December 13, 2024

खंडन 22 – लक्ष्मण जी के बारे में काल्पनिक कथा का खंडन

maxresdefault 1 खंडन 22 - लक्ष्मण जी के बारे में काल्पनिक कथा का खंडन

खंडन 22 – मेघनाद की मृत्यु लक्ष्मण के द्वारा होने से सबसे बड़े योद्धा होने की बात खंडन  

इस बार खंडन-मंडन सीरिज में, रामायण की बात करेंगे | एक वायरल पोस्ट हमारे पास आई, जो कि ऑनलाइन भी वायरल है और हर ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है कि रामायण में सबसे बड़ा योद्धा कौन था ? उस वायरल पोस्ट में, रामायण के एक छुपे हुए सत्य को बताया गया है और अगत्स्य ऋषि द्वारा राम को पूछने पर बताया गया है कि लक्ष्मण जी ही सबसे बड़े योद्धा हैं क्योंकि वो 14 वर्ष सोये नहीं, मेघनाद को मारने वाला ऐसा ही व्यक्ति हो सकता था क्योंकि मेघनाद को ऐसा वरदान था |

आप भी इस वायरल कहानी को, पढ़ सकते हैं, जो कि निम्न प्रकार है, उसके बाद हम उसका खंडन करेंगे |

वायरल पोस्ट

जानिए रामायण का एक अनजान सत्य…

केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे..क्या कारण था ?..पढ़िये पूरी कथा

     हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है।  अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।

    भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा ॥

     अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥

    ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥

    श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥

     अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो…..

  (१) चौदह वर्षों तक न सोया हो,

  (२) जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और

   (३) चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥

       श्रीराम बोले- परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा ॥

    मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है ॥

     अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो ॥

   अगस्त्य मुनि ने कहा – क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥

    लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा॥

     प्रभु ने पूछा- हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?, फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?, और १४ साल तक सोए नहीं ? यह कैसे हुआ ?

    लक्ष्मणजी ने बताया- भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥  

    आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं.

    चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥

      निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥

     आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।

    अब मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥

     आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

      मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥ सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥

    प्रभु ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

     लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया- उन सात दिनों में फल आए ही नहीं :—

१–जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥

२–जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥

३–जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे, ।

४–जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे,।

५–जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे,।

६–जिस दिन मेघनाथ ने मुझे शक्ति मारी,

७–और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥

  इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥

    भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया ।

         जय सियाराम जय जय राम       

     जय  शेषावतार लक्ष्मण भैया की

     जय संकट मोचन वीर हनुमान की

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जय श्री राम ⛳⛳

खंडन 22

आज हम बात करेंगे रामायण की | आपने ये बात देखी होगी कि रामायण के बारे में विभिन्न प्रकार की कथाएँ हैं और सब आपको गुप्त बातें बता कर कही जाती हैं | कहाँ से आती हैं, ये सब बातें ? जैसे कि सीता जी योद्धा थी ? रावण ने रामेश्वर पर शिवलिंग की स्थापना के लिए पुरोहित्व स्वीकार किया ? कुछ रामायण में तो रावण बहुत बड़ा पंडित था ? ग्यानी था ? एक रामायण में तो ये तक लिखा है कि सीता जी, रावण की बेटी थी !!! है न कमाल ? आखिर ऐसे कमाल कैसे हुए ? ऐसे कमाल इसलिए हुए क्योंकि रामायण कोई एक नहीं है | रामायण को वाल्मीकि जी ने सर्वप्रथम लिखा/गाया और उसके बाद एक रामायण से दूसरी, दूसरी से तीसरी आदि बनती गयी और आज के समय में करीब 5000 से अधिक रामायण उपलब्ध हैं | रामायण के बारे में, विभिन्न लेखकों ने आधार, वाल्मीकि रामायण को ही बनाया, पात्र वहीँ के लिए लेकिन कथानक में, अपनी अक्ल लगाकर, अलग अलग प्रकार की रामायण बना दी | भारतीय क्षेत्र में, अमूमन तीन रामायण सबसे अधिक प्रचलित हैं, वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास जी की रामचरित मानस और कम्ब रामायण | इसके अलावा भी अन्य बहुत सी रामायण हैं, किन्तु उनकी वैसी प्रसिद्धि नहीं है | लोग, इन्हीं अप्रचलित रामायणों में से सन्दर्भ निकाल कर देते हैं और सोशल मिडिया पर डाल देते हैं | आजकल कुछ कुटिल लोग, अपनी तरफ से भी नयी नयी कथा भी बना देते हैं, जो रामायण से बिल्कुल उलट होती हैं और किसी रामायण में नहीं लिखी होती हैं | लेकिन जब जब रामायण में प्रमाण की बात आएगी, तब तब हमें मूल रामायण अर्थात वाल्मीकि रामायण की ही ओर देखना पड़ेगा | तुलसीदास जी की रामचरित मानस को भी ले सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी रामायण में “नानापुराण निगमागम सम्मत” कह कर, विभिन्न  पुराणों में लिखी कथाएँ और विभिन्न आगम और निगम की कथाएँ भी जोड़ दी हैं | उन्होंने अपनी काल्पनिकता, विभिन्न अलंकारों में, दृष्टान्तों में तो दिया है किन्तु अधिकतम चीजें, वैसी ही हैं, जैसी पुराण आदि में लिखी हैं | आजकल के लेखक, रामचंद्र जी से मछली जी की आँख में तीर लगवाते हैं तो कभी सीता जी को योद्धा बता देते हैं अतः ऐसी कथाओं को रामायण नहीं समझना चाहिए | 

