खंडन 12 : श्रीराम द्वारा शम्बूकवध नामक वायरल पोस्ट का खंडन
रघुकुल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी पर ही, शम्बूकवध के नाम से घूम रही, वायरल पोस्ट द्वारा मर्यादाभ्रष्ट होने का मिथ्या आरोप लगाया गया है | शम्बूक वध के लिए, विभिन्न वीडियो/फेक पोस्ट नेट पर उपलब्ध हैं, जिसमें श्रीराम जी, एक ब्राहमण पुत्र के मर जाने का कारण, किसी शूद्र द्वारा तपस्या में रत होने को कारण जानकार, पुष्पक विमान से उसको ढूँढने जाते हैं और उसका वध कर देते हैं, जबकि ये पूर्णतः काल्पनिक, निराधार और असत्य है, इसमें कोई संशय नहीं है | इसको न मानने के बहुत से कारण उपलब्ध हैं |
जिसमें सबसे प्रमुख कारण तो यही है कि इस फेक पोस्ट के अनुसार, श्रीराम चन्द्र जी, पुष्पक विमान से, उड़कर उस तपस्वी को ढूँढने जाते हैं | जबकि वाल्मिक रामायण (यही अंतिम प्रमाण है) के ही युद्धकाण्ड में, 130 वें सर्ग के, 59-60वें श्लोक में स्पष्ट लिखा है कि भगवान् श्री राम ने, पुष्पक विमान कुबेर को वापिस लौटा दिया था (अयोध्या में उतरने के बाद उन्होंने पुष्पक विमान कुबेर के पास भेज दिया क्योंकि वो उसी का था, जिसे रावण ने, कुबेर से छीन लिया था)
अवतीर्य विमानाग्रादवतस्थे महीतले, अब्रवीच्च तदा रामस्तद्विमानमनुत्तमम् |
वह वैश्रवणं देवमनुजानामि गम्यताम्, ततो रामाभ्यनुज्ञातं तद्विमानमनुत्तमम् |
उत्तरां दिशमुद्दिश्य जगाम धनदालयम् |
श्रीरामचन्द्र तथा अन्य समस्त लोग, विमान से भूमि पर उतर पड़े | तदनंतर श्रीराम ने, उस श्रेष्ठ पुष्पकविमान के अधिष्ठाता को संबोधन करके कहा, मैं आज्ञा देता हूँ कि तुम कुबेर के पास चले जाओ और उन्ही की सवारी में रहो | जब श्रीराम ने इस प्रकार आज्ञा दी, तब वह श्रेष्ठ विमान उत्तर दिशा की ओर कुबेर की राजधानी को चला गया |
अब आप सोचिये कि जब, पुष्पक विमान श्रीराम चन्द्र जी के पास था ही नहीं, तो वो शम्बूक का वध करने, पुष्पक विमान से कैसे पहुंचे ? ये २ श्लोक ही अपने आप में पर्याप्त प्रमाण हैं कि ये पोस्ट झूठी है | जो भगवान् रामचंद्र जी, युद्ध में, अपने परम शत्रु, रावण के, शस्त्रविहीन होने पर, निहत्थे होने पर, आघात नहीं किये | उसे युद्ध से सकुशल वापिस जाने को कह दिया और अगले दिन, पुनः सशस्त्र आकर युद्ध करने को कहते हो, वो एक निहत्थे, तपस्या में रत व्यक्ति पर तलवार से वार कर देंगे, ये वही व्यक्ति लिख सकता है, जिसने रामायण को पढ़ा ही न हो |
और शूद्र तपस्या नहीं कर सकता, ऐसा कौन से शास्त्र में लिखा है ? ऋग्वेद,मंडल १० ,सूक्त ३०-३४ का द्रष्टा है >कवष ऐलूष । यह शूद्र था।जुआरी भी था । इसने अक्षसूक्त भी लिखा था ,जिसमें इसने अपने से ही कहा है कि >मत खेल जुआ। इसका एक सूक्त विश्वेदेवा को समर्पित है।एक अपां- नपात को। सरस्वतीनदी के तट पर जब सोमयाग हुआ, तब ब्राह्मणों ने इसे दास्या:पुत्र: कह कर बाहर कर दिया। यह कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया। अपां- नपात की स्तुति की। संयोग से सरस्वती का प्रवाह इसके चारों ओर आ गया । वह स्थल परिसारक- तीर्थ माना गया।
