अघोरी बाबा की गीता
इधर एक दिन कंपनी से आदेश हुआ कि गुवाहाटी जाओ और जैसा हर बार होता है, अपुन ने बोरिया बिस्तर बाँधा और पहुंच गए गुवाहाटी । गुवाहाटी मुझे बहुत पसंद है क्योंकि एक तो वहां पर बड़ा अच्छा मंदिर है सुक्रेश्वर महादेव मन्दिर और दूसरा मंदिर है उमानंदा मंदिर जो कि ब्रह्मपुत्र नद के बीच मे है, एक टापू जैसी जगह पर । नही नही टाइपिंग मिस्टेक नही है, भारत मे बाकी सारी नदियां है बस ब्रह्मपुत्र अकेला नद है । इसे नदी नही कहा जाता क्योंकि ये पुत्र है सो पुल्लिंग है और इसलिए नद है । खैर, सुबह सुबह करीब 7 बजे, मैं होटल से निकला, उमानंदा मंदिर के लिए । क्योंकि मंदिर नद के बीच में है सो नाव से जाना पड़ता है । मैने भी एक नाव पकड़ ली । नाव में बहुत से लोग चढ़े ।
नाव में एक अंग्रेज टाइप आदमी भी चढ़ा, अंग्रेज टाइप क्या अंग्रेज ही था । मैं नाव के एक कौने पर बैठा था, वो अंग्रेज, जिसने कुर्ता पजामा पहना हुआ था, आंखों पर काला चश्मा था, हाथ में रुद्राक्ष पहना हुआ था, मेरी ही ओर आया और मेरे से ही पूछता है –
तुम अभिनंदन शर्मा हो ।
मैने हामी में मुंडी हिलाई । वो आगे बोला ,मुझे बाबा ने भेजा है । वो आगे कुछ बोल पाता, मैं अपने खुशी के अतिरेक को रोक नही पाया और बीच में हो टोकते हुए उस से पूछ लिया – कहाँ हैं बाबा ? कब मिलेंगे ?
वो हिंदी ठीक से नही बोल पा रहा था, थोड़ा अंग्रेज एक्सेंट था पर तब भी बहुत अच्छी हिंदी बोल रहा था, अंग्रेज होते हुए । वो बोला – मुझे नही पता, उन्होंने मुझको बोला है कि मैं तुमको गीता समझाऊ ।
मेरा मुंह, ऐसा बन गया जैसे किसी ने चिकोटी काटी हो। मतलब कि अब ऐसे दिन आ गए कि एक विदेशी मुझे गीता समझायेगा !! मैने मुंह बिचकाते हुए, उससे प्रश्न पूछ ही लिया – तुम ? तुम मुझे गीता समझाओगे ?
वो मेरी मंशा भांप गया और प्रश्न के बदले प्रश्न करते हुए बोल – तुम्हें नही सीखनी क्या ?
सीखनी है पर तुमसे नही – मैने साफ साफ उसको बोल दिया । मतलब अपना भी कोई हिसाब किताब होता है, ऐसे थोड़े न कोई भी आएगा उस से सीखने बैठ जायेंगे !
ठीक है, जैसी तुम्हारी मर्जी – वो नाव के दूसरे कोने में चुप चाप बैठ गया । मैं भी अपने कोने में बैठ गया ।
अब मैं सोच रहा था कि जैसे तैसे बाबा का कुछ पता ठिकाना मिला है, एक लिंक मिला है, क्या इसे ऐसे ही जाने दूं ? फिर बाबा को कैसे ढूढूंगा ? कुछ तो करना पड़ेगा । मैंने अपने अभिमान के ट्रिगर को थोड़ा कम करते हुए, नाव से उतरते में, उस से पूछ ही लिया –
Can you help me a bit ? – आदमी के मुंह से दो ही मौकों पर अंग्रेजी झड़ती है, पहला तो आप जानते ही हो पर दूसरा, जब आप polite होने की नौटंकी करते हो, वास्तव में अंदर से होते नही हो । ये वही वाली अंग्रेजी मेरे मुंह से फूटी ।
Yes, plz ask – वो मुस्कुराते हुए बोला ।
Who can teach me Geeta other then you ,can you guide me ? – जितनी मिश्री मैं घोल सकता था और जितनी लंबी स्माइल मेरे मुंह से बन सकती थी, वो पूरी लगा दी मैंने ।
वो मुस्कुराया और बोला – एक आदमी है, पर उसके लिए तुमको मथुरा में द्वारकाधीश मंदिर जाना पड़ेगा ।
अंधे को क्या चाही – दो आंखें । हाँ, हाँ, क्यों नही, क्या नाम है उनका ।