ऐसी ही एक कहानी आपने, इस सोशल मिडिया की वायरल पोस्ट में पढ़ी | इस कहानी में कोई सन्दर्भ नहीं दिया गया है कि कहाँ से ली गयी है, कौन सा श्लोक है आदि | अतः सोशल मिडिया पर आने वाली ऐसी किसी भी कथा को सही नहीं मानना चाहिए, ये पहला सिद्धांत बना लीजिये | अब आते हैं, इस कहानी पर | इसमें पहली बात बड़ी विचित्र है, जिसमें लिखा है कि रामचंद्र जी ने स्वयं ये बताया कि उन्होंने रावण, कुम्भकर्ण आदि अनेकों बड़े राक्षसों को मारा | आप में से शायद बहुतों को ये नहीं पता होगा कि स्वयं की प्रशंसा, शास्त्रों में पाप माना गया है | रामचंद्र जी, ऐसा करें, ये संभव नहीं लगता | पर मान लेते हैं पर मेघनाद का वध, रावण से अधिक कठिन था, ये अतिश्योक्ति ही नहीं वरन गलत भी है | रावण अमर था, सब जानते थे | इसीलिए सब डरते भी थे, देवता तक | लेकिन मेघनाद अमर नहीं था अतः अगत्स्य ऋषि का ये कहना कि रावण की अपेक्षा, मेघनाद को मारना ज्यादा कठिन था, ये बात भी गले तो नहीं उतरती | जो तर्क दिया गया है, वो इंद्र के हारने का दिया गया है, पर इंद्र तो जाने कितने लोगों से हार चुके हैं | बालि से भी, तारकासुर से, कृष्ण जी से, गरुड देवता से.. बहुतों से हारा है |

इसमें जो मेघनाद के वरदान की बात कही गयी है, वो भी विचित्र है क्योंकि ऐसे किसी भी वरदान के बारे में कहीं नहीं लिखा है | 14 वर्ष के लिए ही, ये तीनों शर्त कैसे, उसने सोची होगी ? सोचता तो आजीवन सोचता ! और सबसे बड़ी बात, जो इस कथा को पूर्णतः असत्य और मनगढ़ंत सिद्ध कर देती हैं, वो है कि चित्रकूट की कुटिया से, सभी बचे हुए फल, लक्ष्मण जी ने सामने लाकर रख दिए | अब आप ही सोचिये, लक्ष्मण जी रामेश्वरम में रहे, लंका में युद्ध किया और उन दिनों जो फल बचा, वो उन्होंने बचा कर रखा और उसे इतने दिनों तक बचा कर वो चित्रकूट की अपनी कुटिया में लाकर रख गए ! है न कमाल ! उससे भी बड़ा कमाल ये है कि वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट लिखा है कि युद्ध समाप्त होने के बाद, राम-लक्ष्मण सभी पुष्पक विमान द्वारा, लंका से अयोध्या वापिस आ गये, अर्थात लक्ष्मण जी, चित्रकूट वापिस ही नहीं गए | वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट लिखा है कि रामचंद्र जी, सीता जी को, पुष्पक विमान से, चित्रकूट दिखा रहे थे –

असौ सुतनुशैलेन्द्रश्चित्रकूटः प्रकाशते |
यत्र मान् कैकयीपुत्रः प्रसादयितुमागतः || ६-१२३-५१