इसने ब्राह्मणों को बताया कि जाति नहीं कर्म आगे बढाता है।इसके बेटे तुरकावषेय की गणना बडे विद्वानों में हुई तो फिर कौन इस बात को मानेगा कि शूद्र के तपस्या करने से, कोई भारी मर्यादा टूट जाती है | ऊपर से, जिस राम ने, शबरी के झूठे बेर खाए, निषादराज को अपना परममित्र माना, वो मात्र शूद्र के तपस्या करने भर से, उसे तलवार से मार देंगे | ये कोई अनपढ़ ही मान सकता है, शास्त्रों का अध्ययन करने वाले तो नहीं मान सकते |
इन्टरनेट पर कुछ जगह, इस शम्बूक वध के लिए, वाल्मिक रामायण के ही उत्तरकाण्ड से कुछ श्लोक दिए गए हैं, कि उस श्लोक के अनुसार, श्रीराम जी ने, शम्बूक का वध किया था, जबकि मजेदार बात ये है कि वाल्मिक रामायण में उत्तरकाण्ड ही नहीं है !!! वाल्मिक रामायण तो युद्धकाण्ड पर आकर समाप्त हो जाती है | उसके आगे वाल्मिक रामायण में कोई काण्ड नहीं है | फिर ये बाद वाला काण्ड कहाँ से आया ? जिसे लोग उत्तर काण्ड के नाम से कह रहे हैं, ये वैसे ही आया, जैसे किसी ने अफवाह उड़ा दी कि कोरोना स्तोत्र, शिव पुराण से है | ऐसे ही, किसी की रचना को जबरन वाल्मिक रामायण से जोड़कर, उसे वाल्मिक रामायण का बताया जाने लगा, जबकि मूल वाल्मिक रामायण में ऐसा कुछ नहीं है |
फिर ये सारा शम्बूक वध का प्रकरण आया कहाँ से ? ये इतना प्रचलित कैसे हुआ ? अब आते हैं, इस फेक पोस्ट के मूल पर | एक बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यासकार हुए हैं, नरेंद्र कोहली जी | इन्होने १९७५ में एक नाटक लिखा था – शम्बूक वध | जाहिर है, नाटक था तो मंचन भी हुआ, और खूब हुआ और ये प्रकरण, आम जनमानस तक पहुँच गया, जहाँ तक फेक उत्तरकांड नहीं पहुँच पाया था | ऐसा नहीं है कि उपन्यासकार पढ़ते नहीं है, बहुत पढ़ते हैं, बहुत अध्ययन करते हैं लेकिन वो किसी भी चीज को आध्यात्म के अनुसार नहीं पढ़ते अपितु उसमें छिद्र ढूंढकर, उस पर एक नयी रचना बनाने के उद्देश्य से पढ़ते हैं | इन्होने भी देखा कि अरे, एक अनपढ़ा सा करैक्टर मिला, शम्बूक, इसी पर आगे एक नाटक बनाया जा सकता है और एक फेक करैक्टर, एक फेक कथा को एक बेस मिल गया, आम जनमानस में | जब-जब आप धर्म को, शास्त्रों को, मूलग्रंथों की बजाय, उपन्यासकारों की नज़रों से पढ़ते हैं, तब तब आप एक नए भ्रम के शिकार होते हैं क्योंकि उस उपन्यास में कुछ भी शास्त्रोक्त नहीं होता, सब कुछ या कुछ भी मनगढ़ंत हो सकता है और आपको पता भी नहीं चलता, क्योंकि आपने तो मूलग्रन्थ तिनके तक से नहीं छुए हैं | चाहे वो नरेंद्र कोहली जी का नाटक – शम्बूकवध हो या अमीश त्रिपाठी की शिव ट्रायोलोजी |
अब से कसम खाइए कि शास्त्रों के बारे में अपनी राय, किसी सोशल मिडिया पोस्ट से नहीं, किसी नाटक, उपन्यास से नहीं बनायेंगे अपितु शास्त्रों का स्वअध्ययन करके ही बनायेंगे और इस प्रकार की किसी भी सोशल मिडिया पोस्ट को १% सत्य नहीं मानेंगे |
पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा





