खंडन 19 – कोरोना के बारे में गलत सन्दर्भ देती हुई, वायरल पोस्ट का खंडन
इस बार हमारे पास कोरोना से सम्बंधित वायरल पोस्ट आई है | जिसमें बताया गया है कि कोरोना हजारों साल पहले के हमारे शास्त्रों में बताया गया है | इसमें विभिन्न ग्रंथो, जैसे कि नारद संहिता विशिष्ट संहिता आदि का सन्दर्भ भी दे रखा है, वो भी श्लोक सहित | हमने इस पोस्ट के सन्दर्भों को ढूंढा क्योंकि बहुत सी फेक पोस्ट की भांति, इसमें भी श्लोक तो दिये हैं किन्तु वो किस अध्याय से हैं, कौन से पाठ से, कौन से नम्बर का श्लोक है, ये सब नहीं दिया है |
जैसे कि पहले ही श्लोक को लें, जो नारद संहिता से बताया गया है | हमने जब नारद संहिता देखी तो उसके 55 वें अध्याय के तीसरे खंड में संवत्सरों का वर्णन है | इसके श्लोक नम्बर 62 में परिधावी नाम के संवत्सर का उल्लेख आया है | वो मूल श्लोक, ठीक वैसा नहीं है, जैसा कि इस पोस्ट में बताया गया है | वो मूल श्लोक इस प्रकार है –
अनध्यमयरोगेभ्यो भीतिरीतिनिरंतरम् ।।
परिधावीवत्सरे तु नृणां वृष्टिस्तु मध्यमा ॥ ६२ ॥ – (1*)
परिधावी नामक वर्ष में अन्न आदि का भाव महँगा होगा, रोग और टिड्डी आदि उपद्रवका निरंतर भय हो, मध्यम वर्षों हो । ६२ ॥
जैसा कि वायरल पोस्ट में लिखा हुआ है, वैसा कुछ महामारी जैसा कोई शब्द इस श्लोक में नहीं है | अतः कह सकते हैं कि नारद संहिता के नाम पर, जो श्लोक पोस्ट में बताया गया है, वो झूठा है, फेक है, गलत है और भ्रम फैलाने के उद्देश्य से लिखा गया है |
इस संवत्सर का स्वामी इन्द्राग्नि है अतः इस संवत्सर के फल में, कुछ लोग युद्ध का भी भी बताते हैं | यह संवत्सर 6 अप्रैल 2019 को प्रारंभ हुआ और 24 मार्च 2020 तक रहा | उसके बाद अगला संवत्सर, प्रमादी संवत्सर प्रारम्भ हुआ | जैसा कि पोस्ट में लिखा है कि इस महामारी का प्रारम्भ परिधावी संवत्सर के अंत में प्रारम्भ होगा, ऐसा कहीं कुछ नारदसंहिता में नहीं लिखा है, पोस्ट लिखने वाले ने, जबरन इसे कोरोना से जोड़ने के लिए, ऐसा लिख दिया है क्योंकि भारत में, lockdown २२ मार्च को लगा, जबकि पहला केस पूरी दुनिया में करीब अक्टूबर में आया था और भारत में भी पहला केस 10 जनवरी को आ चुका था | इसी प्रकार, पोस्टकर्ता ने इसे जबरन सूर्यग्रहण से जोड़ दिया है, जबकि आप देख सकते हैं, श्लोक में ये सब नहीं है | पर पोस्टकर्ता ने, अभी की घटनाओं को जोड़ कर, उनको देख कर, ये पोस्ट अपने मन से बना दी है |
वैसे नारद संहिता के मूल श्लोक को भी यदि माने तो ऐसा लगता है कि रोग का भय लिखा है तो जाहिर किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं लिखा है, अपितु वर्ष भर में एक बड़े क्षेत्र के बारे में लिखा गया है | इसी प्रकार प्रमादी संवत्सर की बात करें तो इतने बड़े लॉकडाउन के बाद, लोग प्रमादी तो हुए ही हैं | देर तक जागना, देर तक सोना आदि इत्यादि प्रकार से जीवनचर्या में परिवर्तन तो हुआ ही है, ऐसा प्रतीत होता है किन्तु हम यहाँ बात कर रहे हैं, पोस्ट में दिये गए सन्दर्भ की, जो कि पूर्णतः गलत है और सनसनी फैलाने के लिए, एक झूठा संस्कृत जैसा लगने वाला वाक्य बना कर डाल दिया गया है |
मैंने देखा है कि इस प्रकार की फेक पोस्ट को, बहुत से ऑनलाइन news लिंक, जैसे कि नयी दुनिया, पत्रिका, dailyhunt आदि प्रमुखता से शेयर करते हैं | जैसे कि इस फेक पोस्ट को आप इन्टरनेट पर बहुत सी न्यूज़ वेबसाइट पर देख सकते हैं | वो लोग, कुछ भी चेक नहीं करते, बस इन्टरनेट पर, व्हात्सप्प पर कुछ सनसनीखेज मिला तो उसे अपनी वेबसाइट पर चिपका देते हैं, जिसकी वजह से बड़ा भ्रम फैलता है |
