कलेर्दोषेनिवेश्चैव शृणु चैकं महागुणं |
यदल्पेन तु कालेन सिद्धि गच्छति मानवाः || (1)
त्रेतायां वार्षिको धर्मो द्वापरे मासिकः स्मृतः |
यथा क्लेशं वरन प्राश्स्तहा प्राप्यते कलौ || (2)
दुगत्रयेण तावन्तः सिद्धि गच्छन्ति पार्थिव |
यावन्तः सिद्धिमाद्यन्ति कलौ हरिहर्व्रताः || (3)
अब कलियुग की प्रवृत्ति सुनो | कलियुग में तमोगुण से व्याकुल इन्द्रियों वाले मनुष्य माया, असूया (दोष दृष्टी) तथा तपस्वी महात्माओं की हत्या भी करते हैं | कलि में मन और इन्द्रियों को मथ डालने वाला राग प्रकट होता है | सदा भुखमरी का भय सताता रहता है, भयंकर अनावृष्टि का भय भी प्राप्त होता है | सब देशों में नाना प्रकार के उलट फेर होते रहते हैं | सदा अधर्म सेवन करने के कारण मनुष्यों के लिए वेद का प्रमाण मान्य नहीं रह जाता | प्रायः लोग अधार्मिक, अनाचारी, अत्यंत क्रोधी और तेजहीन होते हैं | लोभ के वशीभूत हो कर झूठ बोलते हैं, उनमें अधिकांश नारियों का सा स्वभाव आ जाता है, उनकी संतान दुष्ट होती हैं | ब्राह्मणों के दूषित यज्ञ, दोषयुक्त स्वाध्याय, दूषित आचरण तथा असत शास्त्रों के सेवन रूप कर्म दोष से समस्त प्रजा का विनाश होता है | क्षत्रिय और ब्राह्मण नाश को प्राप्त होते हैं और वैश्य तथा शूद्रों की वृद्धि होती है | शूद्र लोग ब्राह्मणों के साथ एक आसन पर सोते, बैठते और भोजन भी करते हैं | शूद्र ब्राह्मणों के आचरण अपनाते हैं और ब्राह्मण शूद्र के सामान आचरण करते हैं | चोर राजाओं की वृत्ति में स्थित होते हैं और राजा लोग चोर के सामान वर्ताव करते हैं |
पतिव्रता स्त्रियाँ कम होने लगती हैं और कुलटाओं की संख्या बढती है | कलियुग में भूमि प्रायः थोडा फल देने वाली होती है, कही कहीं वह अधिक उपजाऊ होती है | राजा लोग निडर होकर पाप करते हैं, वे रक्षक नहीं वरन प्रजा की संपत्ति हड़प लेने वाले होते हैं | कलियुग में प्रायः क्षत्रियेत्तर जाति के लोग राजा होते हैं | ब्राह्मण शूद्र की वृत्ति से जीविका चलने वाले होंगे | शूद्र ब्राह्मणों से अभिवन्दित हो कर स्वयं वाद-विवाद करने वाले होंगे | वे द्विजों को देख कर भी अपने आसन से उठ कर खड़े न होंगे | द्विजों के सामने भी शूद्र ऊँचे आसन पर बैठे रहेंगे; यह बात जानकार भी राजा उन्हें दंड नहीं देगा | देखो, काल का कैसा प्रभाव है | अल्प विद्या और अल्प भाग्य वाले ब्राह्मण सुन्दर सुन्दर फूलों तथा अन्य प्रकार के अलंकारों से शूद्रों की अर्चना किया करेंगे | कलियुग के ब्राह्मण पाखंडियों के न लेने योग्य दूषित दान को भी ग्रहण करते हैं और उसके कारण दुस्तर रौरव नरक में पड़ते हैं | करोड़ों द्विज कलिकाल में तप और यज्ञ का फल बेचने वाले तथा अन्यायी होते हैं | मनुष्यों के संतानों में पुत्र थोड़े और कन्यायें अधिक होती हैं |
