October 30, 2024

मेरे एक मित्र ने नास्तिकता पर एक पोस्ट की | उसमें नास्तिक होने की एक परिभाषा उन्होंने दी | आजकल वैसे भी सोशल मीडिया पर ये सबसे आम टॉपिक है | मैंने कहा कि वो परिभाषा गलत है | उनकी दी हुइ परिभाषा के अनुसार, नास्तिक लोग, किसी स्पष्ट प्रमाण के अभाव में, ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते हैं |

मैं बार बार कहता हूँ, कि किसी भी बात को लिखने और कहते समय आपको ये पता होना चाहिए कि आप क्या कह और लिख रहे हैं | इसीलिए पढ़ना चाहिए, बहुत पढना चाहिए वरना बिना पढ़े लिखे लोग, मत (मनमानी बात) तो बना सकते हैं लेकिन जब बात तर्क की आएगी तो मुंह की खायेंगे | जब हम लिखते हैं कि किसी प्रमाण के अभाव में तो हमें पता होना चाहिए कि प्रमाण क्या होता है ? किसे प्रमाण कहते हैं ? ईश्वर की बात तो बाद में करेंगे, पहले ये तो पता चले कि जिस प्रमाण के बेसिस पर हम उस ईश्वर को ढूँढने चले हैं, वो प्रमाण क्या होता है ?

प्रमाण शब्द बनता है, प्रमा से | अब प्रमा माने क्या ? प्रमा माने होता है, कोई चीज जैसी है, वैसे ही उसका ज्ञान प्राप्त होना | एक तरह से जो सत्य है, उसका ज्ञान होना, ये प्रमा है | ये भैंस है, काली है, दो सींग है, चार पैर है, दूध देती है, मुझे दिख भी रही है – ये प्रमा है | अप्रमा इसका ठीक उल्टा होता है, जो दीखता हो, पर हो नहीं | दुसरे शब्दों में कहें तो – भ्रम | जैसे मृग मरीचिका | रेगिस्तान में जायेंगे तो दूर पानी दिखेगा तो सही, पर होगा नहीं | जैसे गर्मी में कई बार, सड़क पर पेड़ की छाया, दूर से पानी जैसी दिखती है | ये अप्रमा है | रस्सी में सांप और साप में रस्सी का भ्रम, अप्रमा है | वो दीखता है कुछ और, पर होता है कुछ और | बिना कारण के कार्य नहीं हो सकता है (नोट, ये बहुत इम्पोर्टेन्ट लाइन है, इस अकेली लाइन पर १० पेज की व्याख्या लिखी जा सकती है और इसको समझने के लिए, बहुत पढने की आवश्यकता है) इसी प्रकार, बिना प्रमाण के प्रमा नहीं हो सकती है |

अब फिर से वापिस आते हैं प्रमाण पर | प्रमाण क्या है ? – “प्रमाता येनार्थे प्र्मि्णोंति तत् |” अर्थात जिस साधन के द्वारा प्रमाता (जानने वाले को) को प्रमेय (सम्बंधित विषय) का ज्ञान होता है, वो प्रमाण कहलाता है | जैसे तराजू से किसी भी वस्तु के भार का ज्ञान होता है, वैसे ही प्रमाण से, किसी भी विषय के सत्य होने का मूल्यांकन किया जाता है | प्रमाण कितने प्रकार का होता है ? किसको माने कि वो प्रमाण है ? ये जानना आवश्यक है, तब तो आप ईश्वर को जान पायेंगे | जब प्रमाण को ही नहीं जानेगे तो ईश्वर को कैसे जानेगे ! अतः अब आते प्रमाण कितने प्रकार का होता है |

इसमें सबसे घटिया और बेकार परिभाषा, चार्वाक ने दी | जिसे आजकल लोग मानते हैं | चार्वाक कहता है, जो दिखाई देता है, वही प्रमाण होता है | यही परिभाषा आजकल ज्यादातर खुद को नास्तिक मानने वाले लोग मानते हैं | जो दिखाई नहीं देता, वो नहीं होता | लेकिन दिखाई तो हवा भी नहीं देती , लेकिन हवा तो है | पत्ते उड़ते हैं, हम सांस लेते हैं, धुल उडती है, आंधी आती है तो हम कहते हैं कि हवा है पर दिखाई नहीं देती | दिखाई तो परमाणु भी नहीं देता, इलेक्ट्रान भी नहीं देता, लेकिन वैज्ञानिकों ने इनको बिना देखे ही, थ्योरी बेस (तर्क और प्रमाण के आधार पर) पर माना कि ये हैं | (उठा कर इनकी खोज का इतिहास पढ़ लें) | मान लीजिये आप किसी जंगल से जा रहे हैं, आपने सुन रखा है कि जंगल में शेर है | अब अगर आपको शेर की दहाड़ सुनाई दे तो भी क्या आप नहीं मानेंगे कि शेर है ? यहाँ आकर चार्वाक का सिद्धांत फेल हो जाता है और हमें वापिस आना पड़ता है, तर्कशास्त्र /प्रमाणशास्त्र के रचियता गौतम ऋषि के पास |