इस पोस्ट के अगले सन्दर्भ को देखते हैं | इसमें आगे किसी विशिष्ट संहिता का नाम दिया गया है | इस प्रकार की कोई संहिता मुझे प्राप्त नहीं हुई है | मैंने विकिस्त्रोत देखा और संहिता और विशिष्ट संहिता के नाम से सर्च किया | आप भी रिजल्ट यहाँ देख सकते हैं | (2*)
इस पोस्ट में बृहत् संहिता के नाम से भी एक पंक्ति लिखी हुई है | मैं ऐसी फर्जी पोस्ट को बहुत धन्यवाद देता हूँ क्योंकि इनकी वजहों से मुझे विभिन्न ग्रंथों के बारे में पता चलता है | मैंने इस पोस्ट की वजह से पूरी बृहत्संहिता डाउनलोड करके देखी (3*) और उसमें मुझे शनि, जिस वर्ष का स्वामी होता है, उसके बारे में निम्न तीन श्लोक मिले, जो कि उसके अध्याय 19 में हैं, जहाँ ग्रहवर्ष फल नाम से अध्याय है |
इसमें आखिरी पंक्ति को देखें, शनिश्चर भी शनि के नाम से नहीं है अपितु दिवाकरसुतस्य के नाम से है | और वो पंक्ति भी कहीं प्राप्त नही हुई, जो इस फेक पोस्ट में लिखी हुई थी | इन तीनों श्लोको का समग्र अर्थ है कि जिस वर्ष का स्वामी दिवाकरसुत अर्थात शनि ग्रह होता है, उसका फल निम्न प्रकार होता है |
“जब शनि वर्ष का स्वामी होता है तब खोटे व्रत वाले, चोर और बहुत से संग्रामो के होने से समस्त राज्य आकुल रहते हैं | बहुतों का पशुधन जाता रहता है | बंधुओं का वियोग होने से मनुष्यगण बहुत ही रोते हैं | क्षुधा के मारे और रोगों के मारे बहुत ही व्याकुल होते हैं | आकाश में जैसे ही बादल आते हैं, वैसे ही पवन उनको उड़ा देती है | पृथ्वी पर एक पत्ता भी आरोग्य नहीं रहता | आकाश में सूर्य-चंद्रमा की किरणें धूरी से बांध जाती हैं | जलाशय जलहीन और नदियाँ कृशांग हो जाती हैं | कहीं पर अनाज जल के अभाव से नष्ट हो जाता हैं और कहीं जल से भरी हुई भूमि में पल जाता है | इस प्रकार जिस वर्ष में शनि स्वामी होता है, तब इंद्र मंद मंद धान्य का देने वाला जल वर्षाता है |”
आशा है, अब आपको स्पष्ट हो गया होगा कि वैसी कोई पंक्ति इन तीनों श्लोकों में नहीं है और ऐसा कोई भी अर्थ “जिस वर्ष के राजा शनि होते है उस वर्ष में महामारी फैलती है ।“ हमें इन तीनो ही श्लोकों में प्राप्त नहीं होता है क्योंकि महामारी शब्द इसमें नहीं है | हाँ, ये अवश्य है कि एक पत्ता भी आरोग्य नहीं होता अर्थात चारों तरफ बीमारियाँ होती हैं |
पर शनि किस वर्ष का राजा है, ये देखने वाली बात है | इस वर्ष का स्वामी तो बुध है क्योंकि ये संवत्सर बुधवार को प्रारम्भ हुआ था लेकिन इससे पिछला यानि कि परिधावी संवत्सर, शनिवार को ही प्रारम्भ हुआ था | (6 अप्रैल, 2019) अतः कहा तो जा सकता है कि शनि, जिस वर्ष का स्वामी है, उसमें उपरोक्त फल प्राप्त हुआ लेकिन फिर हमें ये भी देखना चाहिए कि क्या पिछले परिधावी संवत्सर में भी ऐसा ही हुआ था ? मैंने इसके लिए चेक किया, इससे पिछला परिधावी संवत्सर 1959 था, लेकिन उसका स्वामी शनि नहीं था, (4*) हलांकि उस वर्ष भी पूरी दुनिया में एक पेंदेमिक हुआ था, वाल स्ट्रीट जनरल के अनुसार उसका नाम था हांगकांग फ्लू (5*) | हालांकि इसके अलावा भी बहुत पेंदेमिक पूर्व में हुए हैं, जो कि परिधावी संवत्सर में नहीं हुए, पर मैंने उनको नहीं देखा है पर हो सकता है, उन के संवत्सर के स्वामी शनि हों | अतः कह सकते हैं कि उपरोक्त ग्रंथो के अनुसार, महामारी की भविष्यवाणी, संवत्सर के अनुसार तो ठीक ही प्रतीत हो रही है | किन्तु दिया गया सन्दर्भ प्राप्त नहीं हुआ है |