उनका नाम है गिर्राज । उनसे मिलो, वो तुम्हारा उद्धार करेंगे ।
मैं बड़ा खुश, चलो मंदिर वन्दिर जाएंगे, कोई ढंग का आदमी तो समझायेगा । अच्छा हुआ, इस अंग्रेज से नही सीखनी पड़ी । in fact, मैं सीखता भी नही । उसको एक बड़ा वाला thank you बोल कर मैं नाव से उतर गया । मंदिर में दर्शन किये । मन्दिर में फुल टू पूजा हो रही थी और नमामि शमीशान निर्वाण रूपम से आरती हो रही थी । अब बताइये, इस से बढ़िया क्या चाहिए था । लिंक से लिंक मिल गया, मथुरा जाने का आदेश भी आ गया और बढ़िया आरती मिली । मन प्रफुल्लित हो गया। अपना गुवाहाटी का काम पूरा करके मैं शुक्रवार तक दिल्ली वापिस । इस शनिवार को मथुरा नहीं जा सकता था, आखिर घर बार नाम की भी कोई चीज होती है | अभी शुक्रवार रात आकर अगले दिन मथुरा नहीं जा सकता था सो अगले हफ्ते का समय मुक़र्रर हुआ मथुरा जाने के लिए | आपको जब पता चले कि आपके मन मांगी मुराद पूरी होने वाली है तो इन्तजार करना वैसे भी मुश्किल हो जाता है | अब बस इसी उधेड़बुन में था कि कैसे करके मथुरा जाना हो जाये, बस ।
जैसे तैसे वो ५ दिन निकले | शनिवार को सुबह ही मैं मथुरा के लिए निकल गया | सीधे द्वारकाधीश मंदिर के पास से पास जाकर अपनी KUV-100 लगा दी | मंदिर पहुंचा और अन्दर जा कर दर्शन किये | दर्शन के बाद मैंने गिर्राज जी महाराज को ढूढना शुरू किया | वहां जितने पुजारी थे, सबसे बात की लेकिन उनमें से कोई गिर्राज नाम के किसी आदमी को नहीं जानता था | मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ | मैंने वहां मंदिर के बाहर जो पण्डे थे, उनसे भी पड़ताल की, उनको भी ऐसे किसी आदमी का नाम नहीं पता था | तो क्या अंग्रेज ने मुझसे झूठ बोला था ? ऐसा होना तो नहीं चाहिए, मन नहीं मान रहा था |
मैंने मंदिर के बाहर खडा होकर तरह तरह से गिर्राज जी को ढूढने का उपाय सोच रहा था और इधर से उधर घूम रहा था | अचानक मेरे पीछे से आवाज आयी – आ गयो लल्ला ? मैंने देखा, मेरे पीछे एक फटे हुए कपड़ों में, बड़ी दाढ़ी में, बाल बिखरे हुए एक भिखारी बैठा हुआ था | ऐसा लग रहा था जैसे जाने कितने दिनों से नहाया ही नहीं होगा |
मैंने उसकी ओर देख कर बोला – आपने मुझ से कुछ कहा ?
हाँ लल्ला, मेरो ई नाम गिर्राज है | – उसने ब्रज भाषा में बोला |
पैरों के नीचे से जमीन सरकना किसे कहते हैं, उस दिन मुझे पता चला |
तुम, तुम मुझे गीता के बारे में बताओगे ?
कौन सी गीता ? मोय तो एक बाबा ने कई हती कि एक लड़का आयेगो दिल्ली ते, मोकु धूढ्तो भयो, बाकू भीख मांगनी सिखानी है |
हैं ? मैं भीख मांगूगा ?
का बुराई ए लल्ला, भीख मांगने में ?
मेरी उस से बात करने की भी इच्छा नहीं हो रही थी | मैं मन ही मन सोच रहा था, जब राजा जनक जंगल में जाकर सन्यासी हो जाना चाहते थे तब उनकी पत्नी ने उनको राजधर्म और गृहस्थ की महिमा बताई थी | उन्होंने समझाया था कि सन्यासी बन कर घर घर हाथ फैलाओगे, उसमें कौन सी महानता होगी, मांगने वाले हाथो से, देने वाले हाथ ज्यादा श्रेष्ठ होते हैं | जिसके पास देने के लिए कुछ होता है, उसे मांगने की इच्छा नहीं करनी चाहिए और ये मुझ से कह रहा है कि मैं भीख मांगू, इसके साथ बैठ कर ?
