खंडन 11 – भगवान् को अस्तित्व को चुनौती देती वायरल पोस्ट का खंडन
आजकल इस प्रकार की पोस्ट, जिनमें ईश्वर की सत्ता को ही चुनौती दी जाती है,सोशल मिडिया पर खूब वायरल होती हैं | पर अगर वास्तव में, इनका थोडा भी विश्लेष्ण किया जाए तो पता चलता है कि ये पोस्ट, बहुत ही साधारण कुतर्कों पर आधारित होती हैं | पहले आप वायरल पोस्ट पढ़ लें, फिर उसका खंडन पढ़ें –
पोस्ट पर जरा गौर फरमायें:—-
1. जब भूख लगे तब भगवान नही रोटी की जरूरत पड़ती है।
2. जब प्यास लगे तब भगवान नही पानी की जरूरत पड़ती है।
3. जब दम घुटने लगे तो भगवान नही हवा की जरूरत पड़ती है।
4. जब ठिठुरन महसूस हो तब भगवान नही गरम कपड़े या आग की जरूरत पड़ती है।
5. जब तुम पर कोई हमला करे तब भगवान नही हथियार की जरूरत पड़ती है।
6. जब तुम्हारी स्थिति दयनीय हो तो भगवान नही धन की जरूरत पड़ती है।
7. जब तुम्हारी तबियत खराब हो तो भगवान नही डॉ. की जरूरत पड़ती है।
8. जब तुमको डॉ. वकील, इंजीनियर बनना हो तो भगवान नही स्कूल की जरूरत पड़ती है।
9. जब तमको राज पाठ करना है तो भगवान नही वोट की जरूरत पड़ती है।
इसका मतलब भगवान की जरूरत कहीं नही पड़ती। और हमारे साथी भगवान के चक्कर में अपना जीवन और समय दोनों खराब कर रहे हैं।
😊मज़ाक या सत्य ,अपनी राय दें।
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खंडन 11 – भगवान् को अस्तित्व को चुनौती देती वायरल पोस्ट का खंडन
इनसे अच्छे तो बौद्ध थे, जिन्होंने कम से कम, तर्क से, ईश्वर की सत्ता को चुनौती दी थी | आपके पास ईश्वर की सत्ता को चनौती देने के लिए, दो ही हथियार हैं – एक तर्क और एक कुतर्क | इस प्रकार की पोस्ट, सतही कुतर्कों पर ही आधारित होती हैं और इन बातों में कोई वजन नहीं होता है | अब इस पोस्ट को ही देखिये | इसमें लगभग सभी वाक्यों में बताया गया है कि किन किन स्थानों पर ईश्वर की आवश्यकता नहीं पड़ती है ! अब इसे लिखने वाले से पूछा जाए कि भाई, ईश्वर कोई वस्तु है क्या ? कि फलानी जगह पर इसकी जरूरत नहीं पड़ती इसलिए वो व्यर्थ हो जाएगा ? ईश्वर को किसी वस्तु से जैसा समझना ही, अपने आप में हास्यास्पद है |
अच्छा, अब हम इसे ऐसे देखते हैं – जब भूख लगे तो भगवान् की नहीं रोटी की जरूरत पड़ती है ? और आपको वो रोटी लाकर कौन देता है ? आपको वो रोटी कहाँ से मिलती है ? जब प्यास लगे तो भगवान् की नहीं, पानी की जरूरत पडती है, पर प्रश्न तो यहाँ भी वही है कि आपको पानी मिलेगा ही ? ये कैसे पता चलेगा ? कौन लाकर देगा ? कहाँ से मिलेगा ? जब कोई हमला करे तो भगवान् नहीं, हथियार की जरूरत पड़ती है पर क्या केवल हथियार मिलने से ही, आप ज़िंदा बचने की गारंटी ले सकते हैं ? जब तबीयत खराब हो तो भगवान् की नहीं, डॉक्टर की जरूरत पड़ती है तो क्या ये माना जाये कि जो व्यक्ति डॉक्टर के पास पहुच जाएगा, तो वो कभी मरेगा ही नहीं ? या अस्पताल में लोग मरते ही नहीं हैं ? क्यों मर जाते हैं लोग ? डॉक्टर के लाख प्रयत्न करने पर भी ?
