November 21, 2024

खंडन 14 – शास्त्रों के दुष्प्रचार करने वाली पुस्तक का खंडन

क्या सच क्या झूठ वेदों में अश्लीलता

खंडन 14 – शास्त्रों के दुष्प्रचार करने वाली पुस्तक का खंडन

खंडन सिरीज में इस बार हम बात करेंगे, एक पृष्ठ की, जो हमारे पास खंडन के लिए आया है | इस पृष्ठ में शास्त्रों से विभिन्न उद्धरण दिए गए हैं, आज हम उनके बारे में चर्चा करेंगे –

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झूठी किताब का हिस्सा

इन्होने पहला ही प्रमाण, शिव पुराण का दिया है किन्तु भूलवश शायद अध्याय लिखना भूल गए हैं | हो सकता है, गलती से ऐसा हुआ हो किन्तु अध्याय न लिखने की वजह से, मुझे शिव पुराण का पूरा विश्वेशर संहिता खंड पढ़ना पड़ा और फिर भी ये श्लोक अथवा इसके आस पास का भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ | हाँ, इसके विपरीत बहुत सी बातें प्राप्त हुई | यथा –


शिवपुराण के विश्वेशर संहिता खंड में ही, सूत जी बताते हैं कि शिवलिंग किस किस से बनाया जा सकता है – पार्थिव द्रव्य से, जलमय द्रव्य से अथवा तैजस पदार्थ से, अपनी रूचि के अनुसार बनाया जा सकता है | – अब जब यहाँ स्पष्ट है कि पार्थिव द्रव्य से शिवलिंग बनाया जा सकता है तो इसमें क्या खराबी है ? यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं है कि इसमें और अन्य शिवलिंग में कोई अंतर अथवा खराबी है, कोई भी अपनी इच्छा से, जैसा सही समझे, शिवलिंग बना ले और पूजे | रामचंद्र जी ने तो बालू का ही शिवलिंग बना लिया था…!

और आगे मिला – शिवपुराण, विश्वेशर संहिता, अध्याय २१ में – ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अथवा विलोमसंकर, कोई भी क्यों न हो, अपने अधिकार के अनुसार वैदिक और तांत्रिक मन्त्रों से सदा आदरपूर्वक शिवलिंग की पूजा करे | – यहाँ तो किसी को मना नहीं है, शिवलिंग की पूजा करने से तो फिर केवल शूद्र, पत्थर के शिवलिंग की पूजा करते हैं, ऐसा अर्थ कैसे निकला ? फिर शूद्र को मूर्ख भी कहा है इन्होने, अब या तो सभी मूर्ख होंगे या कोई भी नहीं होगा | सभी वर्णों में केवल शूद्र को ही शिवलिंग पूजने से मूर्ख का अर्थ कैसे निकाला इन्होने ? ऊपर और यहाँ के सन्दर्भ से स्पष्ट है कि पत्थर का शिवलिंग बनाया जा सकता है और उसे कोई भी वर्ण वाला पूज सकता है अतः ये कहना कि पत्थर का शिवलिंग केवल शूद्रों के लिए है, सही प्रतीत नहीं होता | जबकि ऐसा कोई श्लोक भी प्राप्त नहीं है … केवल आधी लाइन ‘शिवलिंगस्तु शूद्राणाम’ लिखने से, इन्होने ऐसा विचित्र अर्थ कैसे निकाल लिया ? और शूद्र को मूर्ख तो किसी शास्त्र में नहीं लिखा है, किसी व्याकरण की पुस्तक में नहीं पढ़ा गया है फिर ये विचित्र अर्थ इन्होने कैसे कर दिया ?

इसके अलावा स्कन्द पुराण, मा कुमा 13 में लिखा है कि कृष्ण जी ने स्थल भाग में काले पत्थर का शिवलिंग स्थापित करके उर्जित नाम से, उनकी आराधना की |तो क्या पुस्तक लिखने वाले महोदय बतायेंगे कि क्या कृष्ण जी, मूर्ख थे ? शूद्र थे ? यदि एक बार को सही मान भी लिया जाए कि पत्थर का लिंग शूद्रों के लिए है, ये लिखा हो सकता है पर द्विज को पत्थर का लिंग नहीं पूजना है, ये कहाँ लिखा है ?? और सबसे मजेदार बात है कि शूद्र माने मूर्ख होता है !! ये गजब का अर्थ इन्होने किया है ! कहाँ से ? कौन से सन्दर्भ से ? कौन से शास्त्र में अथवा व्याकरण में, शूद्र का अर्थ मूर्ख लिखा है ? कुछ भी मनगढ़ंत लिख दो और संस्कृत के दो शब्द देखकर लोग, कुछ भी बकवास को मान लेंगे, इन लेखक को ऐसा लगता है और शायद सही लगता है क्योंकि ये पेज ट्विटर पर भी मिला है और इसी सन्दर्भ में, पोस्ट फेसबुक पर भी प्राप्त हुई मुझे | इसका अर्थ है कि लेखक सही है, लोग शास्त्रों के नाम पर, कुछ भी मान लेते हैं 😊

पहला सन्दर्भ शिव पुराण का है (जो कि झूठा है, ऐसा कोई श्लोक शिव पुराण में नहीं है) जिसका मतलब है कि लेखक शिव पुराण को प्रमाण मानता है लेकिन दूसरा सन्दर्भ महानिर्वाण तंत्र का है, जिसके अनुसार नहीं करनी चाहिए | अब लेखक यदि शिव पुराण को प्रमाण मानता है तो उसे महानिर्वाणतंत्र को गलत मानना चाहिए और अगर महानिर्वाण तंत्र को सही मानता है, तो फिर शिव पुराण का संदर्भ देने का कोई औचित्य ही नहीं है पर लेखक बहुत समझदार है, वो दोनों को प्रमाण मानता है !!! वो ये जानने का प्रयास ही नहीं करता कि महानिर्वाण तंत्र में यदि ऐसा कुछ लिखा है तो क्यों लिखा है ?