बाबा ये कैसा खेल खेल रहे हैं मेरे साथ | पहले एक अंग्रेज भेजा, अब ये भिखारी ! इस से तो वो अंग्रेज ही ठीक था, पढ़ा लिखा तो था, उस से तो एक बार को कुछ सीखा भी जा सकता था, पर ये क्या बतायेगा !!! ये तो तय है कि भीख मैं नहीं मांग सकता | क्या करूं, जाऊं यहाँ से ? बिना आगे का लिंक लिए ? नहीं, नही ! क्या पता, ये किसी और के बारे में बता दे | मैंने फिर से अपने चेहरे पर मुस्कराहट की परत चढ़ाई, मुंह में विनम्रता की मिठास घोली और बोला –
बाबा ! भीख तो मैं नहीं मांग सकता ! क्या ऐसा नहीं हो सकता, आपकी जगह कोई और मुझे ये सिखा सके ?
वो मुस्कुराया – मोय पतों ई, तू एक बार में नाय मानेगो | दूसरी बार जब आयेगो, तब सिखाउंगो | वैसे तू, अलीगढ में जा सके | माँ पे जेगंज में एक जगह है, वहां पे किशोर मिलेगो | वो तोय कछु सिखा सके |
मैंने बाबा को – बड़ी वाली धन्यवाद की माला पहनाई और मन ही मन सोच रहा था कि मैं इसके पास दुबारा आऊंगा, ये इतने विश्वास से कैसे कह रहे है ? क्या मैं सच में, यहाँ भीख मांगने आऊंगा ! हे भगवान्, ऐसा दिन मत दिखाना – मैंने मन ही मन कान पकडे और वहां से दौड़ लगा दी |
कार उठा कर उसी दिन मथुरा से अलीगढ की ओर भागा | दोपहर तक अलीगढ पहुँच गया, करीब ३-४ बजे तक | अब बस यही इन्तजार था, कि कहीं ये किशोर भाईसाहब मिल जाएँ तो सारी दौड़ धूप सफल हो जाए | लोगो से पुछा कि भाई ये जैगंज किधर है, तब ज्ञान प्राप्त हुआ कि ये जैगंज नहीं, बल्कि जयगंज था | पहुँच गए, गाडी उठा कर वहां भी | अब वहां गलियों में घूमने की बारी आयी |
कभी कभी दिमाग में ऐसा आ रहा था कि ऐसा कौन सा मैं कारू का खजाना ढूंढ रहा था जिसके लिए ऐसे गलियों गलियों भटक रहा था | शायद बाबा ने जो प्यास जगा दी थी, उसके पानी के लिए ही ये सारी मेहनत कर रहा था | भूखे आदमी को खाना तो मिले पर केवल 1 रोटी तो उसकी भूख घटने की बजाय और बढ़ जाती है, बस वैसा ही कुछ मेरा हाल था | मोहल्ले में लोगो से पूछा भाई साहब – ये किशोर जी किधर मिलेंगे तो एक ने बताया गली में आखिरी मकान उन्ही का है | मेरे कदम बेसब्री में किशोर जी के घर की और तेजी से बढ़ते जा रहे थे | जैसे ही दरवाजा खटखटाने की कोशिश की, अन्दर से आवाज आयी – दरवाजा खुला हुआ है, अन्दर आ जाओ |
मैं धीरे से किवाड़ खोलते हुए, धीरे से अन्दर की ओर घुसा | छोटा सा घर था और उसमें भी बड़ा छोटा सा दालान या कहिये आँगन था | एक खाट पड़ी थी और उसके सामने एक मूढा पड़ा हुआ था | शायद किशोर जी ही थे, जो खाट पर बैठे हुए थे, उम्र करीब ४० के आस पास रही होती | रंग सांवला था, कुरता पजामा पहने हुए थे और आलू छील रहे थे | शायद अकेले ही रहते थे | मुझे बैठने का ईशारा किया और मैं पास में पड़े मूढे पर बैठ गया |
हाँ जी, बताइये – उन्होंने मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा |
जी मुझे, गिर्राज जी ने आपके बारे में बताया है | उन्होंने बोला कि सीखने के लिए मुझे आपके पास जाना चाहिए | इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ | – मैंने अपना निवेदन आगे किया |
उन्होंने पहले मुझे देखा, फिर बिना कुछ बोले उठ कर चले गए | थोड़ी देर में पानी का एक गिलास लेकर आये और मुस्कुराते हुए वो गिलास बगल में पड़े एक स्टूल पर रख दिया और फिर से खाट पर बैठ गए |
थोड़ी देर में वो दुबारा बोले – तुम्हें सही में मुझ से सीखना है ?