हे सीते ! ये चित्रकूट प्रकाशमान है, जहाँ भरत मुझे अयोध्या वापिस ले जाने के लिए आया था |

अब सोचिये, क्या लक्ष्मण जी ने, वो लंका वाले फल, पुष्पक विमान से, नीचे कुटिया में फेंक दिए होंगे क्या ? अब आखिरी बात, थोड़ा दिमाग लगा के सोचिये, ऐसा कौन सा फल है, जो 14 वर्ष तक, एक कुटिया में रखा रह जाए और जिसे कीड़े आदि न खा जाएँ | किस प्रकार वो फल, जो दशरथ जी के निधन पर उन्होंने उपवास से एक दिन पहले, उन्होंने रखा होगा, वो 14 वर्ष तक सुरक्षित कुटिया में रखा रह गया ? है न कमाल !  ऐसा कमाल, तब ही होता है, जब कोई झूठी, मनगढ़ंत कथा, लोग खुद से बना देते हैं | जनता को क्या चाहिए, वाह वाह करने के लिए एक कहानी ! अब वो कितनी सही और कितनी गलत है, इस पर कौन दिमाग लगाये सो आज कल के कथाकार, ऐसी कहानियाँ बना देते हैं |

उपरोक्त विभिन्न सन्दर्भों से ये स्पष्ट हो गया कि संभव है कि लक्ष्मण जी ने फल न खाएं हों, सोये भी न हों (ऐसा अन्य स्थानों पर भी सन्दर्भ है) व् सीता जी को न देखा हो (ऐसा भी सन्दर्भ अन्यत्र प्राप्त होता है) किन्तु अगत्स्य ऋषि के नाम से लिखी ये कथा और राम जी का विस्मित होना और मेघनाद को मिले वरदान की कथा और लक्ष्मण जी द्वारा फल लाने की कहानी.. सब झूठ है | ये झूठा कथानक, आम जनता को भरमाने के लिए ही लिखा गया और किसी प्रकार, रामचंद्र जी के चरित्र को लक्ष्मण से कम करने को लेकर लिखी गयी प्रतीत होती है ताकि जिन भगवान् राम को हम भगवन कहते हैं, उन पर से हमारा विश्वास डिग जाए क्योंकि डिगे हुए विश्वास को ढहाना आसान होता है |

अतः इस प्रकार की कथा-कहानियों पर, बिना सन्दर्भ की बातों पर बिल्कुल भी यकीन न करें | इस प्रकार के फॉरवर्ड मैसेज से, आप को ऐसा बताया जाता है कि देखो, शास्त्रों में ऐसा लिखा है और उस बात को, थोडा तोड़ मरोड़ के, एक अलग ही कहानी बना दी जाती है और एक अलग ही तथ्य प्रस्तुत कर दिया जाता है, जो कि आवश्यक नहीं कि सही ही हो | उस पोस्ट से, उस पोस्ट को बनाने वाले की निहित स्वार्थ हो सकते हैं और वो शास्त्रों के माध्यम से, उनको थोडा बदल कर, आपको एक बात मनवा देता है और आप मान भी लेते हैं, ये सोच कर कि रामायण में लिखा है तो गलत थोड़े ही लिखा होगा |

पर जैसा कि पूर्व के खंडन-मंडन में बताया गया है, कि शास्त्रों को व्हात्सप्प पर न पढ़ें, न ही ऐसी पोस्ट से, शास्त्रों को समझने का प्रयास करें क्योंकि ऐसी पोस्ट से आप शास्त्र नहीं समझ रहे होते हैं अपितु, उनके नाम पर एक एजेंडा पढ़ रहे होते है और आप अपने ही शास्त्रों के बारे में भ्रम का शिकार हो जाते हैं जबकि असल शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा है, जैसा पोस्ट में बताया गया है और जो निष्कर्ष दिया गया है वो तो बिलकुल भी शास्त्रों से मेल नहीं करता है | अतः शास्त्रों के नाम पर आये, इस प्रकार के मैसेज को फॉरवर्ड न करें और न ही उन्हें सत्य मानें, मूल ग्रंथों का स्वयं अध्ययन करें, इससे ही आपका भला होगा, इन व्हात्सप्प पोस्ट से, मात्र पोस्ट बनाने वाले को ही फायदा होगा, आपको कुछ भी लाभ नहीं होने वाला है |

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पं अशोक शर्मात्मज अभिनन्दन शर्मा

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