युधिष्ठिर धर्मराज थे या अधर्मी, इसका निर्णय कैसे हो ?
ये आक्षेप आजकल फेसबुक पर आम है कि युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी को जुए में हारा, ये अधर्म किया फिर भी धर्मराज कहलाये । ये कहने वाले तमाम लोगों ने भले ही महाभारत का दशांश भी न पढा हो, महाभारत तो छोडिए किसी भी सनातन धर्मग्रन्थ, एकाध को छोड़ कर नहीं पढ़ा होगा । उनसे पूछा जाए कि भाई, युधिष्ठिर को धर्मराज तो इसलिए कहते हैं कि महाभारत में सभी लोग उनको धर्मराज ही कहते थे, चाहे भीष्म हों या भगवान कृष्ण और हम जानते हैं, महाजनो येन गता सः पंथा । जो महान लोग, बड़े लोग कहें, वही सही रास्ता होता है। हमने तो उन्हें धर्मराज नाम नही दिया पर भीष्म और भगवान कृष्ण से भी उलट आप जब उन्हें अधर्म करने वाला कहते हैं तो ये प्रतिप्रश्न लाजिमी है कि आपसे पूछा जाये कि आपने धर्म को समझने के लिये, कितने उपनिषद, कितने वेद, उपवेद, वेदांग, दर्शन (न्यायशास्त्र/तर्कशास्त्र) और धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है ?
अगर नहीं किया है तो क्या आप भीष्म, द्रोण, भगवान कृष्ण आदि से भी ऊपर चढ़कर इस बात में अधिकार पूर्वक फैसला सुनाने के किस प्रकार योग्य हैं ? आपकी धर्म के बारे में क्या योग्यता है ? आप धर्म को सही सही जानते हैं ये कैसे माना जाये ?
वैसे तो इतना ही उत्तर पर्याप्त है ये जानने के लिये कि आक्षेप लगाने वालों का कुछ भी अध्ययन नहीं है और जैसे एक पागल व्यर्थ प्रलाप करता है, उनकी ये चेष्टा भी उसी श्रेणी की है पर फिर भी, जिसके साथ ये अन्याय हुआ, वो द्रौपदी, जब केश पकड़ कर घसीटी जा रही थी, तो वो द्रौपदी क्या कहती है (जाहिर है कि आज किसी को युधिष्ठिर के निर्णय से इतना कष्ट नहीं होगा जितना उस समय द्रौपदी को था अतः वो युधिष्ठिर के बारे में क्या कहती हैं, ये जानना आवश्यक है), युधिष्ठिर के बारे में, वो सुन लीजिए (क्योंकि ऐसा आक्षेप करने वालों ने तो महाभारत पढ़ी नहीं है अतः अब थोड़ी सी पढ़ लीजिये)
द्रौपदी दुशासन से कहती हैं – धर्मपुत्र महात्मा युधिष्ठिर धर्म में ही स्थित हैं। धर्म का स्वरूप बड़ा सूक्ष्म (ध्यान दें) है। बुद्धि वाले धर्मपालन में निपुण महापुरुष ही उसे समझ सकते हैं (पुनः ध्यान दें)। मैं अपने पति के गुणों को छोड़कर वाणी द्वारा उनके परमाणुतुल्य छोटे-से छोटे दोष को भी कहना नहीं चाहती।
पहली बात तो धर्म बड़ा ही सूक्ष्म है, इसको कोई भी राहचलता व्याख्या करने लगे तो फिर तो धर्म का कल्याण हो ही जाना है । दूसरी बात, जो सबसे बड़े कष्ट में है, जिसको उस निर्णय से सबसे अधिक कष्ट हुआ, वो भी युधिष्ठिर पर अधर्मी होने का आक्षेप नहीं लगा रही है तो आप किस मुंह से लगा रहे हैं ? आपने कौन से धर्मशास्त्रों को पढ़कर पीएचडी कर रखी है जो द्रौपदी की, विदुर की, भीष्म की, भगवान कृष्ण जी की बात न मानी जाए पर आपकी बात मानी जाए ?
ये सोचना कि युधिष्ठिर ने अधर्म किया था, ऐसे लोगों को सलाह है कि अपना महान अध्ययन सार्वजनिक न करते हुए (ऐसा मूर्खतापूर्ण आक्षेप लगा कर) पहले कुछ अध्ययन करें । पहले धर्म को जाने तब धर्मराज युधिष्ठिर को चिन्हित करें । जब रास्ते के कुत्ते हाथी पर भौंकते हैं तो सिवाय कुछ लोगों का ध्यान आकर्षण के, वो कुछ अधिक प्राप्त नहीं कर पाते हैं । पढ़ने वालों को भी यही सुझाव है कि सोशल मीडिया के ऐसे, धर्म के न जानने वालों से, धर्म के आक्षेप सुन कर अपना मत न बनाया करें । अपना मत कभी भी प्रश्न सुनकर नहीं बनाना चाहिये कि ऐसा हुआ तो क्यों हुआ, (indirectly ये गलत हुआ) अतः ये अधर्म है । अगर किसी के पास कोई प्रश्न है तो उसने उस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये कितना अध्ययन किया, कितना प्रयास किया, उस पर निर्भर है कि वो व्यक्ति जिज्ञासु है अथवा नितांत मूर्ख है जो प्रश्नों को ईंट के ढेले के समान प्रयुक्त करता है कि अच्छा, यहां ज्यादा लोग उड़ रहे हैं तो लो ये फेंका मैंने अपना प्रश्न । प्रश्नों को ईंट की तरह प्रयुक्त करने वालों में उस प्रश्न का उत्तर जानने की कोई उत्सुकता नहीं होती है, वो सिर्फ प्रश्नों को ईंट की तरह से प्रयोग करना जानते हैं, उन्हें तिनके जितनी भी जिज्ञासा नहीं है । ऐसे मूर्खों के प्रश्नों के आधार पर क्या हमें अपना धर्म, अपनी सोच, अपने ग्रन्थों के निर्णय बदलने चाहिये ? उत्तर आप स्वयं दीजिये ।
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#बाल_की_खाल (नया हैशटैग… इब जहाँ खंडन न होवेगा, और स्वविचारित लेख होगा, उसको यही हैशटैग प्राप्त होगा, जिसे लोग इस नाम से ढूंढ सकें)