सनातन धर्म में दो पद्धति है, एक साकार ब्रह्म की और एक निराकार ब्रह्म की | जब निराकार ब्रह्म की उपासना करने वालों ने ये देखा कि मनुष्य उस निराकार ब्रहम की उपासना नहीं कर पा रहा है क्योंकि निराकार का चिन्तन और ध्यान बड़ा कठिन है और योगियों द्वारा ही उपास्य है तो उन्होंने मूर्तीपूजा का विधान बनाया कि इस मूर्ती को देखकर, पहले इसका ध्यान करो फिर इस मूर्ती को त्याग दो और निराकार ब्रह्म से एकाकार हो जाओ | घर पर बैठकर ही ध्यान करो | इसका एक फायदा भी हुआ और एक नुक्सान भी | फायदा ये हुआ कि लोगों ने इस मैसेज को समझा और इसे फॉलो किया, (जैसे व्यास जी ने सूत जी को समझाया) और बड़े अच्छे अच्छे वास्तुशिल्प से युक्त मंदिरों का निर्माण हुआ और नुक्सान ये हुआ कि कालान्तर में, लोग इस कारण को भुला बैठे और मूर्ति को ही ईश्वर मानने लगे | इसके फलस्वरूप लोगों को समझाना शुरू हुआ और इस प्रकार का श्लोक सामने आया, जिसका उद्धरण इन्होने दिया है पर इन्होंने क्या चालाकी की ? इन्होने उस श्लोक के कुछ शब्दों को बदल दिया !! चालाकी से, धूर्तता से | देखिये, इन्होने कैसे मूल श्लोक से हेरा-फेरी की –


मृच्छिला धातुदार्वादि मूर्ता विश्ववरबुद्धयो, क्लिश्यन्तस्तपसा ज्ञानं बिना मोक्षं न यान्ति ते ।

Page १०, The Sacred Book of Hindus (https://bit.ly/2VdvVRC), मुझे महानिर्वाण तंत्र ग्रन्थ नहीं मिला अतः १९०९ की किताब का सन्दर्भ दे दिया है, जो कि जाहिर है, इनकी किताब से तो पुरानी ही किताब है |

अर्थ – जो सोचते हैं कि परम पुरुष मिटटी , पत्थर , धातु या लकड़ी की बनी मूर्ति में सीमित है वे अपने शरीर को तपा कर अनावश्यक पीड़ा पहुंचाते हैं । वे बिना आत्मज्ञान के मोक्ष नहीं पाएंगे ।

अब देखिये, कैसे कुछ शब्दों का हेर-फेर करके, पूरे श्लोक के अर्थ का अनर्थ कर दिया !! इससे इस लेखक के न केवल मूढ़ अपितु धूर्त होने का भी आक्षेप स्पष्ट होता है |

इसके आगे, ये महोदय, श्रीमद्भागवत पुराण से सन्दर्भ देते हैं –

न ह्यम्मयानि तीर्थानि न देवा मृच्छिलामयाः –
श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/उत्तरार्धः/अध्यायः ८४, श्लोक 11 (ऐसे देते हैं सन्दर्भ, स्कंध का स्कन्द नहीं कर देते हैं)

पर ये इसके आगे की पंक्ति जानबूझ कर नहीं देते हैं – जिसमें लिखा है –

न ह्यम्मयानि तीर्थानि न देवा मृच्छिलामयाः । ते पुनन्त्युरुकालेन दर्शनादेव साधवः |

अर्थ – पानी के तीर्थ, तीर्थ नहीं हैं और मिटटी की मूर्तियाँ देवता नहीं हैं क्योंकि वो तो बहुत दिनों बाद ही किसी को पवित्र करती हैं, लेकिन साधु दर्शनमात्र से ही सबको पवित्र कर देते हैं |

सीधा सा अर्थ है कि जो ज्ञानी होता है, जो ईश्वर को जानता है, साधु है, वो तो तुरंत ही आपको पवित्र कर देगा पर मूर्तियों और तीर्थों में वो बात नहीं है क्योंकि अनेकों तीर्थों और मूर्तियों के दर्शन के बाद ही आपके पुण्य जागृत होते हैं | इसमें एक साधारण उदाहरण दिया है कि ज्ञानी का सानिध्य करना चाहिए पर कुछ चतुर लोग, आधी आधी लाइन उठाकर, पाठक को भ्रमित करने पर अधिक यकीन रखते हैं |

इसीलिए पुनः पुनः कहता हूँ, ऐसे धूर्तों से, बाबाओं से बचिए जो अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं, शास्त्रों के बारे में झूठे सन्दर्भ देकर, जनता को ज्ञान देने की बजाय, दिग्भ्रमित कर रहे हैं | स्वयं से अध्ययन कीजिये क्योंकि अब आप किसी पर विश्वास नहीं कर सकते हैं | असली ग्रंथो को, शास्त्रों को पढ़िए, बजाये ऐसे कुपढ़ बाबाओं की किताबों और मनमाने सन्दर्भ और अर्थो के | आप जानना नहीं चाहेंगे कि ये किस महान पुस्तक का अंश है ?

नाम नहीं बताऊंगा, ट्वीट दिखाऊंगा बाकी पता आप ही कर लीजियेगा – https://bit.ly/2XEf8sr

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पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

aghori baba ki gita, part 1
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