | जबकि वाल्मीकि रामायण में युद्ध काण्ड के त्रिशंदुत्तरशततमः सर्ग के 60 वें श्लोक में लिखा है कि लंका जीत कर जब रामचंद्र जी वापिस आये तो विमान से उतर कर उन्होंने पुष्पक विमान को कहा –

“मैं आज्ञा देता हूँ कि, तुम कुबेर के पास वापिस चले जाओ और उन्ही की सवारी में रहो | जब श्रीराम चन्द्र जी ने इस प्रकार आज्ञा दी; तब वह श्रेष्ठ विमान उत्तर दिशा की ओर कुबेर की राजधानी को चला गया |”

अब यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि जब रामचंद्र जी के पास विमान था ही नहीं तो वो विभीषण की विनती पर, सेना सहित, विमान पर बैठ कर लंका कैसे चले गए ?

अब उपरोक्त दो सन्दर्भों से ये स्पष्ट है कि इस पोस्ट में जो भी कहानी दी गयी है, वो वाल्मीकि रामायण के सन्दर्भों से मेल नहीं खाती है | जबकि हमारे शास्त्रों में ऐसा घाल-मेल नहीं है | लगभग लगभग सभी जगहों पर, कथा और सन्दर्भ एक जैसे ही हैं, चाहे रामायण, महाभारत, पुराण आदि कहीं के भी हों | इतना स्पष्ट विरोधाभास वहां नहीं मिलता |

फिर ये प्रश्न उठता है कि फिर ये पोस्ट कहाँ से बनी ? कैसे आई ! तो इसका उत्तर है कि जैसे पूर्व में बताया गया है कि रामायण एक नहीं है, अनेकों हैं…वैसे ही ये पोस्ट में जो कहानी बताई गयी है, वो आनंद रामायण से बताई गयी है | ये वाल्मीकि रामायण में नहीं है |

पर, इससे पूर्व के 22 खंडन पढने से अब तक आपको स्पष्ट हो गया होगा कि जब भी प्रमाण की बात होगी, रामायण के लिए तो बात होगी, वाल्मीकि रामायण की | बाकी सब कहानियाँ मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गयी हैं, जबकि वाल्मीकि रामायण को हम इतिहास के तुल्य रखते हैं | अतः स्पष्ट है, कि वायरल पोस्ट की कहानी, वाल्मीकि रामायण के विरुद्ध है और गलत है | बाद की कहानियों में, हेर-फेर अधिक है और उतनी विश्वसनीय हैं |

अतः इस प्रकार की कथा-कहानियों पर, बिना सन्दर्भ की बातों पर बिल्कुल भी यकीन न करें | इस प्रकार के फॉरवर्ड मैसेज से, आप को ऐसा बताया जाता है कि देखो, शास्त्रों में ऐसा लिखा है और उस बात को, थोडा तोड़ मरोड़ के, एक अलग ही कहानी बना दी जाती है और एक अलग ही तथ्य प्रस्तुत कर दिया जाता है, जो कि आवश्यक नहीं कि सही ही हो | उस पोस्ट से, उस पोस्ट को बनाने वाले की निहित स्वार्थ हो सकते हैं और वो शास्त्रों के माध्यम से, उनको थोडा बदल कर, आपको एक बात मनवा देता है और आप मान भी लेते हैं, ये सोच कर कि रामायण में लिखा है तो गलत थोड़े ही लिखा होगा |

पर जैसा कि पूर्व के खंडन-मंडन में बताया गया है, कि शास्त्रों को व्हात्सप्प पर न पढ़ें, न ही ऐसी पोस्ट से, शास्त्रों को समझने का प्रयास करें क्योंकि ऐसी पोस्ट से आप शास्त्र नहीं समझ रहे होते हैं अपितु, उनके नाम पर एक एजेंडा पढ़ रहे होते है और आप अपने ही शास्त्रों के बारे में भ्रम का शिकार हो जाते हैं जबकि असल शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा है, जैसा पोस्ट में बताया गया है | अतः शास्त्रों के नाम पर आये, इस प्रकार के मैसेज को फॉरवर्ड न करें और न ही उन्हें सत्य मानें, मूल ग्रंथों का स्वयं अध्ययन करें, इससे ही आपका भला होगा, इन व्हात्सप्प पोस्ट से, मात्र पोस्ट बनाने वाले को ही फायदा होगा, आपको कुछ भी लाभ नहीं होने वाला है |

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पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

परिचयhttps://linktr.ee/ShastraGyan

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