इस पोस्ट की मूर्खता पूर्ण कुतर्कों से, उससे भी बड़े बड़े प्रश्न उठ खड़े होंगे, जिनके उत्तर, देना, इसके लेखक के हाथ में न होगा | क्यों ये शरीर मर जाता है ? क्यों हम पैदा होते हैं ? ये संसार में कोई क्यों गरीब है, कोई क्यों अमीर है ? ऐसा भी नहीं है कि अमीरों को कष्ट नहीं है !!! सुब्रत राय, इतना अमीर होकर भी जेल की रोटियां क्यों तोडता रहा ? अनिल अम्बानी, कैसे बैंकरैप्ट हो गया ? क्या इनके जीवन में दुःख नहीं हैं ? किसी को क्यों दुःख मिलता है और किन्ही को क्यों सुख मिलता है ? इतने सारे बड़े बड़े प्रश्नों के उत्तर में एक ही बात है – ईश्वर और उसकी रचना और उसका मैकेनिज्म | आप उस मैकेनिज्म को ही ईश्वर से बड़ा बना दो, जिसे ईश्वर ने ही बनाया है तो आपको कोई मूर्ख ही कहेगा !!!
जैसे रोज सुबह होती है, रोज रात होती है, मौसम बदलते हैं क्यों ? क्या आपके सामने खाना बना हुआ हो तो बिना हाथ लगाए, आप उसे खा सकते हैं ? क्या ऐसा हो सकता है कि बिना किसी कर्ता के वो खाना बन कर आपके सामने आ जाए ? नहीं !! संभव ही नहीं | हर कार्य का एक कर्ता होता है | अतः इस सृष्टि में, दिन-रात का, जीवन-मृत्यु का, सुख-दुःख का सबका कोई न कोई कर्ता अवश्य है | अगर सूरज-चाँद है, उनके घूमने में क्रम है, उनके बलाबल को संतुष्ट करने वाला मैकेनिज्म है तो उस मैकेनिज्म को बनाने वाला भी कोई न कोई अवश्य है क्योंकि कोई भी चीज अपने आप नहीं होती है | वो बनाने वाला कर्ता कौन है ? वो ईश्वर है | अतः किसी विशिष्ट रचना से प्रभावित होकर, उसके रचनाकार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता कि इस रचना का कोई रचनाकार हो ही नहीं सकता | रचना है तो रचनाकार भी अवश्य होगा | भूख, प्यास, सांस, स्वास्थ्य ये सब जीव की आवश्यकता हैं पर वो जीव कहाँ से आया ? उसे भूख क्यों लगती है ? उसे प्यास क्यों लगती है ? अगर मैकेनिज्म है, तो उसको बनाने वाला भी अवश्य है | जो मैकेनिज्म देखकर, बनाने वाले को ही नकार दे, वो कम विचारवान, बुद्धिहीन प्राणी है | ऐसे प्राणियों की ऐसी फ़ालतू कुतर्कों वाली पोस्ट में फंसने की आवश्यकता नही है |
इस पोस्ट में कोई भी शास्त्रोक्त बात नहीं थी, मात्र कुछ कुतर्क थे, उनके लिए, कारण और कर्ता का उदाहरण ही पर्याप्त है | उसको थोडा व्याकरण पढ़ाइयेगा – जो वाक्य में कार्य को करता है, वह कर्ता कहलाता है। कर्ता वाक्य का वह रूप होता है जिसमे कार्य को करने वाले का पता चलता है। अगली बार आपके पास इस प्रकार की ईश्वर को चुनौती देती हुई कोई पोस्ट आये तो इस कारण और कर्त्ता के तर्क का प्रतिपादन कीजिये | अपने तर्क बनाइए और देखिये, आप कितनी आसानी से ऐसे कुतर्कियों का मुंह बंद कर पाएंगे |
पं अशोकशर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा
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होगा, शब्द अनिश्चितता के लिए प्रयोग किया जाता है, यानि आप अभी भी ईश्वर के अस्तित्व के लिए अनिश्चित हैं। एक काम करिए, ईश्वर से पूरे विश्व से बात करा दीजिए, कभी ना कभी बात हो जायगा, ऐसा कह के अनिश्चितता मत जता जाइए। बात करा ही दीजिये।