खंडन 21 – तुलसीदास और बैल की कहानी का खंडन
इस बार खंडन-मंडन सीरिज में, तुलसीदास से सम्बंधित एक कथा आई | इस कथा को जब इन्टरनेट पर ढूंढा तो बहुत सी वेबसाइट पर ये कथा उपलब्ध है, कहीं पौराणिक कथा के नाम से, कहीं प्रेरक कथा के नाम से | हालांकि अधिकतर जगह, इस कहानी के साथ मोदी जी का नाम नहीं है किन्तु जो हमें, प्राप्त हुआ, उसमें देश के सम्मानित प्रधानमंत्री श्री मोदी जी का भी नाम है |
आप भी इस कहानी को, पढ़ सकते हैं, जो कि निम्न प्रकार है, उसके बाद हम उसका खंडन करेंगे |
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तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक
अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।
चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला –
अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।
तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।
लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।
अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले – श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?
तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले – ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।
हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले – श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।
ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।
घर पर रहे शायद यही राम जी की इच्छा हो, जो मोदी जी ने कहा वो राम जी ने ही कहा हो
💝गंगा बड़ी, न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।, सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हृदय राम का वास।।💝
!! जय श्री राम वन्दन !!
खंडन 21
हमारे पास जब ये कहानी आई, तो पहली बात जो बहुत स्पष्ट थी कि ये कोई पौराणिक कथा नहीं थी क्योंकि अष्टादश पुराणों में, कहीं भी तुलसीदास जी का नाम नहीं है | ये कहानी, जो पढने पर ज्ञात होती है, किसी मंच के पंडित ने बनाई हो सकती है, जो अपनी किसी बात को समझाना चाहता हो, और उसे ये कहानी उपयुक्त लगी हो, जो उसकी किसी बात से मैच कर रही हो | पर ये बहुत ही सतही कहानी है, सत्य नहीं हो सकती क्योंकि इस कहानी में, टेक्निकल लोचा है या कहूं कि शास्त्रों के विपरीत बात कही गयी है | ये किसी ऐसे व्यक्ति ने रची है, जिसने शास्त्रों का गहन अध्ययन नहीं किया है, वरना शास्त्रों के एक बहुत बड़े सिद्धांत को, इस प्रकार एक मनगढ़ंत कहानी से, गलत सिद्ध करने की धृष्टता न करता | खैर, वापिस कहानी पर आते हैं |
इस कहानी में, तुलसीदास जी के द्वारा रचित एक चौपाई बताई गयी है और उस चौपाई के रचना के बाद बैल का प्रकरण आता है, पर इसमें गलत जैसा क्या है ? पहले चौपाई को लेते हैं –
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
भावार्थ:-चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत को श्री सीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ॥1॥
पहली बात तो ये कि कहानी बनाने वाले ने चौपाई के अर्थ को ही बदल दिया | आप देखिये, कहानी में जो चौपाई है, उसके अनुसार हमें सभी जीवों से, हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए जबकि चौपाई का अर्थ ऐसा नहीं है | जब आप पूरी चौपाई पढेंगे तो स्पष्ट है कि तुलसीदास जी, समस्त संसार को ईश्वरमय जानकर, इसको प्रणाम करते हैं | शब्दों में थोडा सा हेर-फेर है, “चाहिए” और “करता हूँ” में, पर इस छोटे से बदलाव से, चौपाई का भावार्थ बदल गया | और कहानी आगे बन गयी कि तुलसीदास जी एक बैल को प्रणाम करते हैं |