इस पोस्ट के भी अनुसार, 3 से 7 महीने में इस बीमारी का असर समाप्त हो जाना चाहिए और प्रमादी संवत्सर के प्रारंभ होने पर, महामारी कम हो जानी चाहिए | ये पोस्ट, मार्च के प्रारम्भ में ही बनाई गयी होगी, ऐसा लगता है | पर आज कि यानि 4 सितम्बर 2020 की भी बात करें तो भारत में कल 85000 केस निकले हैं, जो कि दुनिया में सबसे अधिक हैं और मार्च को निकले हुए भी छठा महिना है और बीमारी कम नहीं हो रही है अपितु अभी तक तो भारत में बढ़ ही रही है | अतः कह सकते हिं कि ये पॉइंट, पोस्ट लिखने वाले ने अपनी तरफ से जोड़ा है क्योंकि बीमारी कब तक चलेगी, ऐसा कोई सन्दर्भ, इन श्लोकों में प्राप्त नहीं है |
अतः निष्कर्षस्वरूप हमें कुछ बातें ज्ञात हुई | एक तो ये कि इस पोस्ट में जो सन्दर्भ के नाम पर संस्कृत श्लोक/पंक्तियाँ दी गयी हैं, वो गलत हैं | वैसा कोई सन्दर्भ, बताये गए ग्रन्थों में नहीं है | ये भी ज्ञात हुआ कि सूर्यग्रहण, बीमारी कितने दिन में ठीक हो जायेगी, आदि प्रकार की जो बातें बताई गयी हैं, वो भी भ्रामक हैं | लेकिन इसके साथ ये भी निष्कर्ष निकल रहा है कि जो ग्रंथों के नाम बताये गए हैं, उन 3 में से 2 में, लगभग, वैसी ही भविष्यवाणियाँ तो की गयी हैं और इतिहास को खंगालने पर वो, सही भी लग रही हैं हालांकि मैंने इतिहास कम खंगाला है, पर जितना निकाला है, उसके अनुसार तो ठीक लग रही हैं | हर सातवाँ संवत्सर का स्वामी, शनिवार होगा तो ये तो संभव नहीं लगता कि हर 7 वर्ष बाद कोई महामारी फैलती हो, दुनिया में पर यदि परिधावी संवत्सर की बात करें और शनि के स्वामी वाले वर्ष की बातें करें तो प्रायः जो महामारी हुई हैं, उनका सम्बन्ध, इन दोनों में से किसी एक सन्दर्भ से अवश्य लगता है | अतः हम ये नहीं कह सकते कि बात पूर्णतः भ्रामक है अपितु इस प्रकार की मिलती जुलती भविष्यवाणियाँ उपलब्ध तो हैं | पर पोस्ट लिखने वाले ने शायद इतनी मेहनत नहीं की और short में ही, गलत श्लोक लिख कर, इधर उधर से कुछ जोड़ कर, इतिश्री कर ली है | पर पता नहीं क्यों, उसने सही सन्दर्भ और श्लोक नहीं दिये हैं, जबकि देता तो बातों में और सत्यता आती पर शाद महामारी शब्द के न मिलने से, उसने उपरोक्त सन्दर्भ सही नहीं दिये हैं | अतः हम उपरोक्त पोस्ट के सन्दर्भों का खंडन करते हैं किन्तु उसमें लिखी गयी मुख्य बात, कि हमारे ग्रंथों में पहले से ही वर्षों के बारे में सटीक लगने वाली भविष्यवाणियाँ की गयी हैं, इसका हम भी समर्थन करते हैं | अतः ये लेख खंडन भी है और मंडन भी पर पोस्ट के सन्दर्भों में प्रयुक्त श्लोक मैच न करने से, हम इसे खंडन ही कहेंगे |
अंत में, पुनः कहूँगा कि संस्कृत ग्रंथो के नाम के सन्दर्भ लिए हुए, सोशल मिडिया पोस्ट को आँख बंद करके, सत्य मत मानिए और न ही उनसे अपने धर्म/शास्त्रों को समझने की कोशिश कीजिये क्योंकि 100 में 90 पोस्ट फेक होती हैं और गलत सन्दर्भ देती हैं और हमें भ्रमित करती हैं |
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पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा
सन्दर्भ –
(2*) – https://bit.ly/332cyO6
(4*) – https://hi.drikpanchang.com/panchang/month-panchang.html?date=07/04/1959