उनके अनुसार, प्रमाण चार प्रकार के होते हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द |

इसके आगे – मान लीजिये, किसी जंगल में बाघ है, ये ज्ञान आपको ४ प्रकार से हो सकता है |

१. अपनी आँख से बाघ को देखकर – ये प्रत्यक्ष प्रमाण हुआ |
२. मान लीजिये कि आप बाघ को देखते नहीं है लेकिन उसके गुर्राने की आवाज आपको सुनाई देती है, इससे आपको निश्चित हो जाता है कि जंगल में बाघ है | यह अनुमान प्रमाण है |

3. मान लीजिये कि आपने बाघ को पहले कभी देखा नहीं है, लेकिन इतना सुना है कि वो चीते के समान होता है, अब आपको जंगल में ऐसा जंतु विशेष दिखाई देता है, जो देखने में चीते से मिलता जुलता है तो भी आपको बाघ के होने का ज्ञान हो जाएगा | इसे उपमान प्रमाण कहते हैं |
४. अगर कोई जानकार और विश्वस्त आदमी जिसने अपनी आँखों से जंगल में बाघ को देखा है, आपसे आकर कहे तो बिना देखे और अनुमान किये भी, आपको जंगल में बाघ के होने का ज्ञान प्राप्त हो जाएगा | इसे शब्द प्रमाण कहते हैं |

अतः ये समझना कि केवल आँखों से देखना ही प्रमाण है, ये बचकानी और कम जानी हुई बात है | प्रमाण और भी प्रकार के होते हैं किन्तु इतना काफी है, ये समझने के लिए, कि कोई चीज, भले ही दीखे या न दिखे, हो सकती है | ऐसे ही ईश्वर और आत्मा को जानने के लिए भी बहुत से प्रमाण उपलब्ध हैं | बशर्ते कि आप जानते हों, क्या प्रमाण है और क्या नहीं है | केवल सनातन धर्म में ही ये ख़ास बात है कि यहाँ तर्कशास्त्र/प्रमाणशास्त्र नामक ग्रन्थ लिखा गया (अन्य धर्मों की भांति केवल कहा नहीं गया कि एक परम शक्ति होती है, एक soul होती है, एक ईश्वर होता है, बल्कि तर्कों से उसे सिद्ध भी किया गया है |) जिसमें बाकयदा ईश्वर और आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म को, प्रमाणों से सिद्ध किया गया है | जिसने तर्कशास्त्र नहीं पढ़ा है, उसे बच्चा कहा गया है | क्योंकि बच्चे का बालसुलभ मन तर्क-वितर्क नहीं कर पाता | अतः अगली बार जब आप कहें कि नास्तिक कौन है तो बताइयेगा कि न+अस्ति = नास्तिक | न माने नहीं और अस्ति माने है | क्या है और क्या नहीं है ?

जो ये मानता है कि जो मैं जानता हूँ, उसके आगे भी कुछ है – वो आस्तिक है | अस्ति+क = है + प्रत्यय | जो ये मानता है कि जो मैं जानता हूँ, उसके आगे कुछ नहीं है | जो मेरी नोलेज है, thats all. उसके आगे कुछ नहीं है, वो नास्तिक है – न+अस्ति | आस्तिक आदमी सदैव पॉजिटिव होगा, क्योंकि वो ये मानता है कि अभी बहुत कुछ है, जो मुझे नहीं पता है और नास्तिक आदमी सदैव नेगेटिव होगा क्योंकि वो ये मानता ही नहीं कि मेरी नोलेज के आगे भी कुछ है | जो ये कहता है कि सितारों के आगे जहाँ और भी है – वो आस्तिक है | कोई वैज्ञानिक, बिना आस्तिक हुए, वैज्ञानिक हो ही नहीं सकता क्योंकि उसे ये मानना पड़ेगा कि जो अभी तक खोज हुई है, उसके आगे भी कुछ है |

जब वेद लिखे गए तो ऋषियों ने कहा कि जो हम जानते हैं, उसके आगे वेद हैं और नास्तिकों ने कहा, वेद कुछ भी नहीं है केवल कागजों की पोटली है | अतः वेदों को मानने वाले, और ये समझने वाले कि हमें जो पता है , उसके आगे भी संभावना है, ज्ञान की, वो आस्तिक हैं और जो वेदों को नहीं मानते, जो कहते हैं कि जो हमें पता है, वही अंतिम सत्य है, वो नास्तिक हैं |

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