आप सोचिये, पुराने जमाने में तो रास्ते में कुत्ता, बिल्ली, सूअर, बैल आदि मिलते ही होंगे, तो क्या तुलसीदास जी, सभी के हाथ जोड़कर चलते थे ? आप जोड़ते हैं, राह चलते, सभी जीवों के हाथ ? जानवर छोडिये, क्या आप राह चलते, सभी व्यक्तियों के लिये भी नेताओं की भांति हाथ जोड़कर चलते हैं ? आपको नहीं लगता, कि बड़ी अजीब से बात कही गयी है कहानी में | उस एक “चाहिए” शब्द को बदलकर, एक अजीब सी बात बना दी गयी है, तुलसीदास जी के बारे में, जबकि उन्होंने चौपाई में चाहिए नहीं कहा है | ऐसे ही शब्दों के हल्के से हेर-फेर से बातें बदल जाती हैं और हमें लगता है कि हम व्हात्सप्प से शास्त्रों को पढ़ रहे हैं, पर वास्तव में, हम एजेंडा पढ़ रहे होते है या किसी मंच से, किसी कहानी को सुन कर, हम एक गलत बात के समर्थन में मूर्खतापूर्ण कहानी सुनते हैं |
आगे, इस कहानी में बताया गया कि बालक में तो प्रभु आये थे, बचाने पर आपने नहीं मानी, इसलिए आपको बैल ने टक्कर मार दी |
अब सोचने वाली बात ये है कि विभिन्न व्यक्तियों के जीवन में, विभिन्न कष्ट आते हैं, सभी को आने वाले कष्टों की जानकारी देने तो कोई नहीं आता तो क्या फिर ये समझा जाये, सभी जीवों में प्रभु श्री राम का निवास नहीं है ? यदि तुलसीदास जी को भी वो बालक बताने नहीं आता, तो क्या फिर तुलसीदास जी, ऐसा मानने लगते कि सभी जीवों में प्रभु का निवास नहीं है ? क्या उनका आध्यात्मिक ज्ञान, इतना सतही था ? क्या, शास्त्रों के तथ्य, अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर गलत/सही हो सकते हैं ? इसका अर्थ तो यही हुआ कि जो बचाने आये उसकी बात नहीं मानी इसलिए टक्कर लगी, मान लेते तो नहीं लगती | तो फिर विभिन्न मनुष्यों के जीवन में जो कष्ट आते हैं, किसी का बच्चा मर जाता है, किसी की पत्नी मर जाती है, किसी के माता-पिता मर जाते हैं, किसी का एक्सीडेंट हो जाता है, कोई लंगड़ा, लूला हो जाता है, उन सभी को क्योंकि भगवान् बताने नहीं आते, इसलिए चौपाई गलत है ? क्या आप भी इस बात से सहमत हैं, मैं तो नहीं हूँ |
ईश्वर सभी जीवों में है, आत्मतत्व के रूप में निवास करता है, ये वेदवाणी है | ये हमारे शास्त्रों का मूल है | कोई शेर, किसी व्यक्ति को खा जाता है, इसका अर्थ ये नहीं है कि उसमें ईश्वर का वास नहीं है | कोई बचाने आये या न आये, इससे ये सिद्ध नहीं होगा कि किसी जीव में ईश्वर का वास है या नहीं | सभी जीवित जीवों में आत्मतत्व रूप में ईश्वर निवास करते हैं, वो केवल माया के अधीन होकर, रज, सम और तम से व्याप्त होकर, इस भूलोक पर विचरता है | कोई चोर होता है, कोई डाकू होता है, उसमें तामसिक गुण अधिक होते हैं, कोई राजा होता है, साधारण मनुष्य होता है, उसमे राजसिक गुण अधिक होते हैं और कोई संत, साधू होता है, उसमें सात्विक गुण अधिक होते है | शेर आदि जीवों में भी तामसिक गुण अधिक होते हैं, गाय आदि में सात्विक गुण अधिक होते हैं | ईश्वर सभी जीवों में निवास करता है, ठीक वैसे जैसे किसी आभूषण में, स्वर्ण होता है | अब वो स्वर्ण कितने खरा है, 22 कैरेट का है या 18 कैरेट