मैंने कहाँ – हाँ, जी अवश्य और पानी के गिलास की तरफ हाथ बढ़ा दिया |
ठीक है, फिर आप कल मेरे साथ काम पर चलना | आप कल सुबह ८ बजे मेरे घर आ जाइएगा – उन्होंने ये कहते हुए, फिर से आलू छीलने शुरू कर दिए |
ये तो तय था कि ये भीख नहीं मांगते होंगे और न ही मुझ से भीख मांगने के लिए कहेंगे फिर भी मैंने उनसे पुछा – जी, आ तो जाऊँगा लेकिन आप काम क्या करते हैं, मुझे क्या करना होगा !
जी, मैं नालियाँ साफ़ करता हूँ | मेहतर हूँ जी मैं | – मेरी तरफ सर कर के उन्होंने कहा |
मेरा पानी के गिलास के लिए बढ़ता हुआ हाथ एक झटके से अपने आप रुक गया | एक ही दिन में ये दूसरा झटका लगा मुझे | मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रियेक्ट करूँ | मतलब एक मेहतर से मैं क्या सीखूंगा ? इसके साथ सुबह काम पर जाऊँगा ? नालियां साफ़ करने !!! मैं सोच भी नहीं पा रहा था |
क्या हुआ, कर पाओगे ? – उन्होंने मेरी तरफ देख कर पूछा |
मेरे पास हाथ जोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था | मैंने हाथ जोड़े और सर नीचे कर लिया | समझदार को इशारा काफी था |
अरे, तो कोई बात नहीं | इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है | जब दुबारा आओगे, तब चलेंगे – उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा |
हैं !!! मैं मन ही मन चौंका, इसको भी इतना ही यकीन है कि मैं दुबारा आऊंगा | असंभव | ऐसी भी नहीं पड़ी है मुझे सीखने की | मैं उठ कर खडा हो गया और नमस्ते करके बाहर की तरफ मुडा | मेरे दिमाग में फिर से लिंक वाली बात आयी और मैंने पीछे मुड़ कर पूछा –
क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मैं और कहाँ जा सकता हूँ और कौन मुझे ज्ञान दे सकता है ? – मेरी आवाज में एक बेचारगी थी या कहूं निराशा थी |
अब तो तुमको गीता ही सिखा सकती है – उन्होंने मेरी तरफ देख कर बोला |
गीता ही तो सीखनी है पर किस से सीखूं ? – मैंने बड़ी मजबूरी में कहा |
अरे नहीं नहीं, गीता एक स्त्री का नाम है, दिल्ली में रहती है – वो हँसते हुए बोले |
अरे ! जिसे हमने ढूंढा गली गली, वो हमारे घर के पिछवाड़े मिली | बताइये, इस से अच्छी बात क्या होगी कि दिल्ली में ही कोई मिल जाएगा ज्ञान देने के लिए | मैंने तुरंत पता माँगा |
किशोर जी ने एक कागज़ पर गीता जी का पता लिख दिया | मैंने वो कागज़, चुपचाप बिना देखे जेब में रख लिया और धन्यवाद बोल कर वहां से चला आया | मैं मन ही मन सोच रहा था कि क्या बाबा मेरी कोई परीक्षा ले रहे हैं | पहले अंग्रेज, फिर भिखारी और अब मेहतर !!! मलतब इस से ज्यादा बुरा क्या हो सकता है कि एक ब्राहमण को ज्ञान देने के लिए कोई ढंग का आदमी नहीं मिल पा रहा | मैं कैसे इन से शिक्षा ले सकता हूँ और ये मुझे क्या शिक्षा दे पायेंगे ? बड़ी भारी निराशा में मैंने कार को दिल्ली की तरफ घुमा दिया | बस एक तसल्ली ये है कि अब किसी भेखारी और मेहतर के पास तो नहीं जाना पड़ेगा | गीता जी, कम से कम कुछ तो समाधान करेंगी |
शनिवार रात घर पर पंहुचा, निराशा ने चारों ओर से घेर रखा था | मुझे आज की रात नींद नहीं आने वाली थी और ऐसा ही हुआ | दिमाग का दही होना शायद इसे ही कहते होंगे | आखिरी उम्मीद थी, गीता जी | उनका एड्रेस अभी भी मेरे कोट में ही पडा था | अब बस कैसे करके उनसे इन समस्याओं का समाधान मिले तब आत्मा को शान्ति मिले |
क्रमशः
अभिनन्दन शर्मा
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