कलियुग में मनुष्य वेद वाक्यों तथा वेदार्थों की निंदा करते हैं | शूद्रों ने जिसे स्वयं रच लिया हो, वही शास्त्र एवं प्रमाण माना जायेगा | हिंसक जीव प्रबल होंगे और गौवंश का क्षय होगा | दान आदि कोई भी धर्म अपने शुद्ध रूप में नहीं पालित होगा | साधू पुरुषों का अनेक प्रकार से विनाश होगा | राजा लोग प्रजा के रक्षक न होंगे | कलियुग का अंतिम भाग उपस्थित होने पर प्रत्येक जनपद के लोग अन्न का व्यापार करेंगे, ब्राह्मण वेद बेचने वाले होंगे, स्त्रियाँ व्यभिचार से अर्थोपार्जन करेंगी | घरों में स्त्रियों की प्रधानता होगी | वे अपवित्र कपडे पहनने वाली तथा कर्कशा होंगी | बहुत अधिक भोजन में लिप्त हो कर कृत्या की भाँती प्रतीत होंगी | कलियुग में प्रायः सब लोग वाणिज्य वृत्ति करने वाले होंगे | इंद्र छिट-पुट वर्षा करने वाले होंगे | मनुष्य दुराचार सेवन आदि व्यर्थ के पाखंडों से घिरे होंगे और सब लोग एक दूसरे से याचना करेंगे | उस समय लोगों को पाप करने में तनिक भी शंका नहीं होगी | जब कलियुग के संहार का समय आएगा उस समय मनुष्य पराया धन हडपने वाले, परस्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाले तथा पंद्रह वर्ष की आयु वाले होंगे | चोर के घर भी चोरी करने वाले तथा लुटेरे के घर में भी लूट मार करने वाले होंगे | ज्ञान और कर्म दोनों का अभाव हो जाने से सब लोग उद्यम करना छोड़ देंगे | उस समय कीड़े, चूहे और सर्प मनुष्य को डसेंगे | वर्ण और आश्रम धर्म के विरोधी जो अन्य पाखण्ड सुने जाते हैं, वे सब उस समय प्रकट होंगे और उनकी वृद्धि होगी | कलियुग में स्त्री और पुत्र से दुःख, शरीर का संहार, सदा रोगी रहना तथा पाप करने में आग्रह रखना आदि दोष क्रमशः बढ़ते ही जायेंगे |
राजन ! यद्यपि कलियुग समस्त दोषों का भण्डार है, तथापि उसमें एक महान गुण भी है, उसे सुनो – कलिकाल में थोड़े ही समय साधन करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं | (1) सतयुग, त्रेता और द्वापर – इन तीनों युगों के लोग ऐसा कहते हैं कि जो मनुष्य कलियुग में श्रद्धा परायण होकर वेदों, स्मृतियों और पुराणों में बताये गए धर्म का अनुष्ठान करते हैं, वे धन्य हैं | त्रेता में एक वर्ष तक तथा द्वापर में एक मास तक क्लेशसहनपूर्वक धर्मानुष्ठान करने वाले बुद्दिमान पुरुष को जो फल प्राप्त होता है वह कलियुग में एक दिन के अनुष्ठान से मिल जाता है | राजन ! कलियुग में भगवान् विष्णु और शिव की नियमपूर्वक उपासना करने से जितने मनुष्य सिद्धि को प्राप्त होते हैं, उतने अन्य युगों में तीन युगों में उपासना करने से प्राप्त होते हैं | (2,3)
बहूत सुंदर बहूत अच्छा लेख.
बहुत ही शानदार रोचक जानकारी हैं धन्यवाद
धन्यवादम
धन्यवादम !
Bhaaratverse ko vidya sabsey supreme hai Jo ganit ki har vidha ko janti hai jaisey groho key mantra tantra yantra apna ganitiya mahatawa rakhtey hain aur kai taraha kee matrix ko dekhatey hain Jo kaal ganana ko dikhatey hain . jaisey surya Graham ka yantra ko ek matrix mana jayey toh uska determinant 360 ata hai Jo apney app hee yeah siddha Marta hai kee prithvi ka paribharman kaal 360 days ke aaspaas hai
Jay bhaaratverse jai mahakaal jai Veda’s
धन्यवादम