का, उसके ऊपर कौन कौन से आवरण (पोलिश) लगी हैं, इससे उसका मूल रूप आच्छादित हो जाता है, छिप जाता है | इसी प्रकार, सभी जीवों में आत्मा रुपी स्वर्ण तो रहता है किन्तु उसका मूल रूप, माया से, उसके त्रिगुणमयी प्रकृति से आच्छादित हो जाता है, ढक जाता है | इस प्रकार, सभी जीवों को राहचलते प्रणाम करने की कोई तुक नहीं होती अपितु जो, सतोगुण से आच्छादित है, उसको प्रणाम करना चाहिए | जो सतोगुण से आच्छादित नहीं है, वो भी यदि मिलने आये तो उसको भी प्रणाम करना चाहिए और उसके गुणों को न देखकर, उसके अंदर बैठे उस जीव रुपी ईश्वर को ही देखना चाहिए और उसे ही प्रणाम करना चाहिए | पर जंगल में जाकर, शेर से प्रणाम करने की कोई तुक नहीं होती | शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। ये उपनिषदों की वाणी है और इसके अनुसार, शरीर … इसी के होने से सभी का होना है, इसी के होने से आप धर्म का साधन कर सकते हैं अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है।
अतः ये समझना कि रामचरित मानस लिखने वाले ने, ऐसा नहीं विचारा और वो सभी जीवों को प्रणाम करता चलता था और बैल के रास्ते में पहुच जाता था प्रणाम करने, ये सोचना ही सतही कहानी का मूल है | किसी मंचीय कथाकार ने, ये कहानी रची और इसे किसी व्हात्सप्प के कलाकार ने, सम्मानित प्रधानमंत्री से जोड़ दिया और उनकी वाणी को ईश्वरवाणी बना दिया | यदि इस तर्क को माना जाये, फिर तो अंग्रेजों ने जो भी अत्याचार किये, मुगलों ने जो भी अत्याचार किये, वो भी ईश्वर ने ही किये ? उन्होंने जो दुर्वचन भारतवासियों को बोले, क्या वो भी ईश्वर वाणी ही थी ? जीव तो वो भी थे ?
इस प्रकार, आप न तो एक शास्त्रीय/पौराणिक कहानी पढ़ रहे हैं, न चौपाई का सही अर्थ पढ़ रहे हैं, बल्कि इस प्रकार के फॉरवर्ड मैसेज से, आप को ऐसा बताया जाता है कि देखो, शास्त्रों में ऐसा लिखा है और उस बात को, थोडा तोड़ मरोड़ के, एक अलग ही कहानी बना दी जाती है और एक अलग ही तथ्य प्रस्तुत कर दिया जाता है, जो कि आवश्यक नहीं कि सही ही हो | उस पोस्ट से, उस पोस्ट को बनाने वाले की निहित स्वार्थ हो सकते हैं और वो शास्त्रों के माध्यम से, उनको थोडा बदल कर, आपको एक बात मनवा देता है और आप मान भी लेते हैं, ये सोच कर कि रामचरित मानस में लिखा है तो गलत थोड़े ही लिखा होगा |
पर जैसा कि पूर्व के खंडन-मंडन में बताया गया है, कि शास्त्रों को व्हात्सप्प पर न पढ़ें, न ही ऐसी पोस्ट से, शास्त्रों को समझने का प्रयास करें क्योंकि ऐसी पोस्ट से आप शास्त्र नहीं समझ रहे होते हैं अपितु, उनके नाम पर एक एजेंडा पढ़ रहे होते है और आप अपने ही शास्त्रों के बारे में भ्रम का शिकार हो जाते हैं जबकि असल शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा है, जैसा पोस्ट में बताया गया है और जो निष्कर्ष दिया गया है वो तो बिलकुल भी शास्त्रों से मेल नहीं करता है | अतः शास्त्रों के नाम पर आये, इस प्रकार के मैसेज को फॉरवर्ड न करें और न ही उन्हें सत्य मानें, मूल ग्रंथों का स्वयं अध्ययन करें, इससे ही आपका भला होगा, इन व्हात्सप्प पोस्ट से, मात्र पोस्ट बनाने वाले को ही फायदा होगा, आपको कुछ भी लाभ नहीं होने वाला है |
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पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा
परिचय – https://linktr.ee/ShastraGyan